जानिए कितना घातक हो सकता है उल्कापिंड
क्या पृथ्वी (Earth) पर गिरने वाला कोई उल्कापिंड (Meteorites) या क्षुद्रग्रह यहां महाविनाश का कारण बन सकता है
क्या पृथ्वी (Earth) पर गिरने वाला कोई उल्कापिंड (Meteorites) या क्षुद्रग्रह यहां महाविनाश का कारण बन सकता है? यह प्रश्न बहुत लंबे समय से गहन अध्ययन के साथ विवाद का विषय बना हुआ है. पृथ्वी के पूरे इतिहास में लंबे समय तक उल्कापिंडों का टकराव होता रहा है. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 60 करोड़ साल के दौरान पृथ्वी पर गिरे उल्कापिंडों का अध्ययन किया जिससे पता चला है कि कोई टकराने वाली चट्टान कितनी खतरनाक है यह उसके आकार से नहीं बल्कि उसके खनिज विज्ञान (Minirology) से तय होता है. माना जा रहा है कि इससे ना केवल कई अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर मिल सकेगा, बल्कि शोध के नए आयाम भी खुल सकेंगे.
उल्कापिंड महाविनाश का कारण
उल्कापिंडों के टकराव से वायुमंडल में बहुत अधिक धूल पैदा होती है जिससे पृथ्वी की सतह अवशेषों से ढक जाती है. पृथ्वी के इतिहास में इस घटना को महाविनाश की शुरुआत करने वाली घटना के तौर पर देखा जाता रहा है. इसमें सबसे प्रमुख छह करोड़ साल पहले हुए महाविनाश को माना जाता है जिससे पृथ्वी से सभी डायनासोर नष्ट हो गए थे.
बहुविषय टीम का शोध
लिवरपूल यूनिवर्सिटी और स्पेन में टेनेराइफ के इंस्टीट्यूटो टेक्नोलॉजिको डि एनर्जीयास रिनोवेबल्स के शोधकर्ताओं की बहुविषय टीम ने यह अध्ययन किया है जिसमें जीवाश्मविज्ञान क्षुद्रग्रहों का स्तरविज्ञान, खनिजविज्ञान, बादलों की सूक्ष्मभौतिकी और जलवायु प्रतिरूपण (Modelling) जैसे विषय शामिल हैं.
आकार की कितनी भूमिका
शोधकर्ताओं ने प्रमुख तौर पर यह जानने का प्रयास किया कि क्यों कुछ उल्कापिडों की वजह से महाविनाश जैसी घटनाएं तक हो जाती है. जिसमें क्रिटेशियस पेलियोजीन में हुए चिक्सुलक्लब टकराव भी शामिल है, जबकि इससे कई बड़े उल्कापिंडों की वजह से महाविनाश की घटना देखने को नहीं मिली.
नई पद्धति से किया गया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने 60 करोड़ साल के 44 उल्कापिंडों का अध्ययन बिलकुल नई पद्धति से किया जिसमें उन्होंने इन टकरावों से निकली हुई धूल का अध्ययन किया जो उस समय खनिजों में मिल गई थी. उनकी पड़ताल जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन में प्रकाशित हुई है. इसके नतीजों ने खुलासा टकराने वाली चट्टानों का खनिजों का रासायानिक अध्ययन किया
बादलों से सूर्य किरणें पार होने की क्षमता
शोध से खुलासा हुआ कि जब भी उल्कापिंड पौटेशियम फेल्ड्सपार समृद्ध चट्टानों से टकराए हैं उनसे महाविनाश की घटना जरूर हुई है. पौटेशियम फेल्ड्सपार एक समान्य खनिज है जो अपने आप में जहरीला नहीं हैं. लेकिन यह शक्तिशाली आइस न्यूक्लेटिंग खनिज ऐरोसोल होता है कि यह बादलों की उस गतिकी (Dynamics) को प्रभावित कर देता जिससे सूर्य की किरण उन्हें पार कर पृथ्वी तक पहुंच पाती है.
वायुमंडल में बदलाव
बादलों की इसी क्षमता से पृथ्वी गर्म रह पाती है और उसमें मौसमी बदलाव होते हैं. इसी से वायुमंडल गर्म होने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाता है जो विशाल ज्वालामुखी उत्सर्जन से निकलती हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि दशकों से वैज्ञानिक इस पहेली से परेशान थे कि सभी उल्कापिंड महाविनाश की वजह क्यों नहीं बनते.
हैरानी की बात थी कि चौथे विशालतम टकराव से 48 किलोमीटर विशाल क्रेटर बनने के बाद भी जीवन सामान्य था जबकि उससे आधे आकार के टकराव के बाद 5 लाख साल पहले महाविनाश हो गया. शोधकर्ताओं ने यही पाया कि हर बार जब भी महाविनाश हुआ उसका संबंध उल्कापिंड के पौटेशिय फेल्ड्स्पार की चट्टान के टकराने से रहा. इस अध्ययन से शोध के नए आयाम खुलेगें. इसमें जीवन के खत्म होने की वास्तविक वजह क्या थी. फेल्ड्स्पार का असर कब रहा जैसे कई सवालों के जवाब मिल सकेंगे.