तुर्कमेनिस्तान में बने 'नर्क के दरवाजे' को बंद करने की तैयारी शुरू
तुर्कमेनिस्तान में बने ‘नर्क के दरवाजे’ (Gateway to hell) को बंद करने की तैयारी शुरू कर दी गई है
तुर्कमेनिस्तान में बने 'नर्क के दरवाजे' (Gateway to hell) को बंद करने की तैयारी शुरू कर दी गई है. तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्डीमुखामेदोव (Gurbanguly Berdymukhamedov) ने इसे बुझाने का आदेश दे दिया है. राष्ट्रपति ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि इस आग को बुझाने का तरीका निकालें. हालांकि, यह पहला आदेश नहीं है. 2010 में भी राष्ट्रपति ने इस आग को बुझाने का आदेश दिया था, लेकिन ऐसा नहीं किया जा सका.
क्या है यह नर्क का दरवाजा, यह कैसे बना और कैसे यह एक टूरिस्ट प्लेस बन गया? जानिए इन सवालों के जवाब…
क्या है नर्क का दरवाजा और यह बना कैसे?
तुर्कमेनिस्तान में काराकुम (Karakum) रेगिस्तान है. यहां के उत्तरी हिस्से में ग्रेटर नाम का गड्ढ़ा है. यह गड्ढ़ा 69 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा है. कई दशकों से इसमें से आग धधक रही है. इसे यहां की भाषा में नर्क का दरवाजा कहा जाता है, लेकिन इसका कोई कनेक्शन नर्क या शैतान से बिल्कुल भी नहीं है. इस गड्ढ़े से निकलने वाली आग की वजह है प्राकृतिक गैस मेथेन.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गड्ढ़े का पता 1971 में तब चला जब सोवियत संघ के वैज्ञानिक रेगिस्तान में कच्चे तेल के भंडार को खोज रहे थे. इसी खोज के दौरान यहां पर प्राकृतिक गैस का भंडार मिला. लेकिन जमीन धंस गई और गहरे गड्ढ़े हो गए. गड्ढ़े से रिसने वाली मेथेन गैस के वायुमंडल में घुलने का खतरा था. इस खतरे को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने उस में आग लगा दी ताकि जब मेथेन गैस खत्म हो जाए और आग भी बुझ जाए, पर ऐसा हुआ नहीं.
कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं
2013 में नेशनल जियोग्राफिक चैनल इस गड्ढ़े पर एक प्रोग्राम तैयार करने के लिए वहां पहुंचा. कवरेज के लिए वहां गए दल के सदस्य जॉर्ज कोरोनिस ने गड्ढ़े की जांच की. जांच में उन्होंने कई सवाल उठाए. जिस पर तुर्किमेनिस्तान के भू-वैज्ञानिकों का कहना था कि यह गड्ढ़ा 1960 के दशक में बना था, लेकिन इसमें आग 1980 के दशक में लगी.
इतना चर्चित हुआ कि टूरिस्ट प्लेस बन गया
धीरे-धीरे दुनियाभर में इसकी चर्चा शुरू हुई और यह गड्ढ़ा तुर्कमेनिस्तान के सबसे चर्चित और आकर्षित करने वाले टूरिस्ट प्लेस में शामिल हो गया. हर साल इसे देखने के लिए हजारों पर्यटक पहुंचते हैं और इसकी तस्वीरों को लेना नहीं भूलते. अपनी लोकेशन से कई किलोमीटर दूर से ही यह गड्ढा नजर आने आने लगता है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पहले लोगों में मन में इस गड्ढ़े के प्रति नकारात्मक सोच थी, लेकिन धीरे-धीरे इसे देखने और समझने की चाहत ने इसकी लोकप्रियता में इजाफा किया. समय के साथ इसकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण 2018 में इसका आधिकारिक नाम तय किया गया. राष्ट्रपति ने इसे 'शाइनिंग ऑफ काराकुम' नाम दिया. आज भी जब तुर्कमेनिस्तान की बात छिड़ती है तो इसे जरूर याद किया जाता है.