जानें जापान का समुद्र में रेडियोधर्मी पानी फेंकना भारत के लिए है कितना खतरनाक...मछुआरे भी चिंतित

अक्सर खबरों से दूरी बरतने वाला जापान इन दिनों चर्चा में है.

Update: 2020-10-19 10:35 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अक्सर खबरों से दूरी बरतने वाला जापान इन दिनों चर्चा में है. वजह है यहां का फुकुशिमा परमाणु संयंत्र. दरअसल 9 सालों पहले जबर्दस्त भूकंप और सुनामी के बाद ये प्लांट तबाह हो गया था. इसके बाद से वहां लाखों टन रेडियोएक्टिव पानी जमा है, जिसे अब समुद्र में बहाने की बात हो रही है. इसपर पूरी दुनिया को चिंता है कि रेडियोएक्टिव तत्व अगर पानी में बहते हुए उनके देश पहुंच गए तो क्या होगा. जापान के इस कदम को रोकने की कोशिश हो रही है. जानिए, क्या है रेडियोएक्टिव कचरा और क्या-कितना असर हो सकता है.

सबसे पहले तो ये समझते हैं कि मामला क्या है

बात ये है कि जापान में बंद पड़े फुकुशिमा प्लांट में 12 लाख टन के आसपास रेडियोएक्टिव पानी जमा है. अब सरकार जल्द से जल्द इसे कहीं ठिकाने लगाने की सोच रही है. इसके पीछे साल 2021 में होने जा रहे टोक्यो ओलंपिक खेल हैं. खेल की जगह फुकुशिमा से लगभग 60 किलोमीटर दूर है. ऐसे में दुनियाभर से आए खिलाड़ियों को किसी दुर्घटना का डर हो सकता है. इसी डर को खत्म करने के लिए जापान सरकार रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में बहाने की सोच रही है.

अखबार ने कही अंदर की बात

फिलहाल इस बात की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है लेकिन जापान के मुख्य अखबार Kyodo News ने अज्ञात स्त्रोतों के हवाले से ये बात कह दी. इसके बाद से पूरी दुनिया में बवाल मचा हुआ है. सबसे पहले तो खुद जापान के मछुआरे एतराज कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनका व्यापार ठप हो जाएगा.


मछुआरों को है डर

बता दें कि पहले से ही जापान में समुद्री जानवरों को नुकसान पहुंचाने के कारण जापानी मछुआरे कुख्यात रहे. कड़े नियमों के साथ काफी मुश्किल से उन्होंने अपनी छवि बदली. इसके बाद भी काफी सारे देश फुकुशिमा से आने वाली मछलियां या दूसरा सी-फूड नहीं खरीदते हैं. अब रेडियोएक्टिव पानी बहाने से न केवल समुद्री जंतुओं को नुकसान होगा, बल्कि मछुआरों का काम पूरी तरह से बंद हो जाएगा क्योंकि कोई भी उनके पास से जहरीले सी-फूड नहीं खरीदना चाहेगा.


कितने घातक हैं रेडियोएक्टिव तत्व

रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में छोड़ने से पहले ट्रीट किया जाएगा ताकि उसका घातक असर कम हो सके लेकिन तब भी वो इतना खतरनाक होगा कि समुद्र के पानी को जहरीला बना दे. रेडियोएक्टिव वेस्ट परमाणु बिजलीघरों में परमाणु ऊर्जा तैयार करने के दौरान तैयार होता है. इसमें प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे खतरनाक तत्व होते हैं. बता दें ये ऐसे तत्व हैं, जिसके संपर्क में आते ही कुछ ही दिनों के भीतर स्वस्थ से स्वस्थ इंसान दम तोड़ देता है क्योंकि ये सीधे खून से प्रतिक्रिया करते हैं. इसके अलावा धीमी गति से क्रिया करने पर भी ये स्किन, बोन या ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारियां देते हैं.

खतरा सैकड़ों-हजारों सालों तक रहता है

रेडियोधर्मी कचरे के साथ दूसरी बड़ी समस्या है कि ये पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकते. कचरे के स्रोत के आधार पर, रेडियोधर्मिता कुछ घंटों से सैकड़ों सालों तक रह सकती है, जिसके बाद इसका घातक असर कम होता है. यही वजह है कि इसके खतरे के आधार पर ठोस और तरल कचरे का निपटान अलग तरह से होता आया है. ठोस को सावधानी से ऐसी जगह पर और इस प्रकार से गाड़ा जाता है कि उससे निकलने वाली हानिकारक विकिरण व अन्य कण कम से कम हानि पहुंचा सकें और उसमें कोई रिसाव न हो.


अब तक हो रही है स्टडी

अब अगर जापान के परमाणु संयंत्र के कचरे की बात करें तो ये तरल रूप में है. इसमें रेडियम 226 जैसे खतरनाक तत्व है. ये कार्सिनोजेनिक होता है जो सीधे शरीर में जानकर डीएनए से क्रिया करता है और उनमें बदलाव लाता है. इसके नतीजे इतने खतरनाक हो सकते हैं कि वैज्ञानिक अब तक इसपर पूरी स्टडी भी नहीं कर सके हैं. कैंसर इसका सबसे छोटा रूप हैं. इसके अलावा भी शरीर में भयंकर विकृतियां आ सकती हैं.

सी-एनिमल पर भी असर

इसका असर समुद्री जीव-जंतुओं पर भी उतना ही भयंकर होगा. लाखों सी-एनिमल की मौत हो जाएगी और जो बचेंगे, वे लंबे अरसे तक जहरीले तत्वों के साथ रहेंगे. इससे अगर कोई रेडियोएक्टिव पानी में रहने वाली मछलियां या दूसरे जंतु खाए, तो उसकी सेहत भी खतरे में आ जाएगी.

भारत किस तरह खतरे में

जापान अपने रेडियोधर्मी कचरे को समुद्र में बहाने का एलान अगले महीनेभर में कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ये कचरा प्रशांत महासाहर में बहाया जाएगा. ये पानी में पहुंचते ही सबसे पहले अपने पड़ोसी देशों के लिए खतरा पैदा करेगा. यही वजह है कि दक्षिण कोरिया से लेकर फिलीपींस और चीन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं.

रेडियोएक्टिव पानी समुद्र से बहते हुए हिंद महासागर तक भी पहुंच सकता है. हालांकि यहां तक आने के लिए पानी को लगभग 14 हजार किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी. पानी में घुले जहरीले तत्वों का असर इस बीच कम हो सकता है क्योंकि अथाह पानी में घुलकर उसकी सांद्रता कुछ कम हो जाएगी. इसके बाद भी असर तो रहेगा ही. यही वजह है कि जापान के इस एलान से पहले से ही उसका विरोध होना शुरू हो चुका है.

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