वैज्ञानिकों ने तैयार की नई किस्म, अब गेहूं को नहीं लगेगा रतुआ रोग
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बरठीं (बिलासपुर)। किसानों की मेहनत पर पीला और भूरा रतुआ रोग की मार को देखते हुए कृषि विज्ञान और अनुसंधान केंद्र बरठीं के वैज्ञानिकों ने रतुआ प्रतिरोधक गेंहू की नई किस्म तैयार की है। इसे एचपी डब्ल्यू 368 नाम दिया गया है।
ट्रायल के तौर पर इस किस्म को बरठीं में पांच हजार वर्ग मीटर में लगाया गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि ट्रायल सफल रहा है। यह किस्म पीले और भूरा रतुआ रोग से मुकाबला करने में सक्षम है और इसकी पैदावार दूसरी किस्मों के मुकाबले अधिक है। इस किस्म का बीज अगले रबी सीजन में किसानों को दिया जाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार किसान इस किस्म की खेती कर ज्यादा उत्पादन कर मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी बिजाई समय से पहले भी की जा सकती है। इसका औसत कद 10 सेंटीमीटर है। यह करीब 156 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी है और यह पीला रतुआ का मुकाबला करने में भी सक्षम है। वर्तमान में लगाई जा रही गेहूं की किस्मों में भूरा और पीला रतुआ रोग लगता है। इन दोनों रोगों की वजह से गेहूं को काफी नुकसान होता है। फसल को बीमारी से बचाने के लिए किसानों को समय-समय पर स्प्रे करना पड़ता था। अगर किसान फसल में बीमारी लगने पर समय पर स्प्रे न करें तो इन दोनों रोगों की वजह से गेहूं का झाड़ काफी कम हो जाता है।
ऐसे में किसान अगर एच पी डब्ल्यू 368 किस्म लगाते हैं, तो दूसरी किस्मों को लगाने पर स्प्रे पर आने वाला खर्च बचेगा। पीला रतुआ रोग एक खास तरह के फफूंद (पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस) से होता है। यह गेहूं की पैदावार को 70 फीसदी तक प्रभावित कर सकता है।
पीला रतुआ रोग से हिमाचल सहित उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में 30 फीसद तक फसल बर्बाद होती थी। इस बीमारी में गेहूं का झाड़ पीला पड़ जाता है और इसकी ग्रोथ रुक जाती है। आगामी रबी सीजन में पीला रतुआ प्रतिरोधक किस्म किसानों को देंगे, ताकि किसानों को उनकी मेहनत का भरपूर लाभ मिल सके।
-डॉ. सुमन कुमार, प्रभारी कृषि विज्ञान और अनुसंधान केंद्र बरठीं।