हमारी अपनी आकाशगंगा से धरती पर कुछ विचित्र सिग्नल आ रहे हैं. वो बेहद कम समय के लिए...यानी कुछ मिलिसेकेंड्स के लिए. वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की-वे के अंदर ही कोई ऐसी सभ्यता या एलियन ग्रह तो नहीं है, जहां से हमें ये संदेश मिल रहे हैं. वैसे तो ये कहानी शुरु होती है पिछले साल से...लेकिन इन सिग्नलों में आ रहे संदेशों को समझने का प्रयास अब भी चल रहा है. क्योंकि ये नया है.
28 अप्रैल 2020 धरती पर मौजूद दो रेडियो टेलिस्कोप ने रेडियो किरणों की तीव्र लहर को दर्ज किया. यह कुछ मिलिसेकेंड्स के लिए था, फिर अचानक गायब हो गया. लेकिन इन रेडियो किरणों की खोज एक महत्वपूर्ण खोज थी. पहली बार धरती के इतने नजदीक फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) का पता चला था.
ये संदेश हमारी धरती से मात्र 30 हजार प्रकाश वर्ष की दूरी से आ रहे हैं. यानी संदेश हमारी आकाशगंगा में मौजूद किसी स्थान से पैदा हो रहे हैं. इस विचित्र रेडियो सिग्नलों को द कनाडियन हाइड्रोजन इंटेंसिटी मैपिंग एक्सपेरीमेंट (CHIME) और द सर्वे फॉर ट्रांजिएंट एस्ट्रोनॉमिकल रेडियो एमिशन 2 (STARE2) ने रिकॉर्ड किया था.
मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में फिजिक्स के असिसटेंट प्रोफेसर कियोशी मासुई ने कहा कि विचित्र रेडियो तरंगों के आने के समय तो CHIME का मुंह भी उधर नहीं था. उसने फिर भी इस रेडियो तरंगों को कैच किया. लेकिन STARE2 ने इसे देखा भी, रिकॉर्ड भी किया, रिसीव भी किया. दुनिया में इन दोनों जैसे कुछ ही रेडियो एंटीना हैं जो इस तरह के काम करने में सक्षम हैं.
कनाडा में स्थित मैक्गिल यूनिवर्सिटी में फिजिक्स की डॉक्टोरल शोधार्थी प्रज्ञा चावला कहती हैं कि अब तक फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) हमेशा ही गैलेक्सी के बाहर दर्ज किए जाते रहे हैं. वो इतने ज्यादा प्रकाश वर्ष दूर होते हैं कि उनकी स्टडी मुश्किल है. लेकिन अप्रैल 2020 में रिकॉर्ड किए गए फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) का मामला अलग है. वैज्ञानिक इसकी उत्पत्ति का पता लगाने ही वाले हैं.
प्रज्ञा कहती हैं कि जैसे ही फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) की उत्पत्ति का पता चलेगा, उससे आकाशगंगा को लेकर कई नए खुलासे होंगे. इससे पहले ऐसा 2007 में हुआ था. ऑस्ट्रेलिया में पार्क्स रेडियो डिश के डेटा पर डंकन लोरीमर और डेविड नार्केविक काम स्टडी कर रहे थे. तब भी उन्हें ऐसे ही एक फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) का पता चला था.
कियोशी मासुई कहते हैं कि हम 30 हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर से आने वाले सिग्नल को ज्यादा अच्छे से स्टडी कर सकते हैं. जबकि आकाशगंगा के बाहर लाखों और करोड़ प्रकाशवर्ष की दूरी से आने वाले रेडियों संदेशों को समझना आसान नहीं है. ये बहुत तेजी से दिखते हैं, उससे ज्यादा तेजी से गायब हो जाते हैं. लेकिन हम बहुत जल्द इस विचित्र सिग्नल को भेजने वाली जगह का खुलासा करेंगे.
कियोशी कहते हैं कि कई बार तो फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) अपने सूरज से 10 करोड़ गुना ज्यादा ताकतवर होते हैं. वो इतनी ऊर्जा निकाल सकते हैं जो सूरज 100 साल में निकालेगा. वह भी एक सेकेंड के हजारवें हिस्से में. तो आप ही सोचिए जो इतना ताकतवर हो, उसे कुछ मिलिसेकेंड्स में पकड़ना कितना मुश्किल है. उसे देखना तो और भी असंभव जैसा है.
प्रज्ञा चावला कहती हैं कि इस सारी दिक्कतों और समस्याओं के बावजूद दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) को लेकर नॉलेज बैंक बना लिया है. क्योंकि हमारी आकाशगंगा के बाहर ऐसी रेडियो तरंगों का विस्फोट होता रहता है. रेडियो लाइट्स कुछ माइक्रो से मिलिसेकेंड्स तक ही दिखते हैं. अगर सारे वैज्ञानिक इन रेडियो तरंगों को खोज में लग जाएं तो पता चलेगा कि हर दिन अंतरिक्ष में ऐसे हजारों संदेश आ जा रहे हैं.
कियोशी कहते हैं कि हो सकता है कि ये किसी न्यूट्रॉन स्टार की तरफ से भेजा गया मैसेज हो. क्योंकि ये छोटे और बेहद ऊर्जावान तारे होते हैं. हालांकि ये कोई एक वजह हो सकती है. जरूरी नहीं कि ऐसा ही हुआ हो. आमतौर पर फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) की उत्पत्ति वाली जगह एक छोटा न्यूट्रॉन स्टार की तरह होता है. इसे मैग्नेटार (Magnetar) कहते हैं. इनकी चुंबकीय शक्ति धरती से 5000 ट्रिलियन गुना ज्यादा होती है.
मैग्नेटार ब्रह्मांड के सबसे ताकतवर चुंबक होते हैं. आमतौर पर इनकी वजह से ही फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) निकलते हैं. क्योंकि इनके चारों तरफ गामा और एक्सरे होते हैं. इनके पास से उच्च क्षमता वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन निकलता है. जो किसी भी ग्रह से जाकर टकरा सकता है. लेकिन आमतौर पर यह बेहद कम समय के लिए होता है.
वैज्ञानिकों ने इस फास्ट रेडियो बर्स्ट (Fast Radio Burst - FRB) का नाम FRB 200428 रखा है. यह वलपेकुला नक्षत्र (Vulpecula Constellation) से आया है. ऐसा माना जा रहा है कि यह एक मैग्नेटार से निकला होगा, जिसका नाम SGR 1935+2154 है. इसकी दोबारा जांच करने के लिए चीन के FAST यानी फाइव हंड्रेड मीटर अपर्चर स्फेरिकल रेडियो टेलिस्कोप की मदद ली गई थी. इसने भी विचित्र रेडियो सिग्नलों के आने की पुष्टि की.