वैज्ञानिकों द्वारा खुलासा: सामने आया 18000 साल पुराना शंख, किस समय का कर रहे संगीत पर शोध

90 सालों से भुलाया जा चुका 18 हजार साल पुराना एक शंख फ्रांस के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम ऑफ टोउलोउस में रखा गया था.

Update: 2022-06-12 10:15 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | 90 सालों से भुलाया जा चुका 18 हजार साल पुराना एक शंख फ्रांस के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम ऑफ टोउलोउस में रखा गया था. वैज्ञानिकों ने पाया कि वो कोई आम शंख नहीं है, बल्कि एक ऐसा वाद्य यंत्र भी है जिसे बजाया भी जा सकता है. 1930 में यह शंख पाइरेनीस पर्वत की तलहटी की मार्सौलस गुफा में पाया गया था. उसके बाद से अब तक इस शंख को संग्रलालय में सुरक्षित रखा गया था. हाल ही में एक वैज्ञानिक का ध्‍यान शंख की ओर गया तो उन्‍होंने शंख को बजाकर देखा. अब शंख से निकली ध्‍वनि के माध्‍यम से वैज्ञानिक 18 हजार साल पहले की संगीत सभ्यता के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे. दिखने में यह प्राचीन शंख मानव खोपड़ी की तरह दिखता है. इस शंख का आकार आम शंखों अलग है. वैज्ञानिक कहते हैं कि इस शंख का इस्‍तेमाल प्राचीन काल में धार्मिक खुशी के मौकों पर किया जाता रहा होगा.

वैज्ञानिकों का कहना है कि 1931 में जब पहली बार इसे देखा गया तो एक लव कप के रूप में इसकी व्याख्या की गई थी, जिसे खुशी के मौकों पर वाद्य यंत्र के रूप में इस्‍तेमाल किया जाता था. उस समय लोग लविंग कप का इस्तेमाल किया करते थे उसमें पेय डालकर पीते थे. हालांकि यह अलग प्रकार का एक शंख है जिस पर खास तरह की कलाकृतियां भी बनी हुई हैं जो इसे खास बनाती हैं.

वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि यह अब तक का सबसे पुराना वाद्य यंत्र हो सकता है. वर्षों तक इसे संभालकर रखा गया था लेकिन अब जब इसे बजाया गया तो इसे काफी अच्छी आवाज निकली. इसकी आवाज की एक रिकॉर्डिंग भी जारी की गई है. इस समुद्री घोंघे के शेल की टिप टूटी हुई है, जिससे इसका मुंह 1.4 इंच डायमीटर का हो गया है. यह भी माना जा रहा है कि यह गलती से नहीं टूटा है.

वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका मुंह एक समान नहीं है इस पर एक ऑर्गैनिक कोटिंग भी है, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसके आगे एक माउथपीस भी लगा होगा. कार्बन डेटिंग के आधार पर माना जा रहा है कि यह शंख 18 हजार साल पुराना है. यह भी कहा जाता है कि हो सकता है कि जिन लोगों ने इसे बनाया, वो इसका इस्तेमाल संगीत के लिए न करते हों.

कुछ ऐसी चीजें भी मिली हैं कि, जिनसे अंदाजा लगाया जाता है कि इन्हें इस्तेमाल करने वाले लोग घुमंतु शिकारी रहे होंगे जो अटलांटिक के तट पाइरेनीस के बीच रहते होंगे. वैज्ञानिक अब देखना चाहते हैं कि इस शंख की दूरी कितनी दूर जा सकती है इसके 3डी रेप्लिका के आधार पर इसके असली आकार को खोजने की कोशिश भी की जाएगी.

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