डिप्रेशन का इलाज कर सकता है मैजिक मशरूम, निगेटिव ख्यालों को रखता है दूर; जानिए क्या है वैज्ञानिकों का अनुमान

ये मशरूम दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को आपस में कनेक्ट करने में मदद करता है. इसका साइकेडेलिक (Psychedelic) पदार्थ डिप्रेशन को रोकता है. नकारात्मक विचारों से दूर रखता है

Update: 2022-04-12 14:07 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मैजिक मशरूम (Magic Mushroom) में ऐसा हैल्यूसिनोजेनिक पदार्थ होता है, जो दिमाग को हाइपर-कनेक्टेड ब्रेन (Hyper-connected brain) बनाने में मदद करता है. इसके जरिए आप डिप्रेशन का इलाज भी कर सकते हैं. एक नई स्टडी में यह दावा किया गया है.ये मशरूम दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को आपस में कनेक्ट करने में मदद करता है. इसका साइकेडेलिक (Psychedelic) पदार्थ डिप्रेशन को रोकता है. नकारात्मक विचारों से दूर रखता है

मैजिक मशरूम्स को लेकर हाल ही में क्लीनिकल ट्रायल्स हुए हैं. जिनमें बताया गया है कि मैजिक मशरूम से निकलने वाला हैल्यूसिनोजेनिक पदार्थ यानी मतिभ्रम करने वाला पदार्थ साइलोसाइबिन (Psilocybin) दिमाग एक सक्रिय करके घर में लगे एमसीबी स्विच में बदल देता है. जैसे ही निगेटिव ख्याल आते हैं, ये स्विच अपने आप एक्टिव होकर आपके दिमाग को निगेटिव ख्यालों के ओवरफ्लो से बचाता है. दिमाग को शांत रखता है.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स के गाइडेंस में साइलोसाइबिन (Psilocybin) के जरिए डिप्रेशन, मूड स्विंग आदि का इलाज किया जा सकता है. यह स्टडी हाल ही में Nature Medicine में प्रकाशित हुई है. इसमें बताया गया है कि कैसे साइलोसाइबिन (Psilocybin) जैसे साइकेडेलिक पदार्थ डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं.
साइलोसाइबिन (Psilocybin) के असर को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 60 मरीजों को क्लीनिकल ट्रायल्स में शामिल किया. हर मरीज के दिमाग पर अलग असर हुआ. साइलोसाइबिन लेने के बाद इन सभी मरीजों के दिमाग की वायरिंग ज्यादा सक्रिय हो गई. इंपीरियल कॉलेज लंदन के डॉक्टोरल स्टूडेंट रिचर्ड डॉस ने कहा कि हमने क्लीनिकल ट्रायल्स में शामिल लोगों के दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को सक्रिय और आपस में कनेक्टेड देखा.
रिचर्ड डॉस ने कहा कि ने इन 60 लोगों के समूह में स्वस्थ लोग भी थे और अस्वस्थ लोग भी थे. स्वस्थ लोगों के दिमाग को साइलोसाइबिन (Psilocybin) ने हाइपर-कनेक्टेड ब्रेन बना दिया. लेकिन जो लोग डिप्रेशन के शिकार थे, उन्हें इससे राहत मिली. उनका दिमाग भी ज्यादा सक्रिय हो गया. क्लीनिकल ट्रायल्स में शामिल डिप्रेशन वाले लोगों के दिमागों में निगेटिव ख्याल आने बंद हो गए. इसका मतलब ये है कि साइलोसाइबिन (Psilocybin) दिमाग को सक्रिय करता है.
यूसी सैन डिएगो स्कूल ऑफ मेडिसिन में साइकिएट्री की डॉ. हेवा आर्टिन ने कहा कि यह स्टडी स्पष्ट तौर पर इस बात को प्रमाणित करती दिखती है कि मैजिक मशरूम्स डिप्रेशन का इलाज हो सकती हैं. अगर साइलोसाइबिन (Psilocybin) दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को जोड़ने का सक्रियता से करता है, तो यह एक बेहतरीन स्टेज है किसी को मानसिक पीड़ा से बाहर निकालने का.
जो 60 लोग इस क्लीनिकल ट्रायल में शामिल थे, उनमें से 16 को अलग-अलग तरह के एंटीडिप्रेसेंट लेने का प्रेसक्रिप्शन पहले दिया गया था. लेकिन उनके अंदर किसी तरह का फायदा नहीं था. इन लोगों को शुरुआत में साइलोसाइबिन (Psilocybin) के 10 मिलिग्राम डोज दिए गए. सात दिन के बाद 25 मिलिग्राम का अतिरिक्त डोज दिया गया. इनके पूरे ट्रीटमेंट के दौरान बारीकी से नजर रखी गई. फिर साइकोथैरेपिस्ट्स से बात कराई गई ताकि उनके अनुभवों को समझा जा सके.
इन लोगों के दिमाग में आने वाले बदलावों को समझने के लिए इन लोगों के दिमाग की फंक्शनल मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (fMRI) किया गया. यह दिमाग के अलग-अलग हिस्सों में खून के बहाव को स्कैन करता है. साइलोसाइबिन की डोज लेने के बाद इन लोगों के दिमाग के अलग-अलग हिस्सों में ऑक्सीजेनेटेड खून का बहाव बढ़ गया था. उनके डिप्रेशन के लक्षणों में भी कमी देखी गई.
दूसरे समूह को साइलोसाइबिन (Psilocybin) की 1 मिलिग्राम की डोज दी गई थी. लेकिन उनपर किसी तरह का असर देखा नहीं गया था. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में स्थित साइकेडेलिक्स डिविजन ऑफ न्यूरोस्पेस के डायरेक्टर कारहार्ट हैरिस ने कहा कि यह जानना जरूरी है कि साइलोसाइबिन (Psilocybin) के डोज की मात्रा कितनी होनी चाहिए कि वह फायदा करे. क्योंकि हर इंसान में इस पदार्थ का असर अलग-अलग था लेकिन सबको सकारात्मक परिणाम देखने को मिले.
असल में साइलोसाइबिन (Psilocybin) जैसे साइकेडेलिक्स पदार्थ दिमाग में मौजूद सिरोटोनिन 2ए रिसेप्टर्स को सक्रिय कर देते हैं. ये रिसेप्टर्स दिमगा के अलग-अलग हिस्सों को एक्टिव कर देते हैं, जिससे इंसान की संज्ञानात्मक क्षमता यानी तार्किक, समझने और खुश रहने की क्षमता बढ़ जाती है. साइलोसाइबिन इन रिसेप्टर्स को रीस्टार्ट कर देती हैं. इसके बाद दिमाग का कंप्यूटर सही से काम करने लगता है.


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