Global Wamring के लिए केवल इंसानी गतिविधियां ही हैं जिम्मेदार- शोध

ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) में हुए शोध मे पाया गया है कि इसके लिए इंसानी गतिविधि (Human Activities) ही जिम्मेदार हैं और पेरिस समझौते (Paris agreement) के लक्ष्यों को हासिल करने के लिये ज्यादा प्रतिबद्धता की जरूरत है.

Update: 2021-01-22 10:26 GMT

जनता से रिश्ता वेब डेस्क।  दुनिया में औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के बाद से जितनी भी ग्लोबल वर्मिंग (Global Warming) हुई है उसकी जिम्मेदार मानव जनित गतिविधियां (Human Acitvities) ही हैं. हाल ही में प्रकाशित शोध में ग्लोबल वार्मिंग के लिए मानवीय और प्राकृतिक कारणों के हुए तुलनात्मक अध्ययन में यह नतीजा निकला है कि इस ग्लोबल वार्मिंग में पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं की भूमिका नहीं के बराबर है. इस अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के भयावह नतीजे जो आज हमें झेल रहे हैं उसकी वजह हम इंसान ही हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)दुनिया में औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के बाद से जितनी भी ग्लोबल वर्मिंग (Global Warming) हुई है उसकी जिम्मेदार मानव जनित गतिविधियां (Human Acitvities) ही हैं. हाल ही में प्रकाशित शोध में ग्लोबल वार्मिंग के लिए मानवीय और प्राकृतिक कारणों के हुए तुलनात्मक अध्ययन में यह नतीजा निकला है कि इस ग्लोबल वार्मिंग में पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं की भूमिका नहीं के बराबर है. इस अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के भयावह नतीजे जो आज हमें झेल रहे हैं उसकी वजह हम इंसान ही हैं. 

 दुनिया में औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के बाद से जितनी भी ग्लोबल वर्मिंग (Global Warming) हुई है उसकी जिम्मेदार मानव जनित गतिविधियां (Human Acitvities) ही हैं. हाल ही में प्रकाशित शोध में ग्लोबल वार्मिंग के लिए मानवीय और प्राकृतिक कारणों के हुए तुलनात्मक अध्ययन में यह नतीजा निकला है कि इस ग्लोबल वार्मिंग में पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं की भूमिका नहीं के बराबर है. इस अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के भयावह नतीजे जो आज हमें झेल रहे हैं उसकी वजह हम इंसान ही हैं.

इस तरह का यह अध्ययन पहली बार सामने आ रहा है. एएफपी के मुताबिक हाल ही में प्रकाशित शोध में साफ तौर पर माना गया है कि औद्योगिक काल (Industrial Era) से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं (Natural processes) की भूमिका ना के ही बराबर है. 19वी सदी के मध्य के बाद से पृथ्वी (Earth) की सतह और उसके पास की हवा का औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस ज्यादा बढ़ गया है. इतने बदलाव में ही हमें बहुत से चरम मौसमी घटनाओं, जैसे सूखा, बाढ़, खतरनाक तूफान आदि देखने के मिल रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

साल 2015 में दुनिया के देशों ने पैरिस समझौते (Paris agreement के तहत यह संकल्प लिया था के वे वैश्विक तापमान (Global Temperature) की बढ़त को 2 डिग्री सेंटीग्रेड से कम रखेंगे और यदि संभव हुआ तो इसे 1.5 डिग्री से कम रखेंगे. अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह निर्धारित करने का प्रयास किया कि मानवीय गतिविधि (Human Activity) ने सीधे तौर पर वार्मिंग में कितना योगदान दिया और इसमें कितनी तथाकथित प्राकृतिक ताकतों की भूमिका थी. 

ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के प्राकृतिक कारणों में कई प्रक्रियाओं का अहम योगदान माना जाता रहा है. कई संदेहकर्ताओं का मानना है कि विशाल ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption) और पृथ्वी तक पहुंचने वाली सूर्य की ऊर्जा की मात्रा में बदलाव इसमें प्रमुख हैं. शोधकरताओं ने 13 अलग-अलग जलवायु मॉडल (Climate Models) का अध्ययन किया है जिसमें तीन प्रमुख हालातों की स्थितियों का सिम्यूलेशन किया गया. एक में केवल ऐरोसॉल से तापमान प्रभावित हुआ, एक में केवल प्राकृतिक ताकतों का प्रभाव हुआ और तीसरे में ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव रहा. 

नेचर में प्रकाशित लेख में शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने पाया कि 0.9 से 1.3 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान (Global Temperature) बढ़त के लिए मानवीय गतिविधि (Human Activites) ने योगदान दिया है. यह आज के अवलोकित 1.1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के आसपास है. कैनेडियन सेंटर फॉर क्लाइमेट मॉडलिंग एंड ऐनालिसेस, एनवायर्नमेंट एंड क्लाइमेट चेंज से नाथन जीले का साफ कहना है कि वार्मिंग प्राथमिक तौर पर इंसानों की वजह से हुई है. 

साल 2020 में कोविड-19 (Covid-19) की महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण पृथ्वी पर गर्मी पैदा करने वाले उत्सर्जन ने 7 प्रतिशत का गोता लगाया, लेकिन फिर भी प्रदूषण (Pollution) का बढ़ना नहीं रुका. संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का कहना है कि अगर दुनिया को 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करना है तो 2020 के दशक में हर साल तक हमें उत्सर्जन ऐसे ही कम रखने होंगे. पेरिस समझौते में यह साफ तौर पर बताया गया है कि उत्सर्जन को कैसे कम जाएगा. लेकिन यह शोध बताया है कि हम पहले ही 1.5 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच चुके हैं. 

 जीले का कहना है कि यदि मानव जनित वार्मिंग (Warming) उनके आंकलित रेंज के निचले स्तर पर हो तो भी पेरिस समझौते (Paris Agreement) 1.5 लक्ष्य अब भी हासिल किए जा सकतै हैं लेकिन इसके लिए उत्सर्जन को महत्वाकांक्षी और त्वरित कार्रवाही से कम करना होगा. वहीं इस रेंज के उच्च स्तर के साथ ये लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकेगा. लेकिन फिर भी आक्रमक रवैये से किए गए उपायों से हमें 2 डिग्री सेंटीग्रेड के लक्ष्य को हासिल करना संभाव होगा.

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