शोध में खुलासा: गैलेक्सी के आधे से ज्यादा सूर्य जैसे तारों के पास हो सकते हैं ये खास ग्रह?
जब से खगोलविदों ने बाह्यग्रहों यानि हमारे सौरमंडल से बाहर किसी दूसरे सौरमंडल के ग्रहों की मौजूदगी की पुष्टि की है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| जब से खगोलविदों ने बाह्यग्रहों (Exoplanet) यानि हमारे सौरमंडल (Solar system) से बाहर किसी दूसरे सौरमंडल के ग्रहों (Planets) की मौजूदगी की पुष्टि की है, तब से इस तरह के ग्रहों की पड़ताल तेजी से हुई है और यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि क्या किसी ग्रह में जीवन के संकेत (life signatures) है या नहीं. इस दिशा में एक अहम बढ़ाते हुए वैज्ञानिकों ने नए शोध में केप्लर स्पेस टेलीस्कोप (Kepler Space Telescope) के आंकड़ों का अध्ययन कर पाया है कि वे तारे जिनका हमारे सूर्य (Sun) के जितना तापमान है, उनके ग्रह पथरीले (rocky) होते हुए पानी (Water) का समर्थन करने में सक्षम सकते हैं.. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
हमारी गैलेक्सी (Galaxy) में करीब 30 करोड़ ऐसे ग्रह (Planet) हैं जो जीवन का समर्थन करने के लिए अनुकूल हो सकते हैं. एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन का यह बहुत कंजूसी से किया गया आंकलन है. इनमें से कई ग्रह हमारे पड़ोसी हो सकते हैं जो हमारे सूर्य (Sun) से केवल 30 प्रकाशवर्ष दूर स्थित हैं. जबकि सबसे पास के ग्रह 20 प्रकाशवर्ष दूर हो सकते हैं. इनमे से सूर्य के जैसे तारों में से कम से कम 7 प्रतिशत जीवन के अनुकूल योग्यता वाले (Habitable) ग्रह हो सकते हैं. जबकि इनका औसत करीब 50 प्रतिशत और उससे ज्यादा हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: M81@chandraxray)
इस शोध से यह समझने में मदद मिलेगी कि इनमें जीवन का समर्थन (Habitablity) करने की कितनी क्षमता है. केप्लर अभियान (Kepler mission) से जुड़े नासा वैज्ञानिक इस अध्ययन में शामिल थे. केप्लर ने साल 2018 में काम करना बंद कर दिया था. इसके नौ साल के अवलोकन ने बताया कि हमारी गैलेक्सी (Galaxy) में इस तरह के अरबों ग्रह (Planet) हैं और इनकी संख्या तारों (Stars)से कहीं अधिक है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता स्टीव ब्रेनस का कहना है कि केप्लर (Kepler Space Telescope) हमें पहले ही बता चुका है कि हमारी गैलेक्सी (Galaxy) में अरबों ग्रह (planets) हैं, लेकिन अब हम यह जानते हैं हैं कि इनमें काफी तादात पथरीले (Rocky) और जीवन के अनुकूल होने के योग्य (Habitable) ग्रह हैं. हालांकि ये अंतिम आंकड़े नहीं हैं और ना ही किसी ग्रह के लिए केवल पानी ही जीवन के अनुकूल होने का एकमात्र पैमाना है, यह आंकड़ा काफी उत्साह बढ़ाने वाला है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इसके लिए शोधकर्ताओं ने उन बाह्यग्रहों (Exoplanets) पर ध्यान दिया जिनकी त्रिज्या (Radius) पृथ्वी की त्रिज्या से 05 से 1.5 गुना थी. इससे ऐसे ग्रहों की संख्या कम हो गई जो पथरीले (Rocky) हो सकते थे. शोधकर्ताओं ने ऐसे तारों (Stars) पर भी ध्यान दिया जिनकी उम्र और तापामान (1500 डिग्री कम ज्यादा) हमारी पृथ्वी (Earth) के जैसा हो. ऐसे ग्रहों की तलाश करना बहुत मुश्किल होता है कि इसलिए शोधकर्ताओं ने एक नया तरीका अपनाया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
नई पड़ताल केप्लर के मूल अभियान (Kepler mission) से एक कदम आगे हैं. इससे पहले के आंकड़ों ने तारों (Star) के तापमान (Temperature) और उससे निकले प्रकाश (Light) को ग्रह (Planet) द्वारा अवशोषित करने के संबंध को शामिल नहीं किया था. इस अध्ययन में इन्हें शामिल किया है. इससे यह जानने में मदद मिली कि क्या कोई ग्रह पानी (Water) और जीवन का समर्थन करने योग्य है या नहीं. इसके साथ ही उन्होंने यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) के गीगा मिशन को भी शामिल किया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
शोधकर्ताओं ने पाया की करीब आधे सूर्य (Sun) जैसे तारों के पास पथरीले ग्रह (Rocky Planets) हैं जिनकी सतह पर तरल पानी (Liquid water) हो सकता है. एक अन्य आंकलन इस दो तिहाई तक ले जाता है. अब भविष्य में इन आंकड़ों में और सुधार एवं सटीकता आएगी. शोधकर्ताओं ने इस तरह के 2800 से ज्यादा ग्रहों की जानकारी हासिल की जबकि केप्लर (Kepler) के आंकड़ों ने आकाश के केवल 0.25 प्रतिशत हिस्से का ही अवलोकन किया था. बाकी का हिस्से का काम नासा का TESS टेलीस्कोप कर रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
बाढ़ (Flood) कैसे और क्यों आती है इस बात की जानकारी हमें हजारों साल पहले से है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं ग्लेशियर (Glacier) की वजह से आने वाली खास बाढ़ अभी तक रहस्य बनी हुई थी. ग्लेशियर से बनी झीलों (Lakes) में अचानक आने वाली बाढ़ का कारण वैज्ञानिकों को नहीं पता चल पा रहा था. इनमें दुनिया की सबसे बड़ी झीलें तक शामिल हैं. लेकिन हाल ही में हुए शोध में इसका कारण पता चल गया है.. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
वैज्ञानिकों ने छेद से हुए बहाव और उसके झील (Lake) पर प्रभाव का कम्प्यूटर मॉडल का उपयोग किया जिससे वे यह पता चल सके कि क्या इस घटना की वजह से बाढ़ (Flood) आई. गाइडोस ने बताया, "हमने पाया कि ग्लेशियर (Glacier) के अंदर, लेकिन झील (Lake) से ऊंचाई पर पानी के छोटे हिस्से होते हैं जो गर्मियों में पिघल कर झील में चला जाता है. यदि पानी का यह हिस्सा झील से जुड़ा रहता है तो झील में दबाव बढ़ता जाता है. इससे पानी ग्लेशियर के नीचे बहने शुरू हो जाता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इन बाढ़ों (Floods) का असर कुछ ग्लेशियरों (Glacier) की गतिविधि पर पड़ता है और ये आइसलैंड (Iceland) में तो बहुत नुकसानदेह हैं. हवाई एट मानोआ यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट और पृथ्वी विज्ञानी एरिक गाइडोस की अगुआई में हुए अध्ययन ने इस रहस्य को सुलझा लिया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
जून 2015 में अप्रत्याशित घटनाओं ने इस बात का खुलासा किया कि बाढ़ (Flood) की शुरुआत कैसे होती है. उस गर्मी के मौसम में आइसलैंड (Iceland) की झीलों (Lakes) में से एक में उसके सूक्ष्मजीवन (Micro life) के अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने एक छेद किया. जब वे छेद में से नमूने जमा कर रहे थे, टीम ने पाया कि छेद में नीचे की ओर पानी की धारा (Current) जा रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
यह धारा (Current) इतनी तेज थी कि वैज्ञानिकों ने अपने सेंसर्स और नमूने लेने के उपकरण खो ही दिए थे. गाइडोस का कहना है कि हम दुर्घटनावश ग्लेशियर (Glacier) से लेकर झील (Lake) के नीचे एक पानी (Water) के बड़े हिस्से से जुड़ गए थे. यह पानी की हिस्सा तेजी से झील की ओर जा रहा था. एक दो दिन बा जब टीम ने ग्लेशियर को छोड़ा तो उसके बाद झील में बाढ़ (Flood) आ गई. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
टीम ने साल 2015 में झील (Lake)से कृत्रिम संबंध जोड़ा था, लेकिन इस तरह के संबंध प्राकृतिक तौर पर भी बनते हैं जब बारिश और पिघलती बर्फ (Ice) से निकला पानी हिम दरारों में जमा हो जाता है दबाव के कारण दरार ग्लेशियर (Glacier) से झील तक पहुंच जाती है. इस खोज से पहली बार पता चका कि कैसे ये बाढ़ शुरू होती है और कैसे यह मौसम और जलवायु पर निर्भर करती है. शोधकर्ता अब अपने अध्ययन को रेडियो इको साउंडिंग तकनीक से बड़ी झीलो में इस तरह की प्रक्रिया के बारे में और जानकारी हासिल करेंगीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)