नई महंगी दवाओं के आने से अल्जाइमर रोग से जुड़े बाजार में वृद्धि की उम्मीद: रिपोर्ट
नई दिल्ली: एक रिपोर्ट के अनुसार, नई महंगी और बीमारी के प्रभाव को कम करने वाली दवाओं से (डिजीज-मॉडिफाइंग ट्रीटमेंट्स) वैश्विक स्तर पर अल्जाइमर रोग के बाजार में वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
ग्लोबलडाटा नामक डेटा और एनालिटिक्स कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बढ़ोतरी अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, ब्रिटेन, जापान और चीन जैसे 8 बड़े बाज़ारों में विशेष रूप से देखने को मिलेगी। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इन देशों में अल्जाइमर बीमारी का बाजार 2023 में 2.4 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2033 तक 19.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह 23.4% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ेगा।
बाजार में महंगी डिजीज-मॉडिफाइंग दवाओं के आने से इलाज के विकल्प बढ़ेंगे, जिससे उपचार दर बढ़ेगी। इसके अलावा उम्रदराज आबादी में बढ़ोतरी से अल्जाइमर के मामले अधिक होंगे। एंग्जाइटी और साइकोसिस जैसे लक्षणों के लिए नई दवाएं आने से भी बाजार में वृद्धि होगी।
2033 तक ये दवाएं अल्जाइमर बाजार के 73.5% हिस्से पर कब्जा कर लेंगी। इनमें से ज़्यादातर दवाएं 'अमाइलॉइड बीटा' पर आधारित होंगी। हालांकि इनमें महंगी और जटिल प्रक्रियाएं बाधा के तौर पर काम कर सकती हैं क्योंकि इन दवाओं को अक्सर इंजेक्शन द्वारा दिया जाता है, और पीईटी या एमआरआई स्कैन जैसी तकनीकों की ज़रूरत होती है, जो महंगी और सीमित रूप से उपलब्ध हैं।
डिजीज-मॉडिफाइंग दवाओं की कीमत वर्तमान में इस्तेमाल हो रही सस्ती दवाओं से बहुत अधिक है। इसके चलते इन्हें मरीजों तक पहुंचाने में रिम्बर्समेंट और पॉलिसी से जुड़ी समस्याएं आ सकती हैं। यह रिपोर्ट दिखाती है कि इलाज के नए विकल्प आने के बावजूद, अल्जाइमर जैसी बीमारी के लिए सस्ता और सुलभ इलाज अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। इससे निपटने के लिए दवा बनाने वाली कंपनियां दवा देने के नए तरीके खोज रही हैं, जैसे कि मुंह से ली जाने वाली दवाएं। इससे डॉक्टरों के लिए मरीजों को इलाज देना आसान हो जाएगा।
डिजीज-मॉडिफाइंग दवाएं पूरी तरह से रोग को नहीं रोक पाती हैं, इसलिए ऐसी दवाओं की जरूरत है जो न सिर्फ बीमारी को बढ़ने से रोके बल्कि उसे पूरी तरह से ठीक भी करें। इसके अलावा, ऐसी दवाएं भी चाहिए जो बीमारी के अंतिम चरण में दिमाग को सही से काम करने में मदद करें और अन्य समस्याओं जैसे चिड़चिड़ापन और भ्रम को भी ठीक करें।