वैज्ञानिकों ने ढूंढे ऐसा लक्षण जो कोरोना वायरस के 'सुपर स्प्रेडर' की कर सकते है पहचान
वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर द्वारा बनाए गए मॉडल का उपयोग करते हुए विभिन्न लोगों में छींक का अनुकरण किया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर द्वारा बनाए गए मॉडल का उपयोग करते हुए विभिन्न लोगों में छींक का अनुकरण किया है। इस अध्ययन से उन्होंने उस जैविक लक्षण की पहचान की है जो किसी व्यक्ति को किसी वायरस का सुपर स्प्रेडर बना सकता है। इससे कोरोना वायरस के सुपर स्प्रेडर की पहचान भी की जा सकती है।
इस अध्ययन में लोगों की शारीरिक विशेषताओं और उनकी छींक के कारण निकले कण (बूंदें) हवा में कितनी दूर तक पहुंचते हैं, इसके बीच संबंध निर्धारित किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रमुख तौर पर लोग श्वसन तंत्र से निकले कणों के संपर्क में आने से (छींक या खांसी से) कोरोना से संक्रमित होते हैं।
यह अध्ययन फिजिक्स ऑफ फ्लूड्स नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में शामिल रहे अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा (यूसीएफ) के शोधार्थियों के अनुसार रुकी हुई नाक या सभी दांत, जैसी लोगों की विशेषताएं उनकी वायरस को प्रसारित करने की क्षमता को बढ़ा सकती हैं।
अध्ययन के सह लेखक माइकल किंजेल कहते हैं कि ये ड्रॉपलेट कितनी दूर तक जा सकते हैं, इसे प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में और जानकारी वायरस के संक्रमण को रोकने में मदद कर सकती है। यह ऐसा पहला अध्ययन है जो यह समझने पर केंद्रित है कि छींक या खांसी से निकले कण एक दूरी तक क्यों जाते हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि शरीर में कॉम्प्लेक्स डक्ट सिस्टम की तरह कुछ कारक होते हैं जो नाक से संबंधित होते हैं और निकलने वाले कणों के वेग को कम करते हैं। इससे ड्रॉपलेट ज्यादा दूरी तक नहीं पहुंच पाते हैं। उदाहरण के तौर पर जब नाक एकदम साफ होती है, ड्रॉपलेट की गति और दूरी दोनों घट जाती हैं।