शोधकर्ताओं ने की नई तकनीक विकसित, 30 सेकेंड में साफ हो जाएगा प्रदूषित पानी
भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइसर) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है.
भोपाल। भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइसर) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है,जिससे प्रदूषित पानी मात्र 30 सेकेंड में साफ हो जाएगा। इस तकनीक से पानी में घुले उन सूक्ष्म दूषित कणों को भी बाहर किया जा सकेगा, जिसकी अभी लंबी प्रक्रिया है। यह एक ऐसा कार्बनिक पालिमर है, जो पानी में घुलनशील जहरीले और अदृश्य कणों को सोख लेता है। इस सस्ती और आसान प्रक्रिया से कम समय में ही पानी दोबारा उपयोग योग्य हो जाएगा, जो कि सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों के लिए फायदेमंद साबित होगी। इस तकनीक को आइसर के रसायन विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डा. अभिजीत पात्रा और शोधार्थी अर्कप्रभा गिरी व शुभा विश्वास की टीम ने मिलकर तीन वर्ष के शोध के बाद तैयार किया है।
विज्ञानियों ने तीन प्रकार के रसायन ट्रिपटीसीन, ड्रायक्लोरोमीथेन और एल्युमीनियम क्लोराइड को मिलाकर कार्बनिक पालिमर तैयार किया है। जिसके मूल में कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन और सल्फर होता है। जो प्रदूषित पानी से डाई आदि जैसे घातक सूक्ष्म कणों को सोखता है। कार्बनिक पालिमर से पानी को शुद्ध करने की इस प्रक्रिया को सोखना नाम दिया गया है। यह शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस जर्नल में प्रकाशन किया जा चुका है।
ऐसे होता है पानी प्रदूषित : विज्ञानी डा. पात्रा बताते हैं कि घरेलू कचरे, खेती और औद्योगिक क्षेत्रों द्वारा छोड़े गए कचरे के कारण जल प्रदूषित होता है। इस कचरे में बड़ी संख्या में कार्बनिक और अकार्बनिक सूक्ष्म प्रदूषक पाए जाते हैं। कार्बनिक सूक्ष्म प्रदूषक पानी में आसानी से घुल तो जाते हैं लेकिन उन्हें अलग करने की काफी जटिल प्रक्रिया होती है। पानी में घुले यह सूक्ष्म प्रदूषक मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ जलीय जीवों को भी प्रभावित करते हैं। ऐसे में इस कार्बनिक पालिमर का उपयोग कर फैक्ट्री व अस्पतालों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ किया जा सकता है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। यह 50 अलग-अलग तरह के प्रदूषण को खत्म करता है। एक चम्मच पालिमर से तीन लीटर पानी साफ किया जा सकता है। अभी इसका प्रयोगशाला स्तर पर इस्तेमाल हुआ है आगे औद्योगिक इकाइयों में इस्तेमाल होने पर इसकी वास्तविक लागत सामने आ सकेगी, लेकिन यह तय है कि वर्तमान प्रचिलित प्रक्रियाओं की तुलना में इसकी लागत कई गुना कम होगी। पालिमर से साफ किए गए पानी को बाद में क्लोरीन या अन्य सामान्य प्रक्रिया से बैक्टीरिया आदि खत्म करके पीने योग्य भी किया जा सकता है।
ऐसे समझें उपयोग : अगर किसी पानी की टंकी में प्रदूषित जल है और उसे कम समय में साफ करके दोबारा उपयोग याेग्य बनना है तो यह पालिमर काफी उपयोगी साबित होगा। इस पालिमर को पानी की टंकी में डालते ही यह उसके हानिकारक सूक्ष्म तत्वों को सोख लेगा और पानी लगभग 30 सेकेंड में दोबारा उपयोग लायक हो जाएगा। इसका मुख्य उपयोग औद्योगिक इकाईयों, सिंचाई या अन्य दैनिक जरूरतों में किया जा सकेगा। इससे प्रदूषित पानी अभी कारखानों से निकलकर नालों के जरिए नदियों में पहुंचता है उसे न सिर्फ रोका जा सकेगा बल्कि उसका दोबारा उपयोग भी सुनिश्चित हो सकेगा।
गंदा पानी सबसे बड़ी समस्या : डा. अभिजीत पात्रा ने बताया कि कार्बनिक सूक्ष्म प्रदूषकों से पानी को साफ करने के लिए सोखना नामक एक प्रक्रिया अपनाई गई है। इस प्रक्रिया में पानी में अगर कुछ भी गंदगी जाती है तो यह उसे स्पंज की तरह सोख लेता है। वर्तमान में पानी में घुलनशील प्लास्टिक, कंपनियों से निकलने वाला गंदा पानी और खेतों में पेस्टीसाइड के उपयोग से बढ़ रहा रसायनिक प्रदूषण बड़ी चुनौती है। इससे निजात पाने में यह तकनीक काफी कारगर सिद्ध होगी। डा. अभिजीत पात्रा ने बताया कि सोखना प्रक्रिया से प्रथम चरण में पानी में घुलनशील तत्व निकल जाते हैं। इसके बाद पानी में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस आदि को खत्म कर इसे पूरी तरह शुद्ध भी किया जा सकता है।