ब्रह्माण्ड के रोचक रहस्यों में से एक हैं तीव्र रेडियो प्रस्फोट, आखिर क्यों मुश्किल जाता है इसकी व्याख्या करना
तीव्र रेडियो प्रस्फोट
तीव्र रेडियो प्रस्फोट ब्रह्माण्ड के रोचक रहस्यों में से एक हैं. ये इतने कम समय में होने वाली घटना होती है कि इसकी व्याख्या करना बहुत मुश्किल होता है. हाल ही में कुछ नए रेडियो अवलोकनों के अध्ययन के आधार पर खगोलविदों ने इन प्रस्फोट से एक अंतराल के बाद बार-बार आने वाले संकेतों के चक्रीय स्वाभाव की प्रमुख व्याख्या को खारिज कर दिया. बहुत ही कम समय में होने वाले इन प्रस्फोटों की आवृत्ति का अध्ययन बहुत मुश्किल होता है जिसके एक वर्णन को हमारे वैज्ञानिकों ने अब अस्वीकार कर दिया है
अब तक यह लग रही थी इसकी वजह
ये संकेत FRB 20180916B से आ रहे थे, जिनकी हर 16.35 दिन में पुनरावृत्ति हो रहे थी. वर्तमान मॉडल के अनुसार इसकी वजह स्रोत के बहुत पास चक्कर लगा रहे तारों के बीच की अंतरक्रिया हो सकती है. लेकिन नई अवलोनकनों से कुछ और ही पता चला रहा है. इन अवलोकनों में कम आवृत्ति वाले तीव्र रेडियो प्रस्फोट के अवलोकन भी शमिल हैं.
बाइनरी या द्विज तारों की पवनें
इन अवलोकनों से स्पष्ट होता है कि वे इस तरह के द्विज तारों की तंत्र से मेल नहीं खा रहे हैं. नीदरलैंड की एम्स्टर्डम यूनिवर्सिटी खगोलभौतिकविद इनेस पास्टोर मैराजुएला का कहना है कि माना जा रहा था कि तीव्र रेडियो प्रस्फोट के स्रोत के साथी तारे से आ रही ताकतवर तारकीय पवनें अधिकांश नीली, छोटी वेवलेंथ वाले रेडियो प्रकाश को इस तंत्र से बाहर निकलने देती हैं, लेकिन लाल लंबे वेवलेंथ वाली रेडिया तरंगें ज्यादा या पूरी तरह रुक जाती हैं.
नीली चमक के बाल लाल चमक भी
वर्तमान द्विज पवनों के मॉडलों ने अनुमान लगाया था कि प्रस्फोट केवल नीली चमक वाले होने चाहिए और वहां उन्हें कुछ लंबे समय तक टिकना चाहिए, लकिन मैराजुएला की टीम ने इन दो दिन तक नीले रेडियो प्रस्फोटों को देखा जिसके बाद तीन दिन तक लाल रेडियो प्रस्फोट दिख. इससे शोधकर्ताओं ने इन मॉडलों को खारिज कर दिया.
कम समय बड़ी समस्या
तीव्र रेडियो प्रस्फोटों के साथ समस्या यह है कि वे बहुत ही कम समय के लिए पैदा होते हैं. लेकिन इसी कम समायावधि में छोटी और बहुत ही शक्तिशाली कम वेवलेंथ वाली रेडियो तरंगों का उत्सर्जन होता है. यह समय केवल कुछ मिलीसेंकेंड का होता है जिसमें एक साथ करीब 50 करोड़ सूर्यों की ऊर्जा एक साथ निकलती है. बहुत सारे एफआरबी के स्रोत केवल एक ही बार देखे जा सके हैं, इसीलिए इनके बारे में अनुमान लगाना और अध्ययन करना बहुत मुश्किल होता है.
इस तरह के केवल दो ही FRB
एक तो वैज्ञानिक अभी तक बहुत कम तीव्र रेडियो प्रस्फोट देख सकें हैं. उनमें सभी कुछ ही एफआरबी स्रोत पुनरावर्ती संकेत भेजने वाले पाए गए हैं जिनमें लगभग सभी अनियमित रूप से ऐसे कर रहे हैं. FRB 20180916B इनके दो अपवादों में से एक है जिससे बार बार लेकिन नियमित अंतराल पर चक्र के रूप में संकेत आ रहे हैं.
अध्ययन के लिए बहुत उपयुक्त
इस लिहाज से यह एफआरबी स्रोत अध्ययन के लिए बहुत मुफीद है. पिछले साल ही हमारी ही मिल्की वे में एक ऐसेस्रोत का पता चला था जिससे एफआरबी संकेत आ रहे थे. ये संकेत एक मैग्नेटर से आ रहे थे जो एक प्रकार का ऐसा न्यूट्रॉन तारा होता है जिसका मैग्नेटिक फील्ड बहुत ज्यादा शक्तिशाली होता है. लेकिन हम एफआरबी के बारे में बहुत कम जानते हैं. हम यह नहीं जानते के इनके संकेतों में पुनरावृत्ति क्यों होता है और दूसरों में क्यों नहीं और ऐसी स्थितियां ब्रह्माण्ड में कम क्यों हैं.
नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में द्विज तारों से आईं पवनों के प्रस्फोट की तरंगों को प्रभावित करने का विचार सटीक नहीं बैठता क्योंकि इससे केवल कम आवृति वाली तरंगें ही हम तक पहुंचती जबकि नए अवलोकनों में ऐसा नहीं देखा गया. इसके अलावा किसी और तरह के व्यवधान की संभावना भी नहीं है क्योंकि ये प्रस्फोट साफ अंतरिक्ष में होते पाए गए हैं. इसकी एक व्याख्या ये हो सकती है कि इस प्रस्फोट के संकेतों का आवृति के तौर पर होना मैग्नेटर या पल्सर के कारण होगा. लेकिन ये पिंड इतने धीमे नहीं डगमगाते. लेकिन अवलोकनों का अध्ययन बताता है कि हमें अब भी मैग्नेटर और एफआरबी के बारे में बहुत सारा जानने की जरूरत है.