अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यान सौर मंडल के सबसे बड़े चांद गैनीमेडे तक पहुंच गया. यह चांद बृहस्पति ग्रह के 79 चंद्रमाओं में से एक और सबसे बड़ा है. नासा का स्पेसक्राफ्ट जूनो गैनीमेडे (Ganymede) के 1038 किलोमीटर की दूरी से गुजरा. उसने बृहस्पति ग्रह के इस बड़े चांद की सबसे क्लियर तस्वीरें लीं. ऐसा साल 2000 के बाद हुआ है, उस समय नासा का स्पेस प्रोब गैलीलियो इस चांद के बगल से निकला था. लेकिन दूरी ज्यादा होने की वजह से बहुत अच्छी तस्वीरें नहीं मिल पाई थीं
नासा ने जूनो स्पेसक्राफ्ट द्वारा ली गई तस्वीरों में से दो तस्वीरों को सार्वजनिक किया है. इन तस्वीरों में स्पष्ट तौर पर गड्ढे, संभावित टेक्टोनिक फॉल्ट्स और कुछ रोशनी और अंधेरे में डूबे हुए इलाके दिख रहे हैं. जूनो स्पेसक्राफ्ट के मुख्य कैमरा JunoCam ने गैनीमेडे चंद्रमा की तस्वीर जिस तरफ से ली है, उस तरफ दिन था. फिलहाल यह तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट है. हालांकि इन्हीं तस्वीरों को लाल और नीले फिल्टर के साथ स्पेसक्राफ्ट ने वापस भेजा है, फिलहाल नासा उनकी जांच कर रहा है. इसलिए उन्हें आम लोगों के लिए अभी जारी नहीं किया गया है
जूनो मिशन के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर स्कॉट बोल्टन ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि जूनो स्पेसक्राफ्ट अब भी सही तरीके से काम कर रहा है. यह स्वस्थ है. इसने पिछले कुछ सालों में बहुत ही शानदार तस्वीरें और जानकारियां भेजी हैं. हमें साल 2025 तक इससे यही उम्मीद है. अगर सबकुछ सही रहा और इस यान से कोई उल्कापिंड का अंतरिक्षीय वस्तु नहीं टकराई तो यह बेहतरीन काम करता रहेगा.
गैनीमेडे (Ganymede) हमारे सौर मंडल के बुध (Mercury) से आकार में बड़ा है. इसका व्यास 3200 मील यानी 5149 किलोमीटर है. बुध ग्रह का व्यास 4879 किलोमीटर है. यह सौर मंडल का इकलौता ऐसा चांद है अपने बड़े आकार की वजह से अपना खुद का मैग्नेटोस्फेयर (Magnetosphere) यानी चुंबकीयमंडल बना सकता है. ये मैग्नेटोस्फेयर सूरज से आने वाले चार्ज्ड पार्टिकल्स यानी आवेशित कणों को खींच सकता है. या फिर उन्हें दूसरी तरफ मोड़ सकता है.
डॉ. स्कॉट बोल्टन कहते हैं कि हमारे पास वह तकनीक है, जिससे हम गैनीमेडे के मैग्नोटोस्फेयर की ताकत को नाप सकते हैं. साथ ही इस चांद का बृहस्पति से किस तरह का मैग्नेटिक संबंध है. अभी जिस तरह के डेटा जूनो स्पेसक्राफ्ट से मिल रहे हैं, वो अगले दो मिशन में कारगर साबित होंगे. पहला मिशन है यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) का JUICE- द ज्यूपिटर आइसी मून एक्सप्लोरर. यह यानी गैनीमेडे, यूरोपा और कैलिस्टो के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इसके बाद साल 2032 में यह सिर्फ गैनीमेडे की कक्षा में जाकर उसकी जांच करेगा.
दूसरा मिशन नासा का होगा. जिसके जाने की तारीख अभी तय नहीं है. इसे यूरोपा क्लिपर (Europa Clipper) नाम दिया गया है. माना जा रहा है कि यह इस दशक के अंत लॉन्च किया जाएगा. इसका मुख्य काम होगा बृहस्पति के बर्फीले चांद यूरोपा की जांच करना. साथ ही जीवन की खोज करना. यूरोपा की बर्फ की चादरों के नीचे बड़ा और गहरा समुद्र है. साथ ही यूरोपा के केंद्र से निकलने वाली गर्मी जीवन को पनपने का मौका दे सकती है. डॉ. स्कॉट बोल्टन कहते हैं कि हमें कुछ मामूली जानकारियां और हासिल करनी है. उसके यूरोपा क्लिपर को लॉन्च किया जाएगा.
डॉ. बोल्टन ने बताया कि ज्यूपिटर के पास काफी ताकवर गुरुत्वाकर्षण शक्ति है. यह लगातार जूनो स्पेसक्राफ्ट की कक्षा को मोड़ रहा है. जिसकी वजह से जूनो स्पेसक्राफ्ट लगातार बृहस्पति ग्रह के उत्तरी गोलार्ध से नजदीक होता जा रहा है. यह अच्छी बात नहीं है. लेकिन इससे वैज्ञानिकों को यह फायदा मिला कि वो बृहस्पति ग्रह पर नजदीक से नजर रख पा रहे हैं. साथ ही बृहस्पति के वायुमंडल का अध्ययन कर पा रहे हैं.