नई स्टडी में हुआ आश्चर्यजनक खुलासा, धरती के पास है खुद का दिमाग, और...

Update: 2022-02-21 12:26 GMT

नई दिल्ली: वैज्ञानिकों के एक समूह ने ऐसा खुलासा किया है, जिससे आपका दिमाग हिल जाएगा. इनका दावा है कि धरती (Earth) की अपनी बुद्धि है. उसका अपना दिमाग और बुद्धिमत्ता है. वह एक इंटेलिजेंट ग्रह है. यानी धरती जीवित है. यह स्टडी हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुई है. जिसमें ग्रहीय बुद्धिमत्ता (Planetary Intelligence) की बात कही गई है. यानी ग्रह के पूरे ज्ञान और तार्किक क्षमता की चर्चा की गई है. 

सबूत के तौर पर साइंटिस्ट बताते हैं कि जमीन के नीचे फंगस (Fungus) की एक विशालकाय परत है. जो पूरी धरती में फैली हुई है. ये आपस में संदेशों का आदान-प्रदान करती हैं. इनका एक बड़ा नेटवर्क है. यह एक अदृश्य बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करती हैं. जिसकी वजह से पूरी धरती की स्थितियां बदलती रहती हैं. अगर इस तरह की प्रक्रियाओं को पकड़कर उनकी जांच की जाए तो हम जलवायु परिवर्तन (Climate Change), वैश्विक गर्मी (Global Warming) जैसी घटनाओं पर धरती की प्रतिक्रया को समझ सकते हैं. 
हमारी पृथ्वी पर शुरुआती जीवन यानी फंगस जैसे जीवों से लेकर इंसानों जैसे जटिल जीव मौजूद हैं. इंसानों द्वारा निर्मित पर्यावरण प्रदूषण से लेकर प्लास्टिक संकट तक की गवाह रही है हमारी धरती. वह लगातार किसी न किसी तरीके से संतुलन बनाने के लिए किसी न किसी तरह की प्रक्रियाओं को जन्म देती रहती है. अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर में फिजिक्स के प्रोफेसर एडम फ्रैंक ने कहा कि इंसान अभी तक धरती की भलाई के लिए सामुदायिक स्तर पर नहीं जुट पाया है. जैसे वह त्योहारों के लिए साथ आता है. या फिर बीमारियों के खिलाफ होता है. 
उदाहरण के लिए आप ऐसे समझ सकते हैं. मान लीजिए पेड़-पौधे एक समुदाय हैं. उन्होंने खुद को जीवित रखने के लिए वैश्विक स्तर पर एक प्रक्रिया शुरू की. जिसे फोटोसिंथेसिस (Photosynthesis) कहते हैं. प्रक्रिया सामुदायिक स्तर पर पूरी धरती पर हो रही है. बदले में क्या मिला...Oxygen. बस फिर क्या था. ऑक्सीजन ने हमारी धरती की पूरी प्रक्रिया को ही बदल दिया. असल में पेड़-पौधे काम तो अपने लिए कर रहे हैं, लेकिन वो धरती की बुद्धिमत्ता का एक हिस्सा हैं. 
धरती पर मौजूद जीवन को अगर सामूहिक तौर पर देखा जाता है, तो उसे बायोस्फेयर (Biosphere) कहते हैं. यही है जो धरती की बुद्धिमत्ता, दिमाग, ब्रेन, तार्किक शक्ति और संज्ञान को दर्शाता है. जैसे ही बायोस्फेयर का जन्म हुआ, धरती को एक नया जीवन मिल गया. धरती खुद से अपने बारे में सोचने लगी. वह संतुलन बनाने लगी. जब धरती पर किसी एक कोने में कुछ गड़बड़ होता है, तो दूसरे कोने में वह कुछ ऐसा कर देती है, जिससे संतुलन बन जाता है. 
स्टडी में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर में फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी के प्रोफेसर एडम फ्रैंक, हेलेन एफ, फ्रेड एच. गोवेन, प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट के डेविड ग्रिन्स्पून और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की सारा वॉकर शामिल हैं. स्टडी करते समय इन वैज्ञानिकों ने बस यह ध्यान दिया कि बायोस्फेयर कैसे धरती को बदल रहा है. धरती किस तरह से बदलाव पर प्रतिक्रिया दे रही है. वह किसी तरह से संतुलन बनाने का प्रयास कर रही है. इसे समझाने के लिए वैज्ञानिकों ने चार स्टेज गिनाए हैं...
करोड़ों साल पहले धरती पर जीवन नहीं था. तकनीक नहीं थी. सूक्ष्मजीव यानी माइक्रोब्स थे लेकिन पेड़-पौधे नहीं थे. उनका आना बाकी था. धरती इस तरह का जीवन नहीं था, जो उसके वायुमंडल, जल मंडल या फिर अन्य ग्रहीय ताकतों पर असल डाल पाता. इसलिए इस समय को अपरिपक्व जीवमंडल कहा जाता है. 
ये है आज की धरती का असली चेहरा. यानी उसका चरित्र. इस समय जैविक और टेक्नोलॉजिकल प्रजातियां मौजूद हैं. इसकी शुरुआत 250 करोड़ साल से लेकर 54 करोड़ साल के बीच शुरु हुई. महाद्वीप बने. पेड़-पौधों की शुरुआत हुई. फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया शुरू हुई. ऑक्सीजन बना. वायुमंडल शुरू हुआ. ओजोन लेयर बनी. बायोस्फेयर बनता रहा. जिसकी वजह से धरती के वायुमंडल पर असर पड़ने लगा. धरती पर इसका असर पड़ने लगा.
धरती के अपरिपक्व जीवमंडल की तरह हम इस समय तकनीकी मंडल के अपरिपक्व काल में जी रहे हैं. यानी धरती पर संचार है, यातायात है. तकनीकें हैं. बिजली है. कंप्यूटर्स हैं. आपस में जुड़े भी हैं. लेकिन यह अभी अपरिपक्व है. लेकिन ये सारे किसी न किसी रूप में धरती से ऊर्जा ले रहे हैं. लेकिन अपनी तरफ से कोई फायदा धरती को नहीं दे रहे हैं. बल्कि नुकसान ही पहुंचा रहे हैं. लंबे समय में यह तकनीकी मंडल खुद का विनाश करेगा. अगर यह पृथ्वी के लिए फायदेमंद नहीं हुआ तो. 
यह उस समय की बात हो रही है, जब धरती भविष्य में होगी. एडम फ्रैंक बताते हैं कि सभी टेक्नोलॉजिकल सिस्टम धरती को लाभ पहुंचाएंगे. वैश्विक रूप से जितना धरती से लेंगे, उससे कहीं ज्यादा धरती को वापस करेंगे. यानी सिंबियोटिक रिश्ता निभाएंगे. एक दूसरे के लिए सपोर्ट बनेंगे. तब जाकर परिपक्व तकनीकी मंडल का निर्माण होगा. 
एडम फ्रैंक ने कहा कि ग्रह हमेशा परिपक्व और अपरिपक्व स्थितियों से गुजरते हुए ही विकसित होता है. किसी भी ग्रह की बुद्धिमत्ता तभी बनती है जब उसके चारों तरफ मैच्योर यानी परिपक्व सिस्टम काम कर रहे हों. जैसे हमारा जीवमंडल (Biosphere). बड़ा सवाल ये है कि हम मैच्योर बायोस्फेयर तक तो पहुंच गए लेकिन मैच्योर टेक्नोस्फेयर तक कैसे पहुंचे, इसका अंदाजा अभी तक हम इंसानों को नहीं हो पाया है.
धरती की बुद्धिमत्ता एक बेहद जटिल सिस्टम है. सवाल ये भी उठता है कि किसी ग्रह की बुद्धिमत्ता खुद को कैसे चलाती है. मैच्योर टेक्नोस्फेयर यानी धरती पर मौजूद सभी टेक्नोलॉजिकल सिस्टम को किसी तरह से धरती के साथ जोड़ना ताकि हमारी पृथ्वी को इससे फायदा हो. ऐसा न हो कि तकनीकी सिस्टम सिर्फ धरती से फायदा लें. छोटे तकनीकी सिस्टम जैसे- फैशन से संबंधित कोई वस्तु. लेकिन बड़ी और जटिल तकनीकी सिस्टम हैं- जंगल, इंटरनेट, फाइनेंसियल मार्केट और इंसानी दिमाग. 
एडम कहते हैं कि जब सारे जटिल सिस्टम धरती से जुड़ जाएंगे, तब धरती और ज्यादा स्मार्ट हो जाएगी. इससे फायदा यह होगा कि धरती को होने वाले नुकसान की वजह से इन सिस्टम्स को भी नुकसान होगा. तब वो धरती के हिसाब से काम करेंगे. धरती के साथ-साथ उस पर मौजूद सिस्टम्स को भी यह पता चलेगा कि इस काम से फायदा और इससे नुकसान होगा तब बायोस्फेयर और टेक्नोस्फेयर दोनों मिलकर धरती की भलाई के लिए काम करेंगे. 
एडम ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ खतरनाक रसायनों को प्रतिबंधित करने और सौर ऊर्जा की तरफ बढ़ने के बजाय हमारे पास किसी भी तरह का मैच्योर टेक्नोस्फेयर अभी नहीं बना है. समस्या ये है कि हम तकनीकी रूप से विकसित तो हो रहे हैं. लेकिन उससे धरती को कोई फायदा नहीं हो रहा है. जब हमारे कंप्यूटर्स, स्मार्टफोन, सैटेलाइट्स, यातायात के साधनों आदि से धरती को फायदा होगा तब मैच्योर टेक्नोस्फेयर बनेगा. धरती और बुद्धिमान हो जाएगी. 


Tags:    

Similar News

-->