शोध: ब्ल्यू हाइड्रोजन है जीवाश्म ईंधन से ज्यादा नुकसानदेह

जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर गंभीर चिंताएं जताई जाती रही हैं

Update: 2021-08-15 14:22 GMT

जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर गंभीर चिंताएं जताई जाती रही हैं। इसलिए ऊर्जा के ऐसे विकल्प की तलाश होती रही है, जो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का कारक नहीं होने के साथ ही हरित और स्वच्छ स्त्रोत हो। इसी क्रम में ब्ल्यू हाइड्रोजन का एक विकल्प सामने आया। लेकिन अब कार्नेल तथा स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए शोध में बताया गया है कि ब्ल्यू हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन के जलने की तुलना में जलवायु के लिए ज्यादा नुकसानदेह है। शोध का निष्कर्ष 'एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

ब्ल्यू हाइड्रोजन- ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत है, जिसे बनाने की प्रक्रिया में प्राकृतिक गैस के मीथेन का इस्तेमाल होता है। इसके बारे में दावा किया जाता है कि यह ऊर्जा का स्वच्छ और हरित स्त्रोत है, जो ग्लोबल वार्मिग को कम करने में मदद करता है।
कार्नेल में इकोलाजी एंड इन्वायरन्मेन्टल बायोलाजी के प्रोफेसर राबर्ट हावर्थ और स्टैनफोर्ड के सिविल एंड इन्वायरन्मेन्टल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर मार्क जेड जैकबसन की शोध रिपोर्ट के अनुसार, ब्ल्यू हाइड्रोजन बनाने में कार्बन फुटप्रिंट प्राकृतिक गैस या कोयला के सीधे इस्तेमाल की तुलना में 20 फीसद ज्यादा होता है। इतना ही नहीं डीजल के इस्तेमाल की तुलना में कार्बन फुटप्रिंट 60 फीसद तक ज्यादा होता है।
कार्बन फुटप्रिंट का मतलब किसी उत्पाद से कुल कार्बन उत्सर्जन होता है। यह उत्सर्जन कार्बन डाइआक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के रूप में होता है। इसका आकलन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के आधार पर किया जा सकता है।
ब्ल्यू हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत मीथेन को ताप, भाप और दबाव या ग्रे हाइड्रोजन के इस्तेमाल से हाइड्रोजन और कार्बन डाइआक्साइड में बदले जाने से होती है। लेकिन यह कुछ और भी कार्बन डाइआक्साइड को कैप्चर कर लेता है। एकबार जब सहउत्पाद (बाइप्रोडक्ट) कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता तो ब्ल्यू हाइड्रोजन बनता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, ब्ल्यू हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर ऊर्जा लगती है, जो सामान्य तौर पर प्राकृतिक गैस को जलाने से मिलती है।
हावर्थ का कहना है कि पूर्व में ग्रे हाइड्रोजन के बाइप्रोडक्ट कार्बन डाइआक्साइड को कैप्चर करने की कोई कोशिश नहीं की गई, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन होता है।
उनके मुताबिक, इन दिनों उद्योग ब्ल्यू हाइड्रोजन को एक समाधान के तौर पर बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन इसके लिए अभी भी बाइप्रोडक्ट कार्बन डाइआक्साइड को कैप्चर करने के लिए प्राकृतिक गैस के मीथेन का ही इस्तेमाल किया जाता है। दुर्भाग्यवश, उत्सर्जन फिर भी ज्यादा बना हुआ है। मीथेन एक जबरदस्त ग्रीनहाउस गैस है। पहले उत्सर्जन में यह वायुमंडलीय वार्मिग एजेंट कार्बन डाइआक्साइड से 100 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है।
उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल की नौ अगस्त को जारी रिपोर्ट के अनुसार, पिछली शताब्दी में मीथेन का ग्लोबल वार्मिग में कार्बन डाइआक्साइड के रूप में लगभग दो-तिहाई योगदान रहा है।
ब्ल्यू हाइड्रोजन बामुश्किल उत्सर्जन मुक्त होता है। इसलिए ब्ल्यू हाइड्रोजन की रणनीति उसी हद तक काम करेगी, जहां तक कि कार्बन डाइआक्साइड को अनंत समय तक के लिए बगैर लीकेज स्टोर किया जा सके, जो भविष्य में वायुमंडल में वापस न आ पाए।
हावर्थ का कहना है कि राजनीतिक शक्तियां अभी भी विज्ञान की सही समझ नहीं रख रही हैं। संभव है कि इसी कारण ब्ल्यू हाइड्रोजन को अच्छा, आधुनिक और भविष्य की ऊर्जा के रूप में बताया जा रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं। पारिस्थितिक रूप से अनुकूल 'ग्रीन' हाइड्रोजन मौजूद है, लेकिन यह सीमित सेक्टरों में ही है। इसे व्यावसायिक रूप से नहीं माना जा रहा है।
पानी को इलेक्ट्रोलाइसिस (सौर, पवन या हाइड्रोइलेक्टि्रक ऊर्जा के जरिये) से गुजार कर उसे हाइड्रोजन और आक्सीजन में विभक्त कर ग्रीन हाइड्रोजन हासिल की जा सकती है।
हावर्थ का कहना है कि इलेक्ट्रोलाइसिस के जरिये ग्रीन हाइड्रोजन सबसे बढि़या हाइड्रोजन है और यदि इसका उचित इस्तेमाल किया गया तो भविष्य में यह सतत ऊर्जा का स्त्रोत बन सकता है। ब्ल्यू हाइड्रोजन तो बिलकुल ही अलग चीज है।
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