क्या है धरती की धड़कन? इंसान के दिमाग पर पड़ता है इसका असर

आसमान में बिजली कड़कने की कई वजहें होती हैं लेकिन

Update: 2021-03-24 09:19 GMT

आसमान में बिजली कड़कने की कई वजहें होती हैं लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इनका असर इंसानों के व्यवहार पर यानी कि दिमाग पर भी पड़ता है. बिजली के कड़कने से कम फ्रीक्वेंसी की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स पैदा होती हैं और ये वेव्स (Waves) ही इस असर के पीछे का कारण माना जा रहा है. इन तरंगों को Schumann Resonance कहते हैं. अमेरिकी स्पेस एजेंसी (NASA) के अनुसार, हर सेकंड में हजारों तूफानों की वजह से ये तरंगें वायुमंडल के निचले आइओनोस्फीयर में 60 मील ऊपर होती हैं.

क्या है 'धरती की धड़कन'
गौरतलब है कि आइओनोस्फीयर में चार्ज्ड पार्टिकल्स होते हैं जो सूरज से आने वाले रेडिएशन के कारण न्यूट्रल गैस ऐटम्स से अलग हो जाते हैं. इससे पैदा हुई इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी इन तरंगों को उत्पन्न करती है. ये तरंगें एक बीट में लगातार धरती का चक्कर लगाती हैं. दरअसल इनका इस्तेमाल धरती के इलेक्ट्रिक एनवायरन्मेंट और मौसम को स्टडी करने के लिए किया जाता है. इनकी बेस फ्रीक्वेंसी 7.83 हर्ट्ज को ही 'धरती की धड़कन' कहा गया है.
इंसानी दिमाग-तरंगों में असर?
धरती की धड़कन को लेकर की गईं इस स्टडीज में ये निष्कर्ष निकला है कि इन तरंगों की फ्रीक्वेंसी का संबंध दिमाग की अलग-अलग तरंगों से जुड़ा हो सकता है. रिसर्चर्स का कहना है कि 6-16 हर्ट्ज के बैंड के अंदर इन तरंगों और इंसान के दिमाग की ऐक्टिविटी में संबंध देखा गया है. साल 2016 में कनाडा की लॉरेन्शियन यूनिवर्सिटी की बिहेवियरल न्यूरोसाइंस लैबरेटरी में देखा गया कि 3.5 साल में 184 लोगों पर किए गए एक्सपेरिमेंट में 238 आंकड़ों में इंसान के दिमाग और धरती-आइनोस्फीरिक कैविटी के पैटर्न में समानता देखी गई.
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