आज भी शोध का विषय बनी हुई है पिरामिडों की संरचना, कैसे मिला सटीक आकार?
मिस्र के पिरामिड अपने ममी के रहस्यों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी वास्तुकला और इंजिनियरिंग के लिए भी लोगों को हैरत में डालते हैं
मिस्र के पिरामिड (Pyramids of Egypt) अपने ममी के रहस्यों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी वास्तुकला और इंजिनियरिंग (Engineering) के लिए भी लोगों को हैरत में डालते हैं. आज से 4500 साल पहले की मिस्र की सभ्यता में ऐसे सरचनाओं का सटीक तरीके से बिना किसी आधुनिक तकनीक के अमली जामा कैसे पहनाया था यह किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं. पुख्ता जानकारी ना होने के बावजूद भी एक शोध ने इस पर विस्तार से रोशनी डाली है कि इतने विशाल पिरामिडों का सटीक संरेखन (Perfect Alignment of Pyramids) किस तरह से संभव बनाया गया होगा.
दिशाओं के साथ संरेखन
गीजा के महान पिरामिड कुफू को ही लिया जाए तो इस पिरामिड के आज भी शोध का विषयआधार की पश्चिम की भुजा पूर्व की भुजा से कुछ लंबी है. हर भुजा औसतन 138.8 मीटर की है. लेकिन हैरत की बात यह है कि ये कुछ ज्यादा सटीकता से सीधी हैं और इनका दिशाओं के साथ संरेखन या अलाइन्मेंट बेहतरीन है.
कितना सटीक संरेखन
पुरातत्वविद और इंजीनियर ग्लेन डैश ने जर्नल ऑफ दे एंसिएंट इजिप्शियन आर्कीटेक्चर में प्रकाशित अपने अध्ययन में बताया कि मिस्र में पिरामिड के निर्माता कुफू पिरामिड के प्रधान दिगबिंदु (Cardinal Points) के अनुसार चाप के चार मिनट या एक डिग्री के 15वें हिस्से से भी ज्यादा सटीक तौर पर संरेखन कर सके थे.
एक गलती भी लेकिन एक समान
वास्तव में गीजा के दो और दाशूर का एक यानि सभी तीन विशालतम मिस्र पिरामिड का संरेखन बहुत ही बेहतरीन है और इस तरह की सटीकता आज के समय में बिना ड्रोन, ब्लूप्रिंट और कम्पूटर की मदद से संभव नहीं हैं. डैश का कहना है कि सभी तीन पिरामिडों में एक ही तरह की गलती है और वह यह कि वे थोड़ी सी कार्डिनल बिंदुओं से घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में घूमे हुए हैं.
कैसे किया गया होगा
इस बारे में बहुत सारे मत प्रस्तुत किए जा चुके हैं कि ऐसा कैसे किया गया होगा. इसमें संरेखन के लिए ध्रुव तारा की सहायता से लेकर सूर्य से आने वालीकिरणों के कारण बनने वाली परछाइयों का भी उपयोग शामिल है. फिर यह स्थापित नहीं किया जा सका कि यह संरेखन हासिल कैसे किया गया होगा.
Equinox का उपयोग
डैश ने इसकी व्याख्या के लिए दूसरा सरल विचार रखा है. उनका अध्ययन सुझाता है कि 4500 साल पहले मिस्र के लोगों ने सटीक संरेखन के लिए ईक्यूनॉक्स या सम्पात, यानि साल में दो वे दिन जब दिन और रात की अवधि समान होती है, का उपयोग किया होगा. साल में दो ही बार ऐसा मौका आ पाता है जब पृथ्वी की भूमध्यरेखा का तल सूर्य की डिस्क के केंद्र से होकर गुजर पाता है.
नजरअंदाज किया जाता रहा इसे
समताप या ईक्वूनॉक्स का मापन के संरेखन की पद्धति की संभावना को पहले नजरअंदाज किया जाता रहा था क्योंकि यह माना जाता था कि इसमें पर्याप्त सटीकता नहीं होती है. डैश के काम ने दर्शाया है कि समताप की पद्धति कैसे काम कर सकती है. इसें एक ग्नोमन नाम की छड़ी का उपयोग होता है.
इसके लिए डैश खुद अपने प्रयोग किए और 22 सितंबर 2016 की परछाई का उपयोग किया और नियमित अंतराल पर पड़ने वाली परछाइयों का अध्ययन किया और उन बिंदुओं से बने वक्र जरिए सटीकसंरेखन हासिल किया जिसे पूर्व से पश्चिम जाने वाली सटीक रेखा मिल सकी. इसे इंडियन सर्किल पद्धति भी कहते हैं. लेकिन इस बात के प्रमाण नहीं मिले हैं मिस्र के लोगों ने इसी पद्धति का ही उपयोग किया होगा. लेकिन इससे यह स्पष्ट जरूर हुआ की इस सरल पद्धति से पिरामिड जैसे विशाल पिंड बनाए जा सकते हैं.