रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद बाल्टिक देशों के माथे पर चिंता की लकीरें
भले ही पेरिस, लंदन और वाशिंगटन से यूक्रेन संकट एक नए शीतयुद्ध की तरह लग रहा हो, लेकिन बाल्टिक देशों के लिए यह बहुत ही भयावह और चिंतित करने वाला है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भले ही पेरिस, लंदन और वाशिंगटन से यूक्रेन संकट एक नए शीतयुद्ध की तरह लग रहा हो, लेकिन बाल्टिक देशों के लिए यह बहुत ही भयावह और चिंतित करने वाला है। पूर्व सोवियत संघ के साथ रह चुक देशों के नागरिकों के लिए यह युद्ध किसी आसन्न संकट की तरह है। आइए समझें कि बाल्टिक देशों यानी रूस के पड़ोसी एस्टोनिया, लाटविया और लिथुआनिया में क्या स्थिति है:
अलग इतिहास और संस्कृति
बाल्टिक देश भले ही कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे थे, लेकिन वह जबरदस्ती ही था।
इन देशों की संस्कृति और भाषाई सभ्यता रूसी इतिहास और पहचान से मेल नहीं खाती है।
फिर भी बीते 200 साल में अधिकांश समय उन पर मास्को का राज रहा है। पहले रूसी साम्राज्या का और फिर विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ का।
2004 में ली नाटो की सदस्यता इन तीनों देशों ने वर्ष 2004 में नाटो की सदस्यता ली थी। कारण था कि उन्हें अमेरिका और नाटो के अन्य सदस्यों की सेना की सुरक्षा मिल जाएगी।
पोलैंड के अलावा बाल्टिक देशों एस्टोनिया, लाटविया और लिथुआनिया ने भी यूक्रेन के खिलाफ आक्रमण पर उतारू रूस के खिलाफ सख्त से सख्त प्रतिबंधों की मांग की है।
बाल्टिक देशों के प्रमुखों ने हाल ही में यूरोपीय देशों की यात्र कर रूसी राष्ट्रपति को रोकने की मांग की है।
लिथुआनिया के विदेश मंत्री गैब्रिलियस लैंड्सबर्गिस का कहना है कि यूक्रेन के लिए युद्ध यूरोप के लिए युद्ध है। अगर पुतिन को रोका नहीं गया तो वह और आगे बढ़ेंगे।
अमेरिका ने तैनात किए सैनिक
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बाल्टिक देशों की चिंता और नाटो सदस्य होने के कारण अमेरिका ने रूसी हमले से दो दिन पहले यूरोप में अपने सैनिक व सैन्य साजोसामान तैनात कर दिया।
अमेरिका द्वारा पैदल सैनिक, एफ-35 युद्धक विमान और अपाचे हेलीकाप्टर इन देशों में भेजे जा सकते हैं।
अमेरिका के इस कदम का बाल्टिक देशों के लोगों ने स्वागत किया है। लाटविया के रक्षा मंत्री जैनिस गैरीसंस का कहना है कि रूस हमेशा प्रतिद्वंद्वी की सैन्य ताकत का आकलन करता है, लेकिन वह यह भी देखता है कि उनमें युद्ध करने की कितनी इच्छाशक्ति है।
तीनों देशों में रूस की अल्पसंख्यक जातियां भी बसती हैं जिनकी संख्या करीब एक तिहाई है। यह रूसी जातियां 2007 में एस्टोनिया में सरकार के फैसलों के खिलाफ ¨हसक प्रदर्शन भी कर चुकी हैं।