वैज्ञानिकों ने कैंसर पीड़ितों के इलाज के लिए खोज निकाला अनोखा तरीका, Poop ट्रांसप्लांट इम्यूनोथैरेपी होगा फायदेमंद

वैज्ञानिकों ने कैंसर के मरीजों के लिए इलाज का अनोखा तरीका खोज निकाला है

Update: 2021-02-17 14:16 GMT

वैज्ञानिकों ने कैंसर के मरीजों के लिए इलाज का अनोखा तरीका खोज निकाला है. जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. ये तरीका कारगर भी है. ये नुस्खा उन कैंसर मरीजों को फायदा देगा जिन्हें स्किन कैंसर है. यानी एडवांस्ड मेलानोमा (Advanced Melanoma). आइए जानते हैं कि आखिरकार ये किस तरह का इलाज है, इससे किस तरह से फायदा होगा? 

यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर हिलमैन के प्रोफेसर और कैंसर इम्यूनोलॉजिस्ट डॉक्टर हसनी जरॉर कहते हैं कि अगर हम कैंसर मरीजों का पूप ट्रांसप्लांट यानी मल प्रत्यारोपण करें तो 40 फीसदी मरीजों को बचाया जा सकता है. पूप ट्रांसप्लांट (Poop Transplant) सामान्य भाषा में कहते हैं, जबकि साइंस की भाषा में इसे फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (Fecal Microbiota Transplantation) कहते हैं.  
डॉक्टर हसनी जरॉर ने बताया कि इससे आंतों में रहने वाले कैंसर के माइक्रोऑर्गेनिज्म यानी सूक्ष्मजीवी निष्क्रिय होने लगते हैं. साथ ही सही दवा या इलाज पद्धत्ति का उपयोग किया जाए तो मरीज ज्यादा दिनों तक जिंदा रह सकता है. यह स्टडी हाल ही में साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.  
डॉक्टर हसनी जरॉर ने बताया कि आंतों में मौजूद सही और कैंसर से लड़ने वाले सूक्ष्मजीव विकसित हो गए तो इससे मरीज के शरीर में कैंसर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है. इससे कैंसर के फैलने को रोका जा सकता है या फिर ट्यूमर को कम किया जा सकता है. (फोटोःगेटी)
आइए जानते हैं कि ये होता कैसे है. इंसानों का पूप ट्रांसप्लांट करने से आंतों में कुछ खास तरह के सूक्ष्मजीव पैदा होते हैं. ये सूक्ष्मजीव यानी माइक्रोऑर्गेनिज्म कैंसर से लड़ते हैं. डॉक्टर हसनी जरॉर ने बताया कि 15 कैंसर मरीजों के पूप ट्रांसप्लांट किए. इससे पहले इनका शरीर कैंसर के लिए दी जा रही दवाओं पर असर नहीं कर रहा था. 
ट्रांसप्लांट के बाद 15 में से 6 मरीजों के शरीर ने दवाओं का साथ देना शुरू कर दिया. उनके शरीर में ट्यूमर कमजोर होने लगे. बीमारी नियंत्रित होने लगी. इसकी वजह से इन मरीजों के शरीर में प्राकृतिक तौर पर कैंसर से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता एक साल तक टिकी रही. इन्हें पहले की तरह हैवी डोज की दवाएं नहीं लेनी पड़ी. 
पूप ट्रांसप्लांट के बाद कैंसर मरीजों के शरीर में खास तौर के इम्यून सेल्स यानी प्रतिरोधक कोशिकाओं का विकास होने लगा. एंटीबॉडीज बनने लगीं. ये इम्यून सेल्स और एंटीबॉडीज मिलकर कैंसर को दबाने लगे. हालांकि, डॉक्टर हसनी जरॉर का कहना है कि पूप ट्रांसप्लांट सारे मरीजों के लिए फायदेमंद नहीं रहा. जरूरी नहीं है कि ये सबको फायदा करे भी. लेकिन अगर हम 40 फीसदी लोगों को भी जीने का ज्यादा मौका दे सकते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं है.
डॉक्टर जरॉर ने बताया कि शरीर में कोशिकाएं IL-8 नाम का केमिकल निकालते हैं. ये केमिकल कैंसर से लड़ने में खासी मदद करते हैं. जब पूप ट्रांसप्लांट होता है तब शरीर में इन केमिकल्स के निकलने का दर बढ़ जाता है. इसकी वजह से शरीर में कैंसर निष्क्रिय होने लगता है. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है.


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