चांद के ऑक्सीजन से लाखों साल तक सांस ले सकते हैं 8 अरब लोग, ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी और नासा ने किया दावा

ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी और नासा ने किया दावा

Update: 2021-11-30 12:11 GMT
सालों से दुनियाभर के वैज्ञानिक पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रह पर पानी और ऑक्सीजन की तलाश में जुटे हुए हैं। वहीं कुछ ग्रहों पर तो वैज्ञानिकों को उम्मीद की किरण भी मिली है, जिनमें से एक है चंद्रमा। हाल ही में चंद्रमा के ऊपरी सतह पर इतना ऑक्सीजन होने का पता चला है, जितने में करीब 8 अरब लोग एक लाख साल तक आराम से सांस ले सकते हैं। ये दावा ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी और नासा ने किया है।
ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने अक्टूबर के महीने में एक डील की थी, जिसमें कहा गया था कि आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत एक ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी द्वारा रोवर को नासा चंद्रम पर उतारेगा। इस रोवर का लक्ष्य उन चंद्र चट्टानों को इकट्ठा करना था, जो चंद्रमा पर सांस लेने योग्य ऑक्सीजन प्रदान कर सकते थे। अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चांद की ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन मौजूद है।
ऑस्ट्रेलियन अंतरिक्ष एजेंसी का मुख्य उद्देश्य है कि वह अपने लूनर रोवर के जरिए चांद की सतह से पत्थर जमा करके उनसे सांस लेने लायक ऑक्सीजन को निकाल सके। अब ऐसे में आपके दिमाग ये सवाल आ रहा होगा कि पत्थर या चट्टानों से ऑक्सीजन कैसे निकला जा सकता है। इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद की ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन गैस के रूप में नहीं बल्कि पत्थरों और परतों के नीचे दबा हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक उसकी सतह से ऑक्सीजन को निकालना होगा ताकि इंसानी बस्ती को बसाने का काम आसानी से किया जा सके।
जानकारों के मुताबिक ऑक्सीजन किसी भी रूप में और किसी भी खनिज में मिल सकता है। चांद पर भी वैसे ही पत्थर और मिट्टी हैं, जैसे धरती पर मौजूद हैं। सिलिका, एल्यूमिनियम, आयरन और मैग्नीसियम ऑक्साइड चांद की सतह पर सबसे ज्यादा मौजूद हैं। इन सबमें भारी मात्रा में ऑक्सीजन मौजूद है। लेकिन उस रूप में नहीं जिस रूप में हमारे फेफड़े ऑक्सीजन को खींचते हैं। ऐसे में अब अध्ययन का फोकस इस पर है कि इस ऑक्सीजन को इंसान के सांस लेने लायक कैसे बनाया जाए।
ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी के मुताबिक अगर हम किसी पत्थर को तोड़ेंगे तो उसमें से दो चीजें निकलेंगी। पहला ऑक्सीजन और दूसरा खनिज। वहीं वैज्ञानिक अगर ऑक्सीजन को निकालेंगे तो काफी भारी और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करना होगा, जिससे ऑक्सीजन का नुकसान न हो। वहीं अगर धरती की बात करें तो धरती पर इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया से एल्यूमिनियम बनाया जाता है। तरल एल्यूमिनियम ऑक्साइड के बीच से इलेक्ट्रिक करेंट बहाया जाता है। इससे एल्यूमिनियम और ऑक्सीजन अलग-अलग हो जाते हैं।
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