आखिर क्यों नष्ट होता है वैवाहिक जीवन और कैसे होता है चरित्र दोष का निर्माण ?

इन सब में मंगल शुक्र और राहु का योगदान होता है।

Update: 2023-06-02 18:28 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | वर्तमान समय में यह देखा जा रहा है कि या तो किसी जातक का विवाह होता नहीं है और अगर उसका विवाह होता है तो उसके विवाह के बाद जीवन में तनाव की स्थिति बनी रहती है। आज के समय में तलाक के केस भी बहुत बढ़ गए हैं। इस लेख में हम ज्योतिष के उन योगों की चर्चा करने वाले हैं जिनसे चारित्रिक दोष का निर्माण होता है। कौन से वह ग्रह है जिनके कारण मनुष्य का वैवाहिक जीवन नष्ट होता है। वैदिक ज्योतिष के नियम के अनुसार शुक्र को कामवासना का कारक कहा गया है। शुक्र ग्रह एक ऐसा ग्रह है जो भौतिक सुख सुविधाओं का कारक होता है। इसके अलावा राहु और मंगल को पाप ग्रह की संज्ञा दी गई है। राहु एक ऐसा ग्रह है जो जब किसी शुभ ग्रह के साथ बैठता है तो उसकी क्षमता को नष्ट करता है और व्यक्ति को भ्रम में डालने का काम करता है। राहु एक छलावा है जिससे पीड़ित होने पर व्यक्ति किसी भी प्रकार की सच्चाई को न देख पाता है ना समझ पाता है। इसके अलावा वैदिक ज्योतिष में मंगल को रक्त का कारक कहा गया है और शुक्र को वीर्य का कारक कहा गया है।

अगर किसी जातक का विवाह विलंब से हो रहा है अथवा तो उसके वैवाहिक जीवन में अगर परेशानियां आ रही है या किसी और व्यक्ति के साथ उसका संबंध बन रहा है तो इन सब में मंगल शुक्र और राहु का योगदान होता है। वैदिक ज्योतिष के नियम अनुसार यदि किसी जन्मपत्री में राहु और शुक्र की युति अगर किसी भाव में बन रही हो तो ऐसा व्यक्ति चारित्रिक दोष का शिकार हो सकता है। राहु और शुक्र के मध्य जितने कम अंशु की दूरी होगी यह योग उतना ही प्रभावी होगा। राहु के साथ जाने से शुक्र दूषित हो जाता है इसके अलावा शुक्र भौतिक सुख-सुविधाओं का कारक है और वह जब मंगल के साथ युति करता है तो मंगल की ऊर्जा जातक को भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति आकर्षित करती है। और ऐसे में वह गलत काम करने से भी नहीं चूकता है। ज्योतिष में शुक्र स्त्री का कारक है और मंगल और राहु का शुक्र के साथ आना स्त्री के प्रति हिंसा को भी दर्शाता है। अगर छठे आठवें और बारहवें भाव में शुक्र, मंगल राहु केतु सूर्य जैसे ग्रहों से पीड़ित हो रहा हो तो ऐसा व्यक्ति अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए हिंसा पर भी उतर सकता है।

इस चीज को हम एक उदाहरण कुंडली से समझते हैं। इस कर्क लग्न की कुंडली में स्त्री कारक शुक्र अग्नि तत्व राशि में दशम भाव में विराजमान है. शुक्र जिस राशि में विराजमान है उस राशि का स्वामी भी विच्छेद कारक ग्रह केतु के साथ है। दशम भाव में शुक्र राहु के साथ है। ऐसे में इस जातक का जब विवाह हुआ तो विवाह के कुछ समय बाद ही इसने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। लग्नेश चंद्रमा भाग्य स्थान में पाप कर्तरी योग में शनि और सूर्य के साथ है। सूर्य चंद्रमा की युति है इसलिए यह चीज भी दर्शाती है कि जातक का जन्म अमावस्या के समय हुआ है और इस जातक का जो मन है वो अस्थिर है। चंद्रमा पर शनि का प्रभाव होने से इस जातक को निर्णय लेने की समझ नहीं है और स्त्री कारक ग्रह शुक्र पर तीन पाप ग्रहों का प्रभाव होने के कारण इस जातक ने दोबारा विवाह किया लेकिन इस जातक ने दूसरी बार जिस स्त्री से विवाह किया उस स्त्री के साथ भी यह जातक मारपीट करता है। मंगल सप्तम के स्वामी शनि से अष्टम है और पत्नी कारक शुक्र दशम भाव में राहु के साथ स्थित होकर के चारित्रिक दोष का निर्माण कर रहा है जिसके कारण इस जातक का परिवार नष्ट हो गया। इसने दो स्त्रियों के साथ अन्याय किया और आखिर में यह व्यक्ति बदनामी का जीवन व्यतीत कर रहा है।

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