गलती से एक सैनिक ने गिराया बम और फिर शुरू हुआ बमबारी का सिलसिला, मारे गए 800 लोग
हर इंसान से गलतियां हो जाती हैं, लेकिन कई बार इन गलतियों के अमानवीय नतीजे देखने को मिलते हैं
हर इंसान से गलतियां हो जाती हैं, लेकिन कई बार इन गलतियों के अमानवीय नतीजे देखने को मिलते हैं. ऐसी ही एक गलती आज ही के दिन हुई, जिसने अमानवीयता को उजागर किया. इस गलती के चलते 800 बेगुनाह नागरिकों को मौत की नींद सोना पड़ा. दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के समय 22 फरवरी, 1944 अमेरिका की वायु सेना (US Air Force) के सैनिक नाजी जर्मनी (Nazi Germany) के एक शहर पर हमला करना चाहते थे. लेकिन गलती से उन्होंने नीदरलैंड (Netherland) के टाउन निजमेगेन (NIjmegan) पर हमला कर दिया और उस पर जमकर बरमारी की. इस घटना के बाद निजमेगेन एक खंडहर में तब्दील हो गया और 800 बेगुनाह मारे गए. मरने वालों में महिलाओं और बच्चों की बड़ी संख्या थी.
नवंबर, 1943 में मित्र राष्ट्रों ने नाजी जर्मनी को हराने के लिए उसकी हवाई क्षमता को खत्म करने का प्लान बनाया. इस प्लान को 'Operation Argument' नाम दिया गया. इसके तहत हर सप्ताह हर दिन जर्मनी के विमानन उद्योग के सेंटर जिसमें गोथा, लाइपजिग, टुटोव और क्लीव्स को शामिल थे, को हवाई हमले के जरिए निशाना बनाना था. प्लान के तहत सभी अमेरिकी और ब्रिटिश लड़ाकू विमानों को दिन रात नाजी जर्मनी के ठिकानों को निशाना बनाना था. नाजियों को उभरने का मौका ही नहीं दिया जाना था. अमेरिकी सैनिकों को दिन में तो ब्रिटिश जवानों को रात में बमबारी करना था.
20-21 फरवरी को हुई पहली बमबारी
'Operation Argument' के तहत नाजी शहर गोथा को निशाना बनाना तय किया गया. यहां पर जर्मनी के लड़ाकू विमानों को बनाने वाली फैक्ट्रियां मौजूद थी, ऐसे में इन्हें तबाह कर नाजियों को भारी क्षति पहुंचाई जा सकती थी. 20 और 21 फरवरी को पहली बमबारी की गई. उस समय तक ये बेहद ही सामान्य बात होती थी कि अगर प्राइमरी टारगेट पर हमला नहीं किया जाता है, तो सेकेंडरी टारगेट को निशाना बनाना होता था. असल में इसका मकसद ये होता था कि अगर दुश्मन को ज्यादा चोट नहीं पहुंचाई गई है, तो भी उसे थोड़ी चोट तो पहुंचाई जाए. निजमेगेन के रेलवे स्टेशन को सेकेंडरी टारगेट के रूप में मार्क किया गया था. हालांकि, इसको लेकर काफी विवाद था, क्योंकि ये शहर से बाहर था. यहां से केवल नाजियों के हथियारों को लाया ले जाया जाता था.
खराब मौसम के चलते रद्द किया गया मिशन
22 फरवरी की सुबह 9.20 सैकड़ों की संख्या में अमेरिकी और ब्रिटिश लड़ाकू विमानों ने गोथा शहर की ओर उड़ान भरी. ये बेहद ही खतरनाक मिशन था, क्योंकि चार घंटे तक विमानों को जर्मनी के क्षेत्र में रहना था. वहीं, सैनिकों को बता दिया गया था कि यदि गोथा को निशाना नहीं बनाया जाता है, तो वो बेस पर लौटने से पहले अपनी मर्जी से किसी भी जगह को निशाना बना सकते हैं. दूसरी ओर, खराब मौसम के चलते विमानों को उड़ान भरने में कठिनाई हो रही थी. जल्द ही विमान एक-दूसरे से भटक गए. 15 मिनट के भीतर ही मिशन को रद्द कर दिया. अब सैनिकों को गोथा पर हमला नहीं करना था, बल्कि उन्हें वापस लौटना भी था और किसी अन्य टारगेट को तबाह भी करना था.
गलती से एक सैनिक ने गिराया बम और फिर शुरू हुआ बमबारी का सिलसिला
मिशन के रद्द होने के बाद सैकड़ों विमानों का एक ही दिशा में मोड़ दिया गया. ऐसे में उन्हें बेस से लौटने से पहले किसी टारगेट को तबाह भी करना था. सभी के दिमाग में निजमेगेन का रेलवे स्टेशन आया, जिसे निशाना बनाना था. निजमेगेन के ऊपर उड़ान भर रहे स्क्वाड्रन को ये नहीं मालूम था कि ये डच शहर है या जर्मन, क्योंकि नीदरलैंड और जर्मनी की सीमा पर स्थित था. दूसरी ओर उन्हें ये भी नहीं मालूम था कि क्या उन शहरों को निशाना बनाया है या नहीं जिन्हें जर्मनी ने कब्जा किया हुआ है. इसी गहमागहमी के बीच गलती से एक सैनिक ने बॉम्बिंग शुरू कर दी और इसके बाद पूरे स्क्वाड्रन ने ही यहां जमकर बमबारी कर दी. देखते ही देखते पूरा शहर धूल में समा गया.
नीदरलैंड का सबसे पुराना शहर था निजमेगेन
निजमेगेन को इस हमले से पहले तक 'City of the towers' के रूप में जाना जाता था. लेकिन बमबारी के बाद ये खंडहर में तब्दील हो गया. इसे नीदरलैंड के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता था. वहीं, इस हमले में 800 लोग मारे गए. मरने वालों में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल थे. हालांकि अब भी इस हमले के निशान को देखा जा सकता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि एक गलती ने ऐतिहासिक रूप में महत्वपूर्ण इस शहर का क्या हाल किया.