अपने सैनिकों के अवशेष खोज रहा US, भारतीय संस्था की मदद से करेगा काम
दूसरे विश्व युद्ध, वियतनाम युद्ध और कोरियाई युद्ध के दौरान अमेरिका के लगभग 82 हजार सैनिक लापता हुए थे.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| दूसरे विश्व युद्ध, वियतनाम युद्ध और कोरियाई युद्ध के दौरान अमेरिका के लगभग 82 हजार सैनिक लापता हुए थे. इनमें से 400 सैनिक दूसरे विश्व युद्ध (World War II) के दौरान भारत से लापता हुए थे. लंबे समय से अमेरिकी रक्षा विभाग इनके अवशेष खोजने की कोशिश कर रहा था. अब इसी सिलसिले में उसने गुजरात के नेशनल फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) की मदद ली है. लेकिन सवाल ये आता है कि लगभग 8 दशक बाद इन सैनिकों की निशानियां कैसे खोजी जाएंगी?
अपने सैनिकों के अवशेष खोज रहा US
अपने सैनिकों को जीवनकाल में बेहतरीन सुविधाएं देने में अमेरिका का नाम लिया जाता है. वहीं मरणोपरांत भी वहां सैनिकों को पूरा सम्मान मिलता है. यही कारण है कि कई युद्धों में गुमशुदा हुए सैनिकों की तलाश इस देश ने अब भी नहीं छोड़ी है. वो लगातार अलग-अलग देशों से संपर्क कर अपने सैनिकों के अवशेष खोज निकालने की कोशिश में है.
इस भारतीय संस्था की मदद से करेगा काम
इसी सिलसिले में अब अमेरिकी रक्षा विभाग ने गुजरात के गांधीनगर स्थित NFSU के साथ काम करने की पहल की. NFSU के सदस्य रक्षा विभाग के तहत आने वाली एक संस्था डिफेंस प्रिजनर ऑफ वॉर/मिसिंग इन एक्शन अकाउंटिंग एजेंसी (DPAA) की मदद करेंगे.
इन युद्धों के दौरान गायब हुए सैनिक
संस्था युद्ध के दौरान गुमशुदा हुए सैनिकों का डाटा रखती है ताकि शांतिकाल में उन्हें या उनके अवशेष खोज निकाले जा सकें. अमेरिकी रक्षा विभाग के तहत काम करती इस संस्था में कई और संस्थाएं जुड़ी हुई हैं. ये मिलकर दूसरे विश्व युद्ध, वियतनाम युद्ध, शीत युद्द, इराक में अशांति और कोरियाई युद्ध में शामिल और लापता सैनिकों की खोजबीन करती हैं. साथ ही ये खोए हुए सैनिक के परिवार से भी संपर्क में रहती हैं ताकि कोई सुराग मिले तो खोज में आसानी हो सके. फिलहाल ये संस्था 81,800 से ज्यादा ऐसे सैनिकों को खोज रही है.
योजना के साथ चलता है सर्च अभियान
बार-बार ये बात उठ रही है कि आखिर इतने साल बीत जाने पर क्या गुमशुदा सैनिकों के अवशेष या कोई भी जानकारी मिल सकेगी कि उनके साथ क्या हुआ था, या आखिरी वक्त उन्होंने कैसे बिताया था. इसके लिए अमेरिकी रक्षा विभाग ने भारतीय संस्था के साथ मिलकर पूरी योजना बना रखी है. खोज की ये प्रक्रिया देश के नॉर्थईस्ट में चलेगी और 8 बार सर्च किया जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में जिक्र है कि साल 2008 में भी अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड और त्रिपुरा में ये सर्च मिशन चल चुका है.
6 सैनिकों के अवशेष भारत में मिले
सर्च अभियान हवा में नहीं हो रहा, बल्कि समय-समय पर इसमें कामयाबी मिलती रही. जैसे साल 2016 में DPAA और एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के खोज अभियान में अमेरिकी सैनिकों का सुराग मिला. DPAA के अनुसार भारत में अब तक 6 अमेरिकी सैनिकों के अवशेषों का पता लग चुका है, जबकि 306 सैनिकों के बारे में कयास लग रहे हैं कि भारत के ही किसी हिस्से में उनकी मौत हुई होगी. ये संख्या ज्यादा भी हो सकती है.
पहले की जाती है रिसर्च
अमेरिकी संस्था DPAA का सर्च अभियान केवल भारत ही नहीं, बल्कि युद्ध से जुड़े कई देशों में चल रहा है. संस्था सबसे पहले होस्ट देश से संपर्क कर उसे अपने अभियान के बारे में बताती है. इसके बाद वहां के मौसम और कई ऐसी बातों को ध्यान में रखते हुए सर्च मिशन की प्लानिंग की जाती है. मुश्किल मौसम में सर्च नहीं किया जाता है.
ऐसे होती है पड़ताल
अमेरिका से सबसे पहले रिसर्च एंड इन्वेस्टिगेशन टीम आती है, जो जगह पर जाकर बेसिक पड़ताल करती और स्थानीय लोगों से बात करती है. उनके लौटने के बाद फोरेंसिक साइंट के जानकार साइट पर पहुंचते हैं. अगर सैनिकों के अवशेष होने का किसी भी तरह का कोई सुराग मिलता है तो जगह तुरंत खाली कराई जाती है और गहन खोजबीन होती है. जो भी अवशेष मिलते हैं, उसे अमेरिकी लैब में फोरेंसिक टेस्ट के लिए भेज दिया जाता है ताकि कन्फर्म हो सके कि वो अमेरिकी सैनिकों का ही है.
NFSU का इस सर्च मिशन में क्या रोल होगा
ये संस्था अमेरिकी खोजी विभाग को को उनके मिशन में वैज्ञानिक और लॉजिस्टिक सहयोग देगी. अगर कोई अवशेष मिलता है तो उसकी डेंटल और दूसरी फोरेंसिक जांच होगी. इसके लिए NFSU के पास अपना अत्याधुनिक लैब भी है. साथ ही यहां 1,100 कर्मचारी काम करते हैं, जो अपनी फील्ड के जानकार हैं.