Water on Mars: नई स्टडी का दावा, मंगल पर पानी या फिर एक धोखा, जानिए पूरा मामला

मंगल पर जीवन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों की उम्मीद को झटका लग सकता है

Update: 2021-07-31 12:45 GMT

मंगल पर जीवन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों की उम्मीद को झटका लग सकता है। दरअसल, यहां जिन्हें पानी की झील माना जा रहा था, अब संभावना जताई गई है कि वे जमी हुई क्ले मिट्टी हो सकती हैं। प्लैनेटरी साइंस इंस्टिट्यूट के रिसर्च साइंटिस्ट आइसक स्मिथ का कहना है कि कि यूरोपियन स्पेस एजेंसी के Mars Express में लगे MARSIS की मदद से 2018 में लिया गया रेडार डेटा मंगल पर पानी की संभावना पर सवाल करता है।

पानी नहीं तो क्या?
स्मिथ का कहना है कि जमी हुई क्ले क्रायोजेनिक तापमान पर रिफ्लेक्शन पैदा कर सकती है। उनका कहना है कि पानी को लिक्विड की शक्ल में रहने के लिए जितनी मात्रा में तापमान और नमक चाहिए होगा, उससे लगता है कि यह दरअसल, पानी नहीं बल्कि smectites नाम का खनिज है। यह एक तरह की चिकनी मिट्टी होती है जो ज्वालामुखी की चट्टानों जैसी होती है और मंगल पर काफी ज्यादा पाई जाती है।
InSight के डेटा की मदद से यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोन, कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी और ETH ज्यूरिक ने ये स्टडी की हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोन और NASA JPL की स्टडी के मुताबिक InSight की लैंडिंग साइट के नीचे क्रस्ट 12-24 मील मोटा है। इस स्टडी में Caltech के रिसर्चर्स भी शामिल थे जिन्होंने बताया है कि किसी ग्रह की परतों को स्टडी करने से उसकी उत्पत्ति और विकास के बारे में पता चल सकता है। मंगल को लेकर इस बारे में जानकारी हासिल करना वहां पहले कभी मौजूद रहे जीवन और भविष्य में जीवन की संभावना का पता लगाने के लिए बेहद अहम है।
इसके अलावा उसमें होने वाली जियोमैग्नेटिक और टेक्टॉनिक गतिविधियों को भी समझा जा सकता है। भूकंप के आने के बाद उठीं तरंगों के आधार पर अंदरूनी परतों को स्टडी किया जा सकता है। स्टडी के लीड रिसर्चर डॉ. नैपमेयर-एंड्रन के मुताबिक सीस्मॉलजी के आधार पर सीसमिक तरंगों की अलग-अलग मटीरियल में गति को स्टडी किया जाता है। इसमें रिफ्लेक्शन और रीफ्रैक्शन को समझा जाता है। स्टडी में पाया गया कि क्रस्ट की ऊपरी परत करीब 5 मील की है। अगली परत 12 मील तक जाती है। इसके बाद मैंटल है।
डेटा के मुताबिक ऊपरी परत चट्टानी है और उसकी गहराई में अलग-अलग तरह की चट्टानें हो सकती हैं। ETH ज्यूरिक की स्टडी में मंगल की कोर को स्टडी किया गया है। इसके मुताबिक कोर 1140 मील के रेडियस की हो सकती है। इसमें संकेत मिले हैं कि मंगल का मैंटल एक परत से बना है न कि धरती की तरह दो परतों से। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भविष्य में मंगल पर आने वाले भूकंप की मदद से और डेटा मिल सकेगा और ज्यादा से ज्यादा जानकारी सामने आ सकेगी।
रिसर्चर्स ने इन smectites को -42 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया और इस तापमान पर पानी इनके ऊपर हो तो वैसा ही दिखता है जैसा MARSIS को दिखा। साल 2018 में MARSIS ने मंगल के दक्षिण ध्रुव की बर्फ के नीचे पानी की झील की मौजूदगी का दावा किया था। दो साल बाद रिसर्चर्स को करीब 6 मील की कई नमकीन झीलें मिलीं।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ESO ने इंस्टाग्राम पर ऐसी ही तस्वीरें शेयर की हैं और दोनों ने ही यह सवाल किया है कि ये तस्वीरें कहां की हैं? अगर आप भी पहचान नहीं पा रहे हैं तो आपको बता दें कि देखने में ये भले ही वीरान मंगल की लगती हैं लेकिन असल में धरती के रेगिस्तानों की ही हैं। NASA ने अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान की तस्वीर शेयर की है जिसमें रेत के पहाड़, प्राचीन चट्टानें और सोलर पावर प्लांट दिख रहा है। बीच में दक्षिण अफ्रीका की सबसे बड़ी नदी, ऑरेन्ज रिवर काली धारी से नजर आ रही है। ये तस्वीर इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन में लगे कैमरा सिस्टम से ली गई है।
इस रेगिस्तान में कम आबादी रहती है। तस्वीर में एक झलक छोटे से शहर Groblershoop की दिखती है जबकि सफेद रंग में यहां की सड़कें जरूर दिखाई दे रही हैं। NASA ने बताया है कि नारंगी रंग कुछ लाख साल पुराने रेत के पहाड़ों की वजह से है। इस जगह को Duineveld या 'टीलों का देश' कहते हैं। रेत के बीच में गाढ़े रंग की चट्टानें हैं। ये कभी पहाड़ हुई करती थी जो उन्हीं फोर्सेज से एक अरब साल पहले बने थे जिनसे हिमालय बना था। पहाड़ी चट्टान के टूटते रहने से समय के साथ ये टीलों और मैदानों में तब्दील हो गए।
तस्वीर में Bokpoort सोलर पावर प्लांट भी दिख रहा है जो कालाहारी पर पड़ने वाली असीमित सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करता है। साल 2015 से काम कर रहे इस प्लांट में 2, 40,000 शीशे 0.65 स्क्वेयर किलोमीटर में फैले हुए हैं। फोटोवॉल्टेइक सोलर पैनल्स से अलग ये प्लांट शीशे की मदद से सूरज की ऊर्जा को नमक से भरे स्टोरेज टैंक में स्टोर करता है। सूरज की गर्मी से नमक पिघलता है, जिसकी हीट स्टोरेज क्षमता काफी ज्यादा होती है। इस गर्मी से टरबाइन चलती है और बिजली पैदा होती है।
दूसरी ओर ESA ने भी अफ्रीका के दूसरे रेगिस्तान की तस्वीरें शेयर की हैं। ये तस्वीरें हैं नामीबिया के नामीब रेगिस्तान की। ये तस्वीरें अपने आप में धरती की खूबसूरती बयान करती हैं। यहां बने रेत के टीले इतने विशाल हैं कि अंतरिक्ष से दिखते हैं। इनमें से एक तस्वीर ESA ऐस्ट्रोनॉट थॉमस पिके ने इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन से ली थी। दूसरी तस्वीरें धरती को ऑब्जर्व करने वाली सैटलाइट Sentinel-2, Sentinel-2 और Kompsat-2 ने ली हैं।
हर कोई नहीं सहमत
स्मिथ का कहना है कि पानी का लिक्विड की शक्ल में मिलना मुश्किल है लेकिन उनकी बात से NASA JPL के जेफ्री प्लॉट समेत कई लोग सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि ओरिजिनल पेपर में यह साबित नहीं किया गया कि वहां पानी है और नए पेपर यह साबित नहीं करते कि पानी नहीं है लेकिन हम सहमति बनाने के लिए संभावनों को एक करने की कोशिश करते हैं।


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