ये है पत्थरों की बारिश वाला ग्रह, खगोलविदों ने दी विस्तार से इनकी जानकारी
पहले पृथ्वी से बाहर किसी ग्रह पर जीवन होना एक कल्पना ही लगता था
पहले पृथ्वी (Earth) से बाहर किसी ग्रह पर जीवन होना एक कल्पना ही लगता था. हमारे सौरमंडल से दूर ग्रहों की तलाश एक बहुत मुश्किल काम होता है. कहानियों में भी दूसरे ग्रह मंगल या चंद्रमा की तरह ही सोचे जाते थे. लेकिन उन्नत तकनीकों और अंतरिक्ष में हबल (Hubble Space Telescope) जैसे टेलीस्कोप ने सुदूर ग्रहों की खोज को संभव बनाया और आज ऐसे ऐसे अनोखे ग्रह देखने को मिल रहे हैं जिनके बार में सोचना भी नामुमकिन माना जाता था. हाल ही में हबल की मदद से वैज्ञानिकों ने ऐसे अनोखे ग्रह खोजे हैं जिनमें से एक में बारिश तो होती है, लेकिन वह पानी की नहीं बल्कि पिघले हुए पत्थर (raining rocks ) की होती है वहीं दूसरे ग्रह में टाइटेनियम जैसी धातु की भी वाष्प बन जाती है.
बहुत ज्यादा गर्म हैं ये ग्रह
खगोलविदों के द्वारा खोजे गए दो रहस्यमयी दुनिया वाले ग्रह गुरु ग्रह के आकार के हैं जो हमारी मिल्की वे गैलेक्सी में अपने तारे के इतने पास स्थित हैं कि वे बहुत ही ज्यादा तापमान में भुन रहे हैं. इन ग्रहों के अधिक तापमान के कारण हैं एक में वाष्पीकृत पत्थरों की बारिश होती है तो दूसरे का अधिक तापमान टाइटेनियम जैसे शक्तिशाली धातु को भी वाष्पीकृत कर देता है. इसकी वजह इनके तारों से उनके यहां आने वाली तीखी पराबैंगनी किरणों का विकिरण है.
विविधता की जानकारी
खगोलविदों ने दो अलग अलग शोधपत्रों में इन दो रहस्यमयी संसारों की विस्तार से जानकारी दी है. इससे खगोलविदों को हमारी गैलेक्सी में सुदूर फैली विविधता, जटिलता और अनोखे रसायनशास्त्र के बारे में नई जानकारी मिल सकेगी. इस तरह के बाह्यग्रहों से हमारे ब्रह्माण्ड में ग्रहों के तंत्र में निर्माण प्रक्रिया की विविधता के बारे में पता चल रहा है.
दिन में बादल भी नहीं और रात में तूफान
नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार हबल स्पेस टेलीस्कोप ने WASP-178b को पृथ्वी से 1300 प्रकाश वर्ष की दूरी पर देखा है जहां वायुमंडल में सिलिकॉन मोनोऑक्साइड गैस की भरमार है. यहां दिन के समय में वायुमंडल बादलविहीन होता है जबकि रात के समय गर्म वायुमंडल में दो हजार मील प्रतिघंटे की रफ्तार से भी ज्यादा गति से सुपर हरिकेन जैसे तूफान आते हैं.
पिघले पत्थरों की बारिश
यह ग्रह अपने तारे से ज्वार तौर से बंधा हुआ है. यानि इसका एक हिस्सा हमेशा ही अपने तारे के सामने रहता है जैसा की हमारे चंद्रमा का एक हिस्सा हमेशा ही पृथ्वी के सामने रहता है. खगोलविदों का कहना है कि पीछे के हिस्से में सिलिकॉन मोनोऑक्साइड इतनी ठंडी हो जाती है वह पिघले पत्थरों में बदल जाती है और उसकी बारिश होने लगती है. लेकिन यह ग्रह सुबह शाम भी इतना गर्म होता है कि पत्थरों की वाष्प बन जाती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पहली बार सिलिकॉन मोनोऑक्साइड का ऐसा स्वरूप देखा गया है.
दूसरे में धातु की वाष्प का खेल
दूसरा शोधपत्र एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लैटर्स में प्रकाशित हुआ है. जिसमें खगोलविदों ने एक अति गर्म गुरु ग्रह के बारे में बताया है. KELT-20b नाम का यह बाह्यग्रह 400 प्रकाशवर्ष दूर स्थित है. खगोलविदों ने हबल के जरिए अपने अवलोकनों में पाया कि तारे से पराबैंगनी किरणों की बौछार यहां के वायुमंडल में पृथ्वी की समतापमंडल की तरह ही एक परत बनाए हुए हैं.
ओजोन परत की तरह
पृथ्वी की सतह से 8 से 55 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल की समतापमंडल की शुरुआत में ही ओजोन परत है, KELT-20b में स्थिति कुछ अलग है. इस ग्रह पर आने वाली पराबैंगनी किरणों के कारण वायुमंडल में मौजूद धातुओं को गर्म कर देती है जिससे एक बहुत शक्तिशाली तापीय विपरिवर्तन परत बन जाती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि KELT-20b का उत्सर्जन स्पैक्ट्रम भी दूसरे गर्म गुरु ग्रहों से काफी अलग है. यह एक स्पष्ट प्रमाण है कि ग्रह अलग स्वतंत्र रूप से नहीं रहते हैं, बल्कि उनके तारों का उन पर गहरा असर होता है. खगोलविद लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि जहां गर्म गुरु बहुत गर्म तापमान की वजह से आवासयोग्य नहीं होते हैं, उनसे बाहरी ग्रहों के वायुमंडल को समझने में बहुत मदद मिलती है.