शोध में हुआ खुलासा: ठंडी से सिकुड़ रही वायुमंडल की ऊपरी परत

जलवायु परिवर्तन (Climate change) के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए दुनिया को कमर कसने की जरूरत है.

Update: 2021-07-02 08:10 GMT

जलवायु परिवर्तन (Climate change) के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए दुनिया को कमर कसने की जरूरत है. तमाम अध्ययन और शोध बता रहे हैं कि फिलहाल जो पर्यावरण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं वे नाकाफी हैं. अभी तक शोधों ने महासागर और वायुमंडल Atmosphere) की निचली परत पर हुए दुष्प्रभावों पर ही ध्यान दिया है, लेकिन हाल हमें हुए अध्ययन ने खुलासा किया है कि वायुमंडल के ऊपरी हिस्से भी सिकुड़ने लगे हैं. उन्होंने पाया है कि मध्यमंडल ठंडा होने के साथ लगातार सिकुड़ने लगा है.

ग्रीन हाउस उत्सर्जन
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब दुनिया के तमाम देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने प्रयासों में तेजी लाने के लिए मंथन करने वाले हैं. वैज्ञानिक तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखा ही रहे हैं, आर्थिक स्तर पर उससे होने वाले नुकसान स्पष्टता से दिखने लगे हैं. इन प्रभावों में प्रमुख से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हैं. साइंस डायरेक्ट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि वायुमंडल में 50 किलोमीटर से 80 किलोमीटर तक पाई जाने वाले परत मध्यमंडल ठंडी होकर सिकुड़ रही है. वैसे तो वैज्ञानिकों ने ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावों को बहुत पहले ही बता दिया था. लेकिन यह पहली बार है कि इस तरह का असर देखा जा रहा है.
कैसे किया अध्ययन
वैज्ञानिकों ने नासा के तीन सैटेलाइट के आंकड़ों का मिलाया और 30 साल तक के रिकॉर्ड हासिल किए जिससे पता चला कि पृथ्वी के ध्रुवों के ऊपर मध्यमंडल चार से पांच डिग्री फेहरनहाइट तक कम हुआ है जिसके साथ वह 500 से 650 फुट प्रति दशक की दर से सिकुड़ भी रहा है. वर्जीनिया टेक में वायुमंडल वैज्ञानिक और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक स्कॉड बेली ने बताया कि इस चलन को समझने और यह जानने के लिए कई दशकों का समय लगेगा कि इसमें ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, सौर चक्र में बदलाव और अन्य प्रभावों की क्या और कितनी भूमिका है.
उपग्रहों को भी खतरा
इससे सबसे बड़ा खतरा सैटेलाइट को है क्योंकि वायुमंडलीय गैसें सैटेलाइट को खींचती हैं, घर्षण से ये सैटेलाइट कक्षा से बाहर की ओर चले जाते हैं इससे वायुमंडल से अंतरिक्ष का कचरा भी बाहर रहता है. लेकिन मध्यमंडल के सिकुड़ने से बचा हुए ऊपरी वायुमंडल भी नीचे आएगा इससे गैसों का सैटेलाइट और अंतरिक्ष के कचरे पर लगने वाला घर्षण कम हो जाएगा.
पूरे वायुमंडल पर होता है असर
मध्यमंडल समतापमंडल के ऊपर की परत है जिसकी ओजोन परत खतरनाक पराबैंगनी विकरणों से हमारा बचाव करती है. मध्यमंडल का इस लिहाज से अध्ययन बहुत अहम हो जाता है क्योंकि वह भी वायुमंडल की संरचना में बदलाव के लिए जिम्मेदार होता है. इससे वैज्ञानिकों को ऐसे संकेत मिल सकते हैं जो बता सकते हैं कि कैसे अतिरिक्त ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन वायुमंडल के तापमान और पानी में बदलाव ला सकता है.
ध्रुवों पर सबसे ज्यादा असर
मध्यमंडल की ऊपरी सीमा पृथ्वी से 50 मील ऊपर है जो पृथ्वी का सबसे ठंडा क्षेत्र है. यहां के बर्फीले बाद उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों ओर फैले हैं. मध्यमंडल में बदलाव ध्रुवों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर सकता है. वैज्ञानिकों ने इन बादलों में भी बदलाव देखे हैं. वे ज्यादा चमकीले हो रहे हैं. ध्रुव से दूर जा रहे हैं और मौसम के हिसाब से समय से पहले भी नजर आने लगे हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह का बदलाव देखने की तभी संभावना है जब तापमान और ठंडा हो जाए और वाष्पीकृत पानी की मात्रा बढ़ने लग जाए. ठंडा तापमान और भारी मात्रा में पानी की वाष्प दोनों ही ऊपरी वायुमंडल में जलवायु परिवर्तन के कारक हैं. लेकिन मध्यमंडल में यह बड़ा बदलाव दुनिया के लिए एक और बड़ी चेतावनी है.


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