वैज्ञानिक मुद्दा है वायरस ट्रेसबिलिटी, राजनीतिक उपकरण नहीं
अमेरिका ने न्यू कोरोना वायरस ट्रेसबिलिटी के माध्यम से चीन के खिलाफ काम शुरू किया है। लेकिन वा
अमेरिका ने न्यू कोरोना वायरस ट्रेसबिलिटी के माध्यम से चीन के खिलाफ काम शुरू किया है। लेकिन वायरस की ट्रासिबिलिटी वैज्ञानिक अन्वेषण करने का काम है। अमेरिका द्वारा चीन के खिलाफ काम करने के लिए इसका इस्तेमाल करने का साजिश स्पष्ट है।
न्यू कोरोना वायरस महामारी ऐतिहासिक संकट है। जबकि महामारी के सामने अमेरिका ने पहले लापरवाही की, जिसके कारण महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई। फिर अमेरिका ने वायरस के प्रसार के लिए अन्य देशों को दोष लगाने की कोशिश की। अमेरिकी राजनेताओं की तर्कता है कि किसी झूठ को कई बार दोहराने के बाद वह तथ्य बन सकता है। आज मीडिया का आधिपत्य अमेरिका और पश्चिमी ताकतों के हाथ में है, वे अधिकांश दर्शकों को भ्रमित कर सकते हैं। लेकिन इतिहास ने साबित किया है कि तथ्यों की सच्चाई को सदैव छुपाया नहीं जा सकता है। हाल के वर्षों में अमेरिका द्वारा शुरू किए गए कई मध्य पूर्व युद्धों से यह पता लगा है कि जो कोई भी अमेरिका के हितों को खतरे में डालने की हिम्मत करेगा, उसे निश्चित रूप से दंडित किया जाएगा। अपने हितों की रक्षा के लिए अमेरिका और पश्चिम कोई भी उपाय करने से नहीं हिचकिचाते हैं। अमेरिका अपने आधिपत्य के किसी भी झटके को बर्दाश्त नहीं करेगा।
आज अमेरिका के सामने जो खड़ने आया है वह चीन है। चीन अमेरिका के आधिपत्य का स्वीकार नहीं देता है। अमेरिका ने चीन पर "महामारी को छिपाने" का आरोप लगाया, लेकिन वास्तव में, दिसंबर 2019 के मध्य में वुहान में संदिग्ध मामले की खोज के तुरंत बाद, चीनी सरकार ने 31 दिसंबर को अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन को अधिसूचित किया। 3 जनवरी, 2020 से चीन ने नियमित रूप से अमेरिका को महामारी की जानकारी और नियंत्रण उपायों के बारे में सूचित करना शुरू कर दिया है। अमेरिकी राजनेता वायरस को "वुहान लीक" का प्रसार कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका सहित विभिन्न देशों के शीर्ष वैज्ञानिक आमतौर पर मानते हैं कि वायरस की उत्पत्ति प्रकृति से हुई है। इस साल मार्च में, डब्ल्यूएचओ ने निष्कर्ष निकाला कि वुहान पर जांच के आधार पर प्रयोगशाला से वायरस के आने की संभावना बहुत कम है और इसे एक आधिकारिक रिपोर्ट में शामिल किया। हालांकि अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ पर जबरदस्त दबाव डालने के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल किया, जिससे डब्ल्यूएचओ को अपनी शर्तों को बदलने और चीन में वुहान प्रयोगशाला के दूसरे निरीक्षण का अनुरोध करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह वैज्ञानिक अन्वेषण नहीं है, बल्कि अमेरिकी आधिपत्य की साजिश है।
जुलाई 2020 में अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ से अपनी वापसी की घोषणा की। इस साल संगठन में लौटने के बाद, अमेरिका ने चीन-डब्ल्यूएचओ संयुक्त विशेषज्ञ समूह द्वारा जारी रिपोर्ट पर सवाल उठाने के लिए कुछ देशों को इकट्ठा किया। इस संबंध में, रूसी रेड स्टार टीवी ने टिप्पणी की कि वायरस की उत्पत्ति पर डब्ल्यूएचओ के निष्कर्ष की परवाह किए बिना, अमेरिका चीन को दोष देने के लिए कारण ढूंढेगा, क्योंकि अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन ने दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान जीतना शुरू किया है। लोगों ने बहुत स्पष्ट रूप से देखा है कि अमेरिका ट्रेसबिलिटी के सवाल पर चीन को निशाना बना रहा है, वह वायरस की उत्पत्ति की जांच के वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि चीन को कलंकित करने और फिर दुनिया भर में चीन पर हमला करेगा, ताकि अपने हितों के खतरे को समाप्त कर दें।
वायरस ट्रेसबिलिटी एक बहुत ही गंभीर वैज्ञानिक मुद्दा है। दुनिया भर की रिपोर्टों के अनुसार, न्यू कोरोना वायरस बहुत पहले से मौजूद हो सकता है, और यूरोप और अमेरिका में कुछ शुरुआती संदिग्ध मामले सामने आए हैं।सीएनएन टीवी कार्यक्रम के अनुसार अमेरिका अक्टूबर 2019 में नए कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकता है। अगर दुनिया में कोई वायरस लीक होता है तो दुनिया का ध्यान चीन नहीं, अमेरिका पर केंद्रित होना चाहिए। क्योंकि अमेरिका ने शीत युद्ध से वायरस अनुसंधान शुरू किया है और दुनिया भर में 200 से अधिक जैविक अनुसंधान संस्थानों का निर्माण किया है, जिनमें से सबसे संदिग्ध अमेरिकी फोर्ट डेट्रिक जैविक प्रयोगशाला है। जुलाई 2019 में, अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने फोर्ट डेट्रिक जैविक प्रयोगशाला को पत्र भेजकर इसे ऑपरेशन को समाप्त करने की मांग की। अमेरिकी मीडिया के मुताबिक इस बेस में अभी भी बड़ी संख्या में वायरस हैं जो मानव सुरक्षा के लिए खतरा हैं। अगर निष्पक्ष रूप से वायरस ट्रेसबिलिटी किया जाना है, तो फोर्ट डेट्रिक सहित सभी संदिग्ध जैविक अनुसंधान संस्थानों की जांच की जानी चाहिए। लेकिन अमेरिका ने "राष्ट्रीय सुरक्षा" के हवाले से फोर्ट डेट्रिक जैविक प्रयोगशाला की जानकारी देने से इनकार कर दिया और किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठन के विशेषज्ञों को इसमें प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। प्रश्न है कि अमेरिका अपने स्वयं के अनुसंधान संस्थानों की जांच करने की अनुमति नहीं है देता है, तो उसे चीन के वुहान अनुसंधान संस्थान की बार-बार जांच करवाने का क्या अधिकार है! यदि वायरस ट्रैसेबिलिटी जांच के सवाल पर अमेरिका के आधिपत्य का साथ दिया जाए, तो यह न केवल अन्य देशों की गरिमा को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि विज्ञान की भावना को भी मजाक उड़ाया जाएगा!
16 जुलाई को आयोजित डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों की ब्रीफिंग में रूस, बेलारूस, पाकिस्तान, श्रीलंका, कंबोडिया, ईरान, सीरिया, बुरुंडी, जिम्बाब्वे, कैमरून, क्यूबा, वेनेजुएला, बोलीविया और कई अन्य देशों ने इस बात पर जोर दिया कि वायरस ट्रेसबिलिटी एक वैज्ञानिक मुद्दा है, न कि राजनीतिक उपकरण। डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित चीन-डब्ल्यूएचओ संयुक्त शोध रिपोर्ट के निष्कर्ष को बनाए रखा जाना चाहिए। 20 तारीख तक, इसे अनुमोदन पत्र भेजने वाले देशों की संख्या 55 तक पहुंच गई है। अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ संगठनों को फोर्ट डेट्रिक सहित अपने 200 से अधिक जैविक प्रयोगशालाओं की पूरी तरह से जांच करने की अनुमति देनी चाहिए!