पीटर ब्रैनन ने तर्कों के साथ किया दावा- चांद और मंगल पर मिल सकते हैं डायनासोर के अवशेष

डायनासोर (Dinosaur) इंसानों के लिए हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहे हैं.

Update: 2021-01-24 03:45 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। डायनासोर (Dinosaur) इंसानों के लिए हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहे हैं. 6.6 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर एक क्षुद्रग्रह (Asteroid) के पृथ्वी (Earth) से टकराने पर यहां की जलवायु (Climate) में ऐसे परिवर्तन आ गए जिससे डायनासोर के सभी प्रजातियां विलुप्त (Exitnct) हो गई थीं. हाल ही में लेखक पीटर ब्रैनन (Peter Brannen) ने अपनी किताब में दावा किया है कि डायनासोर को अवशेष चंद्रमा (Moon) पर ही नहीं मंगल पर भी मिल सकते हैं.इतना ही नहीं इस बात के लिए किताब में तर्क भी दिए हैं.

क्षुद्रग्रह (Asteroid) के टकराव की घटना के करोड़ों सालों बाद इंसानों ने पृथ्वी (Earth) पर जगह जगह जीवाश्मों (Fossils) के जरिए डायनासोर (Dinosaurs) की जानकारी हासिल की. इन जीवाश्मों के जरिए हमारे जीवाश्म विज्ञानियों (Palaeontologists) ने डायनसोर के शारिरिक गुणों के बारे में ही नहीं बल्कि उनके खानपान रहनसहन आदि के बारे में बहुत कुछ जान लिया है.यहा तक कि टकराव की वजह से डायनासोर कैसे विलुप्त हुए यह भी पता लगा लिया गया है
आखिर डायनासोर (Dinosaurs) के अवशेष चंद्रमा (Moon) और मंगल (Mars) पर कैसे पहुंच सकते हैं? इस सवाल का जवाब ब्रैनन ने अपनी किताब 'द एंड्स ऑफ द वर्ल्ड: वेल्कैनिक एपोक्लिप्सिस,लीथल ओसीन्स एंड अवर क्वेस्ट टु अंडरस्टैंड अर्थ्स पास्ट मास एक्स्टिंक्शन्स' शीर्षक 'दुनिया का अंत- ज्वालामुखी कयामत, जानलेवा महासागर और पृथ्वी के महाविनाश को समझने के लिए हमारी पड़ताल' ही इसके बारे में काफी कुछ कह देती है
अपनी किताब में ब्रैनन (Peter Brannen) ने दावा किया है कि डायानासोर (Dinosaurs) जो एक समय पृथ्वी (Earth)के सबसे प्रमुख जीव हुआ करते थे, क्षुद्रग्रह (Asteroid) के टकराव की वजह से अवशेषों के साथ बाह्य अंतरिक्ष (Space) में चले गए होंगे. बताया जाता है कि मैक्सिको के पास यह क्षुद्रग्रह टकराया था जिसके बाद से पृथ्वी पर ऐसा जलवायु परिवर्तन (climate Change) हुआ जिससे डायनासोर उबर न सके, लेकिन क्षुद्रग्रह के टकराव से ही कुछ डायनासोर के अंतरिक्ष में पहुंचने का दावा ब्रैनन कर रहे हैं.
ब्रैनन (Peter Brannen) ने अपनी किताब में लिखा है कि एवरेस्ट (Mount Everest) से विशाल चट्टान पृथ्वी (Earth) से टकराई जो एक बुलेट से भी बीस गुना तेजी से पृथ्वी पर आई थी. यह टरकराव इतना तेज रहा होगा कि 747 की ऊंचाई से आकर यह केवल 0.3 सेंकेड में पृथ्वी से टकरा गया होगा. खुद क्षुद्रग्रह इतना बड़ा था कि वह एक मील से बड़ा टॉवर दिखा होगा और इसने अपने नीचे की वायु को इतना ज्यादा दबा दिया था कि उस समय, उस जगह की सतह का तापमान ही सूर्य की सतह से ज्यादा हो गया होगा. और साथ ही पृथ्वी के बहुत से अवशेषों के साथ ही डायनासोर (Dinosaur) भी अंतरिक्ष पहुंच गए होंगे. 
लेखक ने दावा किया है कि क्षुद्रग्रह (Asteroid)के टकराव जिसने पूरे डायनासोरों (Dinasours) का सफाया कर दिया था, ने वायुमंडल (Atmosphere) में एक निर्वात (Vacuum) का छेद बना दिया होगा. इस टकराव का असर इतना खतरनाक था कि इसने पृथ्वी को नाभिकीय शीतऋतु (Nuclear Winter) में कई सालों तक ढकेल दिया था. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी की धरती से नहीं टकराता तो वह आज की स्थिति में नहीं पहुंच पाती
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह विनाशकारी क्षुद्रग्रह (Asteroid) 30 सेकेंड भी देरी से पहुचंता तो वह प्रशांत (Pacific) या अटलांटिक (Atlantic) महासागर में गर सकता था. लेकिन फिर इसके प्रभाव से डायनासोर (Dinosaurs) तब भी खत्म हो जाते. कई अध्ययन कह चुके हैं कि क्षुद्रग्रह के टकराने के बाद दुनिया में ज्वालामुखी गतिविधि बढ़ गई और आसामान में धुंआ छा गए जिसके बहुत लंबे समय तक रहने से पृथ्वी (Earth) की सतह पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंची और सतह का तापमान कम होने लगा और दुनिया के बहुत से जीवों का अस्तित्व खत्म हो गया.


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