जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और मानव जनित प्रदूषण का असर इंसान और धरती के जीवों पर ही नहीं बल्कि महासागरों में रहने वाले जीवों पर भी गहरा ही हो रहा है. महासगरीय जैवविविधता (Marine Biodiversity) पर जलवायु परिवर्तन के कारण महाविनाश (Mass Extinction) के जैसे हालात बन सकते हैं अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इस सदी के अंत तक नहीं रोका गया. दुनिया के महासागर गर्म हो रहे हैं, ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है. जीवविज्ञानों ने खुलासा किया है कि अगली कुछ सदियों में विनाश की ऐसी स्थिति आ सकती है जो दुनिया ने डायनासोर के महाविनाश के बाद नहीं देखी होगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि वार्मिंग और ऑक्सीजन खत्म होने से ही महासागरों की प्रजातियों (Marine Species) को खत्म होने स्थिति साल 2100 में ही आ सकती है. इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अगर भारी मात्रा में वैश्विक उत्सर्जन कम हुए, जो महासागरीय महाविनाश (Marine mass Exitinction) के रोकने के लिए कहा जा रहा है, तो पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है. शोधपत्र में बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) महासागरीय जनजीवन के लिए खतरा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
स अध्ययन के मुताबिक, ध्रुवीय प्रजातियों पर महाविनाश (Extinction) का ज्यादा खतरा है, लेकिन कटिबंधीय क्षेत्रों में जैविक समृद्धि ज्यादा घट रही है. इस अघ्ययन के सह लेखक और प्रिंसटन में भूविज्ञान के प्रोफेसर कर्टिस डुएच ने एक बयान में बताया कि महासागरों की प्रजातियों (Marine Species) में बड़े महाविनाश को टालने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन (Greenhouse Gases Emissions) तेजी और तीव्रता से कम करना बहुत जरूरी है. डुएच ने जियोसाइंसेस में पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट केतौर पर काम कर रहे जस्टिन पेन के साथ इस अध्ययन की शुरुआत की थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने महासागर की प्रजातियों (marine species) के शरीरविज्ञान संबंधी आंकडों को जलवायु परिवर्तन (Climate change) के प्रतिमानों से मिलाया जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि आवासीय हालातों में बदलाव दुनिया भर के समद्री जीवों (Marine Species) के अस्तित्व पर क्या प्रभाव डालता है. पेन ने बताया कि महाविनाश (Mass Extinction) की जो मात्रा पाई गई वह इस पर बहुत निर्भर करती है कि हमारे द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड कितनी मात्रा में मासागरों में पहुंचती है. अब भी बहुत समय है कि कार्बन डाइऑक्साइड कि दिशा बदली जा सकती है और महाविनाश लाने वाली वार्मिंग की मात्रा को रोका जा सकता है "(प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
शोधकर्ताओं ने अपनी पड़ताल के नतीजों को मजबूती देने के लिए अपने प्रतिमान की तुलना पुरातन महाविनाशों (Mass Extinctions) से की जो जीवाश्म रिकॉर्ड में मिल जिनका संबंध पृथ्वी के सबसे खतरनाक महाविनाशों के भौगोलिक स्वरूपों में था. 25 करोड़ साल पहले का महाविनाश जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ऑक्सीजन की कमी के कारण आया था. उन्होंने पायाकि उनका प्रतिमान भी भविष्य की जैवविविधता को पूर्वानुमान भी उसी तरह का पैटर्न अपना रहा है जिसमें महासागरों का तापमान बढ़ाता और ऑक्सीजन की उपलब्धता कम हो जाती है अंततः महासागरीय जीवन (Marine life) की प्रचुरता खत्म हो जाएगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
पानी का तापमान (Water temperature) और ऑक्सीजन की उपलब्धता (oxygen availability) दो ऐसे अहम कारक हैं जो मानवगतिविधियों के बादल गर्म होती जलवायु के कारण बदल जाते हैं. ठंडे पानी की तुलना में गर्म पानी में ऑक्सीजन कम टिकती है. इससे महासागरों (Oceans) का परिसंरचण और ज्यादा धीमा होता है जो गहराइयों में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बाधित कर देता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
महासागरों में जीवों (Marine Creatures) की एक शारीरिक प्रणाली होती है जिससे वे पर्यावरणीय बदलावों से निपतने हैं लेकिन इसकी भी एक सीमा है. सबसे बड़ी चिंता का विषय यही है कि जलवायु परिवर्तन (Climate change) महासागरों के बड़े हिस्सों को आवासयोग्य नहीं रहने देता है. पेन ने भी कहा की चरम वार्मिंग जलवायु प्रेरित महाविनाश (Mass Extinctions) की ओर ले जाएंगी और ऐसा इस सदी के अंत तक हो जाएगा.