Annu Rani: कभी जेवलिन थ्रो का भाला खरीदने को नहीं थे पैसे, आज हैं ओलंपिक पदक की दावेदार

टोक्यो में ओलंपिक खेलों की शुरुआत हो चुकी है

Update: 2021-08-02 10:58 GMT

टोक्यो में ओलंपिक खेलों की शुरुआत हो चुकी है और अब सभी देशों के खिलाड़ी पोडियम पर अपनी जगह बनाने के लिए जी-जान लगाने को तैयार हैं. भारतीय दल भी इस बार पिछले ओलंपिक से बेहतर प्रदर्शन करने की चाह के साथ मैदान में उतरा है.

शूटिंग में सौरभ व महिला हॉकी में वंदना कटारिया को छोड़कर अब मेरठवासियों की नजरें मेरठ की 2 एथलीटों पर हैं. कल यानी 3 अगस्त को जेवलिन थ्रो (भाला फेंक) खिलाड़ी अन्नू रानी (Annu Rani) भी देश के लिए तमगा जीतने की कोशिश करना चाहेंगी तो वहीं 6 अगस्त को प्रियंका गोस्वामी भी रेस वॉक में भारत के लिए मेडल लाने की पूरी कोशिश करेंगी.
वर्ल्ड रैंकिंग के आधार पर मिला ओलंपिक का टिकट
28 साल की अन्नू (Annu Rani) पहली बार ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. उत्तर प्रदेश के बहादुरपुर की रहने वाली अन्नू बचपन में क्रिकेट खेला करती थीं, लेकिन बड़े भाई को जब लगा कि उनकी बहन की बाजुएं काफी मजबूत हैं, तो अपनी बहन से खेतों में गन्ने फिंकवाएं. बस यहीं से शुरुआत हुई अन्नू और जेवलिन थ्रो के रिश्ते की.
12 साल के खेल करियर में आर्थिक समस्याओं को दरकिनार कर अन्नू (Annu Rani) ने अपने लाजवाब प्रदर्शन की बदौलत आखिरकार ओलंपिक का टिकट हासिल कर ही लिया. हालांकि वो ओलंपिक क्वालिफाई करने से चूक गई थीं लेकिन वर्ल्ड रैंकिंग के आधार पर उन्हें ओलंपिक में शामिल होने का मौका मिल ही गया.
गन्ने को भाला समझकर कई घंटों तक किया करती थी प्रेक्टिस
आठ बार की राष्ट्रीय रिकॉर्ड होल्डर एथलीट किसान अमरपाल सिंह के घर 28 अगस्त 1992 को मेरठ के बहादुरपुर गांव में जन्मी अन्नू रानी (Annu Rani) पांच बहन-भाइयों में सबसे छोटी हैं. अमरपाल सिंह ने बताया कि उनका भतीजा लाल बहादुर व बेटा उपेंद्र अच्छे धावक रहे हैं. इन्हीं की प्रेरणा से अन्नू रानी ने खेल के मैदान पर कदम रखा. अनु जब नौवीं कक्षा में थी तब से ही अपने खेत में ही गन्नो के सहारे उन्हें लंबी दूरी तक फेंक कर प्रैक्टिस किया करती थी. वह गांव की चकरोड और दबथुआ कॉलेज में अभ्यास करती थीं. शुरुआत में अनु भाला फेंक के साथ गोला फेक और चक्का फेक की भी प्रैक्टिस किया करती थी लेकिन आखिरकार उन्होंने भाला फेंक में ही अपना करियर चुना. हर खिलाड़ी की तरह अनु रानी और उनके परिवार का भी अपना एक संघर्ष रहा है . अनु रानी के पिता अमरपाल अपनी बेटी को डेढ़ लाख रुपए का भाला दिलाने में असमर्थ थे जिसके लिए उन्हें कर्ज भी लेना पड़ा था. इन्हीं कठिनाइयों को देखते हुए अनु ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक कामयाबी हासिल की. फिलहाल अन्‍नू रानी ओलंपिक में जाने वाली पहली महिला जैवलिन थ्रोअर हैं. वो वर्ल्ड रैंकिंग में फिलहाल तेरहवें स्थान पर हैं।अन्नू से पहले सिर्फ गुरमीत कौर ने साल 2000 में सिडनी ओलंपिक खेलों की महिला जेवलिन थ्रो स्पर्धा में देश का प्रतिनिधित्व किया है.
ओलंपिक में मेडल जीतने का सपना
मेरठ की बेटी के ओलंपिक में जाने की खबर से परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं है. अन्नू (Annu Rani) की जीत के लिए उनके परिजन घर पर ही पूजा और हवन का कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.अन्नू के किसान पिता कहते हैं कि बेटी जरूर पदक लेकर लौटेगी और देश का मान बढ़ाएगी.
अन्नू रानी (Annu Rani) को ओलंपिक का टिकट मिलने से ना सिर्फ उनके परिवार में बल्कि उनके पूरे गांव बहादुरपुर में की खुशी का ठिकाना नहीं है. हर कोई बस यही उम्मीद कर रहा है कि अन्नू इस ओलंपिक से गोल्ड मेडल जीत कर आए और अपने गांव के साथ साथ अपने मां-बाप और देश का नाम रोशन करें. अनु के पड़ोसी और उनके पिता के दोस्त श्यामलाल कहते हैं कि बचपन से अनु होशियार थी. बहुत छोटी थी तब से खेतों में जाकर प्रेक्टिस किया करती थी. भाला ना होने की वजह से गन्ने को भाला बना कर लंबी दूरी का निशान लगाया करती थी. बच्ची ने काफी मेहनत की है और इसीलिए अब टोक्यो ओलंपिक से अनु गोल्ड मेडल ही जीतकर आएगी.
भारतीय फैंस को अन्नू (Annu Rani) से काफी उम्मीदें हैं लेकिन टोक्यो ओलंपिक में पोडियम तक पहुंचने के लिए इस खिलाड़ी को काफी कड़ी मेहनत और कोशिश करनी होगी क्योंकि विश्व की टॉप की समस्त जेवलिन थ्रो खिलाड़ी ओलंपिक में दावेदारी पेश करेंगी जिनमें इस साल 71.90 मीटर का थ्रो फेंकने वाली पोलेंड की मारिया आंद्रेयाजेक भी शामिल हैं
अन्नू रानी की खास उपलब्धियां :
1. 2014 एशियाई गेम्स में bronze medal

2. 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में प्रतिभागी रही 

3. साल 2015 में एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता

4. साल 2017 में एशियाई चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता

5 . साथ ही अनु रानी वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप मैं फाइनल जगह पक्की करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं.


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