वैज्ञानिकों का मानना, अमेरिकी बाजों मे 80 फीसदी शरीर में मिला चूहे मारने वाला जहर

अमेरिकी बाजों (American eagles) के अनुमानित 80 फीसदी शरीर में चूहे का जहर (Rat poison) पाया गया है

Update: 2021-04-10 16:46 GMT

अमेरिकी बाजों (American eagles) के अनुमानित 80 फीसदी शरीर में चूहे का जहर (Rat poison) पाया गया है. जॉर्जिया यूनिवर्सिटी (University of Georgia) के एक नए अध्ययन में इसकी जानकारी दी गई है. वैज्ञानिकों ने 2014 और 2018 के बीच मरे हुए गोल्डन और बाल्ड बाजों के शवों की जांच की. उन्होंने पाया कि इन बाजों में से अधिकांश के शरीर में चूहे मारने वाला जहर मौजूद था. 116 बाल्ड ईगल में से 96 और 17 गोल्डन ईगल में से 13 में चूहे मारने वाला जहर पाया गया.

बाजों के शरीर में मिले जहर की पहचान 'एंटीकोगुलेंट रोडेंटिसाइड' के तौर पर हुई है. अमेरिकी बाजों का मुख्य भोजन चूहे होते हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि चूहों को जहर दिया गया होगा और फिर इन्हें बाजों द्वारा खा लिया गया होगा. इस तरह चूहों के जरिए जहर बाजों के शरीर में पहुंच गया होगा. कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के वाइल्डलाइफ हेल्थ लैब के अनुसार, खून को पतला करने वाला 'एंटीकोगुलेंट रोडेंटिसाइड' विटामिन के साथ मिलकर काम करता है. इन दोनों की वजह से शरीर में ब्लड क्लॉटिंग होती है.
लंबे समय तक बाजों के शरीर में टिका रह सकता है जहर
वैज्ञानिकों ने बताया कि यदि इसका बड़ी मात्रा में उपभोग किया जाता है तो इससे अंदरूनी या बाहरी तौर पर खून बहने लगता है. कुछ मामलों में मौत भी हो जाती है. प्रोफेसर मार्क रूडर ने बताया कि चूहे का जहर पक्षियों के शरीर में वर्षों तक टिका रह सकता है. हालांकि, रूडर ने कहा कि अभी तक पूरी तरह से ये स्पष्ट नहीं है कि ये जहर कैसे पहुंचा है. बाजों के शिकार करने के तरीकों के चलते उनके जहर का शिकार बनने की आशंका अधिक रहती है. उन्होंने कहा कि लोगों को चूहों को जहर देने से पहले इन बाजों के बारे में भी सोचना चाहिए.
तीन लाख से अधिक है बाजों की संख्या
अमेरिका में बाजों के शिकार और कीटनाशक केमिकल्स के प्रयोग में कमी होने की वजह से बाजों की आबादी बढ़ी है. 60 के दशक में हालात इस कदर खराब हो गए थे कि इन्हें लुप्तप्राय पक्षियों की सूची में शामिल करना पड़ा. फिर इस दिशा में ध्यान दिया गया और 2009 से 2019 के बीच बाजों की आबादी में चौगुनी वृद्धि हुई. अब इनकी संख्या तीन लाख से अधिक है और इन्हें विलुप्तप्राय पक्षियों की सूची से बाहर कर दिया गया है.


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