Scientists: वैज्ञानिकों ने गेहूं उत्पादन को दी तकनीकी जानकारी
गेहूं उत्पादन को दी तकनीकी जानकारी
कृषि विज्ञान केंद्र प्रथम की ओर से निकरा परियोजना के तहत फखरपुर ब्लॉक के राजा बौंडी व रानी बाग में परीक्षण के लिए बुआई गई गेहूं प्रजाति एच डी-3271 पर रविवार को को प्रक्षेत्र दिवस मनाया गया। इस दौरान वैज्ञानिकों ने किसानों को तकनीकी पहलुओं की जानकारी भी दी।
केवीके अध्यक्ष व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विनायक प्रताप शाही ने ने बताया कि बुआई देसी हल या सीडड्रिल से ही करनी चाहिए। छिड़कवां विधि से बोने से बीज ज्यादा लगता है तथा जमाव कम होता है। इसके अलावा निराई-गुड़ाई में असुविधा तथा असमान पौध संख्या होने से उपज कम हो जाती है। इसलिए इस विधि को नहीं अपनाना चाहिए। आजकल सीडड्रिल से बुआई काफी लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि इससे बीज की गहराई तथा पंक्तियों की दूरी नियंत्रित रहती है। इससे जमाव अच्छा होता है। विभिन्न परिस्थितियों में बुआई के लिए फर्टिसीड ड्रिल, जीरो-टिल ड्रिल या शून्य फर्बड्रिल आदि मशीनों का प्रचलन बढ़ रहा है। पछेती बुआई की परिस्थितियों में भी अधिकतर किसान सामान्य प्रजातियों को ही उगाता है। जिनसे उनकी उत्पादकता काफी कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में अधिक पैदावार लेने के लिए देरी से बुआई के लिए बताए गए प्रजातियों को ही बोना चाहिए।
डॉ. पीके सिंह ने बताया कि इस प्रजाति की खास बात यही है की गेहूं में लगने वाले समस्त रतुआ रोग की यह प्रतिरोधी प्रजाति है व चपाती बनाने के लिए उपयुक्त है। यंग प्रोफेशनल कुशाग्र ने गेहूं की कटाई का उपयुक्त समय बताया।