ISRO: री-यूजेबल रॉकेट के निर्माण की बना रही योजना, जानें क्या होगा फायदा?
भारत कथित तौर पर ग्लोबल मार्केट के लिए एक नए री-यूजेबल रॉकेट के डिजाइन और निर्माण की योजना बना रहा है, अंतरिक्ष सचिव और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन एस सोमनाथ ने सोमवार को बंगलूरू स्पेस एक्सपो (BSX) 2022 के दौरान यह घोषणा की। GSLV Mk III के बाद इसरो का अगला लॉन्च वीकल एक री-यूजेबल रॉकेट हो सकता है, जिसके इस्तेमाल से सैटेलाइट्स को लॉन्च करने की लागत कम होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, री-यूजेबल रॉकेट के लिए स्पेस इंडस्ट्री, स्टार्टअप और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के साथ काम करेगी।
पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, बंगलूरू स्पेस एक्सपो 2022 के 7वें एडिशन के दौरान इसरो चेयरमैन एस सोमनाथ ने एक नए री-यूजेबल रॉकेट के डिजाइन और निर्माण की योजना की घोषणा की। वर्तमान में इसरो को एक किलोग्राम पेलोड को ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए 10,000 डॉलर (लगभग 7,97,800 रुपये) और 15,000 डॉलर (लगभग 11,96,800 रुपये) के बीच खर्च करना पड़ता है।
बताया जाता है कि एस सोमनाथ ने कहा था कि इसरो को इस कॉस्ट को घटाकर 5,000 डॉलर (लगभग 3,98,000 रुपये) या 1,000 डॉलर (लगभग 79,700 रुपये) प्रति किलोग्राम करना होगा। ऐसा करने का एकमात्र तरीका रॉकेट को री-यूजेबल बनाना होगा। यानी एक बार लॉन्च करने के बाद उसे दोबारा लॉन्च किया जा सके। उन्होंने कहा कि लॉन्च वीकल सेक्टर क्षेत्र में देश में अभी तक री-यूजेबल तकनीक नहीं है।
उन्होंने कहा कि GSLV-MK3 के बाद इसरो द्वारा बनाए जाने वाले अगले रॉकेट का री-यूजेबल किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष एजेंसी, इन्फ्लेटेबल एरोडायनामिक डिसेलेरेटर (IAD) समेत विभिन्न तकनीकों पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इन नई तकनीकों को मिलाकर अंतरिक्ष एजेंसी नया यूजेबल रॉकेट बनाने के लिए इंडस्ट्री, स्टार्टअप और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के साथ हाथ मिलाना चाहेगी। उन्होंने कहा कि मैं अगले कुछ महीनों में इस (प्रस्ताव) को आकार लेते देखना चाहता हूं।
री-यूजेबल रॉकेट की बात करें, तो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) अपने तमाम लॉन्च के लिए ऐसे रॉकेट इस्तेमाल कर रही है। अरबपति एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स का फॉल्कन रॉकेट भी एक री-यूजेबल रॉकेट है, जिसके जरिए नासा ने भी अपने कई मिशन लॉन्च किए हैं। यह रॉकेट मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद पृथ्वी पर सुरक्षित लैंडिंग करता है और दोबारा इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है।