भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान ने शुरू की एक और उड़ान की तैयारी, जियोस्टेशनरी सैटेलाइट का क्या है फायदा
भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक देश के पहले अत्याधुनिक और कुशल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट के साथ एक बार फिर से बुलंदी हासिल करने को तैयार हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक देश के पहले अत्याधुनिक और कुशल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट के साथ एक बार फिर से बुलंदी हासिल करने को तैयार हैं. ये सैटेलाइट 12 अगस्त को लॉन्च किया जाएगा. धरती के ऊपर के ऑरबिट में स्थापित होकर ये रियल टाइम में सारे उपमहाद्वीप पर नज़र रख सकेगा, इससे कृषि से लेकर रक्षा तक हर क्षेत्र में मदद मिल सकेगी.
जीसेट -1 के बारे में
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का विकसित किया हुआ, जीसेट एक इमेजिंग सैटेलाइट है, जिसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में मौजूद सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पूर्णत: स्वदेशी जीयोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल-एफ 10 (जीएसएलवी-एफ10) के ज़रिये लॉन्च किया जाएगा. अगर मौसम ने साथ दिया तो ये 12 अगस्त को सुबह 5.43 पर उड़ान भर सकता है. सैटेलाइट का वजन 2 टन से ज्यादा है और इसरो पहली बार मेहराब के आकार का कवच इस्तेमाल करने जा रहा है, दरअसल ये एक गोली के आकार का होगा, जो आगे से नुकीला और घुमावदार सतह लिये होगा, इस तरह से ये ज्यादा वजन को ले जा सकने में सक्षम होगा. सैटेलाइट को जीएसएलवी-एफ 10 के ज़रिये जियोसिन्क्रोनस स्थानान्तरण कक्ष में रखा जाएगा. जहां से ये ऑनबोर्ड प्रोपल्शन सिस्टम का उपयोग करते हुए आगे जियोस्टेशनरी कक्ष की ओर चढ़ेगा, जिसकी ऊंचाई धरती की सतह से करीब 36,000 किलोमीटर ऊपर है.
जियोस्टेशनरी सैटेलाइट का क्या फायदा है
जियोस्टेशनी संकेत देता है कि सैटेलाइट भूमध्य रेखा के ऊपर मौजूद होगा और हमेसा आसमान में एक बिंदु पर मौजूद नज़र आएगा.लेकिन ऐसे सैटेलाइट गतिहीन नहीं होते हैं. ये सब इसलिए लगता है क्योंकि ऊंचे कक्ष में मौजूद होने से सैटेलाइट धरती की घूर्णन गति के साथ घूमता है. जिसकी वजह से वो रुका हुआ लगता है. जीसेट-1 24 घंटे में धरती का एक चक्कर लगाएगा. ऐसे उपग्रहों की खास बात ये होती है कि इन्हें आकाश में एक निश्चित जगह पर इंगित किया जा सकता है और इन्हें बार बार ढूंढने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. जबकि जो नीचे रहने वाले अर्थ सैटेलाइट होते हैं, उन्हें आकाश में बार बार ढूंढना पड़ता है. इस तरह से ये धरती पर मौजूद स्टेशन की आसानी से मदद कर पाता है. इसरो का कहना है कि भारत अब रिमोट सेंसिग सैटेलाइट के मामले में सबसे बड़े समूहों में से एक बन गया है. सैटेलाइट से कई तरह की एप्लीकेशन का इस्तेमाल करके कृषि, जल संसाधन, ग्रामीण एवं शहरी विकास, पर्यावरण, वन, समुद्री संसाधन और आपदा प्रबंधन में मदद ली जा सकती है.
जीसेट-1 मदद कैसे करेगा
रिपोर्ट बताती हैं कि आधुनिक इमेजिंग सैटेलाइट में हाइ रेजोल्यूशन का कैमरा लगाया गया है जो लगातार भारत की ज़मीन और समुद्री स्थल पर रियल टाइम में नज़र बनाकर रखेगा. सीमाओं की सुरक्षा के मद्देनज़र रक्षा के क्षेत्र में ये उपयोगी साबित हो सकता है. यही नहीं अगर प्राकृतिक आपदा की बात की जाए तो सैटेलाइट के ज़रिए पहले से ही आने वाली विपदा को लेकर सुनिश्चित हुआ जा सकेगा और इस तरह से आपदा के असर को कम किया जा सकता है. आपदा से जुड़ी चेतावनी के अलावा इसरो का कहना है कि सैटेलाइट कृषि, वन, खनिज, बर्फ और ग्लेशियर और समुद्रीस्थल की जानकारी देने में भी सक्षम रहेगा. हालांकि सैटेलाइट से तस्वीरें आने के लिए आसमान का साफ होना ज़रूरी होगा, बादलों के होने पर ये साफ तस्वीर नहीं भेज पाएगा. केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्य सभा में बताया कि सैटेलाइट रोज़ाना पूरे देश की 4-5 बार तस्वीर भेज पाएगा.
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इसके लॉन्च होने में देरी क्यों हुई
कोविड-19 महामारी से लेकर तकनीकी परेशानियों की वजह से जीसेट-1 की लॉन्चिंग को कई बार टालना पड़ा, और फरवरी 2021 में हुए 18 छोटे लॉन्च के बाद इसरो का अब तक का दूसरा लॉन्च है. वैसे इसे 5 मार्च 2020 में लॉन्च होना था लेकिन कुछ तकनीकी वजहों से लॉन्चिंग को टाल दिया गया. उसके बाद महामारी और लॉकडाउन के चलते इसकी लॉन्चिंग टलती गई.