नया अध्ययन: कोरोना रोगियों में एंटीबॉडी में नहीं आती तेज गिरावट, इतने माह तक रहती है सक्रिय
कोरोना वायरस (Covid-19) की चपेट में आने वाले लोगों में एंटीबॉडी को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | वाशिंगटन, कोरोना वायरस (Covid-19) की चपेट में आने वाले लोगों में एंटीबॉडी को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है। इसका दावा है कि कोरोना रोगियों में एंटीबॉडी में तेज गिरावट नहीं आती है। एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि एक समय बाद एंटीबॉडी में गिरावट आने लगती है। इससे फिर संक्रमण का खतरा हो सकता है। इसके उलट नए अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना से हल्के या मध्यम रूप से संक्रमित होने वाले बहुसंख्यक पीड़ितों में एंटीबॉडी के जरिये मजबूत सुरक्षा मुहैया होती है, जो पांच माह तक सक्रिय रह सकती है। इस इम्यून रिस्पांस के चलते दोबारा कोरोना संक्रमण के खतरे में उल्लेखनीय कमी आती है। एंटीबॉडी की उत्पत्ति शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) इस घातक वायरस को बेअसर करने के लिए करती है।
अमेरिका के माउंट सिनाई हॉस्पिटल के वरिष्ठ शोधकर्ता फ्लोरियन क्रेमर ने कहा, 'कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि एंटीबॉडी में तेज गिरावट आती है, लेकिन हमारा निष्कर्ष इसके उलट है। कोरोना की चपेट में आने वाले 90 फीसद से ज्यादा लोगों में वायरस को बेअसर करने के लिए एंटीबॉडी की उत्पत्ति होती है। यह कई माह तक सक्रिय रहती है।'
शोधकर्ताओं ने 30 हजार 82 लोगों पर किए गए एक अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। अध्ययन के नतीजों के आधार पर उन्होंने कहा कि पॉजिटिव पाए गए बहुसंख्यक मरीजों में मध्यम से लेकर उच्च स्तर पर एंटीबॉडी पाई गई, जो कोरोना के स्पाइक प्रोटीन को प्रभावहीन कर सकती है। यह घातक वायरस इसी प्रोटीन के जरिये कोशिकाओं को संक्रमित करता है।
सात माह बाद भी पाई गई थी एंटीबॉडी
वहीं, दूसरी ओर पुर्तगाल के प्रमुख संस्थान आइएमएम के मार्क वेल्डहोएन के नेतृत्व में विज्ञानियों ने अस्पतालों में भर्ती किए गए 300 से ज्यादा कोरोना रोगियों व स्वास्थ्यकर्मियों, ढाई हजार यूनिवर्सिटी कर्मचारियों के साथ ही संक्रमण से उबर चुके 198 लोगों के शरीर में एंटीबॉडी के स्तरों का अध्ययन किया था। इन प्रतिभागियों में से करीब 90 फीसद के शरीर में कोरोना की चपेट में आने के सात माह बाद भी एंटीबॉडी की मौजूदगी पाई गई थी।