सूर्य से भी ज्यादा गर्म 8 दुर्लभ तारे भारतीय खगोलविदों ने ढूंढे
ब्रह्माण्ड में सुदूर स्थित तारे कई बार हमें अनोखी लेकिन बहुत उपयोगी जानकारी भी देते देते हैं.
ब्रह्माण्ड (Universe) में सुदूर स्थित तारे कई बार हमें अनोखी लेकिन बहुत उपयोगी जानकारी भी देते देते हैं. हमारे वैज्ञानिक और खगोलविद सौरमंडल (Solar System)के बाहर के ब्रह्माण्ड के पिंडों का अध्ययन इसलिए भी करते हैं जिससे हमें हमारे अपने आसपास की खगोलीय घटनों को समझने का मौका मिले. इसी कड़ी में भारतीय खोगलविदों ने आठ बहुत ही कम दिखाई देने वाले तारों (Rare Stars) की खोज की है. इस समूह के द्वारा खोजे गए ये तारे मेन सीक्वेंस रेडियो पल्स एमिटर (MRP) श्रेणी के बताए जा रहे हैं. पूणे स्थित राष्ट्रीय रेडियो खगोलभौतिकी केंद्र के खगोलविदों की अगुआई वाली टीम ने इनकी खोज जायंट मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप की मदद से यह खोज की है.
सूर्य से भी ज्यादा गर्म
खगोलविदों की इस टीम के पाया है कि ये तारे सूर्य से भी ज्यादा गर्म हैं और उसकी मैग्नेटिक फील्ड असामान्य रूप से बहुत शक्तिशाली है. इसके साथ ही इनकी 'सौर पवन' भी बहुत अधिक शक्तिशाली है. पीटीआई के मुताबिक एनसीआरए ने प्रेस रिलीज में बताया कि टीम ने इससे पहले भी तीन और इसी तरह के तारे जीएमआरटी के जरिए खोजे हैं.
8 तो इसी साल मिले
अब तक के ज्ञात 15 एमआरपी में से 11 की खोज जीएआरटी के जरिए खोजे गए हैं जिनमें से 8 तो 2021 में ही खोजे गए हैं. बयान में बताया गया है कि ये खोजें जीएमआर टेलीस्कोप की उन्नत करने से मिली अधिक संवेदनशीलता और चौड़ी बैंडविड्थ के कारण संभव हो सकी हैं जिनके कारण टेलीस्कोप के सर्वे से एमआरपी का पता चल सका.
GMRT कार्यक्रम की सफलता
नसीआरए का कहना है कि जीएमआरटी का प्रक्षेपण ही एमआरपी की रहस्यों को सुलझाना के उद्देश्य से किया गया है. जीएमआरटी कार्यक्रम की सफलता ने इस श्रेणी के तारों की धारणा में क्रांतिकारी बदलदाव किया है जिससे इन विशिष्ठ मैग्नेटोस्फियर के अध्ययन के लिए नए आयाम खुल गए हैं.
क्या होते हैं ये MRP
मेन सीक्वेंस रेडियो पल्स एमिटर (MRP) ऐसे तारे होते हैं जो सूर्य से ज्यादा गर्म होते हैं. इनकी मैग्नेटिक फील्ड असामान्य रूप से शक्तिशाली हैं. इनकी पवनें भी सौर पवनों की तुलना में बहुत बलशाली होती हैं. इसी वजह से ये अंतरिक्ष में लाइटहाउस की तरह दिखाई देते हैं जो बहुत ही चमकदार रेडियो पल्स उत्सर्जित करते हैं.
आसान नहीं होती ऐसी खोज
पहली बार इस एमआरपी को साल 2000 में खोजा गया था, लेकिन उच्च संवेदनशील उन्नत जीएमआरटी के कारण है ऐसे खोजे हुए तारों की संख्या हाल के सालों में इतनी अधिक हो सकी. खोजे गए इन 15 तारों मेंसे 11 उच्च तकनीक टेलीस्कोप के जरिए ही खोजे गए हैं. इस तरह के पिंड खोजना बहुत मुश्किल काम होता है क्योंकि कभी कभी और कम फ्रीक्वेंसी पर ही चमकने के कारण ये बहुत कम दिख पाते हैं.
कैसे पता चला है मैग्नेटिक फील्ड का
इन तारों से निकली कम फ्रीक्वेंसी की पकड़ने केलिए बहुत ही संवेदनशील टेलीस्कोप की जरूरत ही है. uGMRT की उच्च संवेदनशीलता और क्षमता उच्च रिजॉल्यूशन की तस्वीरें इन पिंडों के भेजे गए संकेतों को पकड़ने के लिए बहुत उपयोगी है जिससे आकाश से अलग अलग तरह के संकेतों से उन्हें अलग कर पहचाना जा सकता है. uGMRT के जरिए इनकी मैग्नेटिक फील्ड और तापमान के बारे में जानकारी मिल पाती है जिनसे इन तरंगों की तीव्र का निर्धारण होता है.
इन नतीजों की व्याख्या करने वाला शोधपत्र एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार हो गया है. इस अधययन की प्रथम लेखक बरनाली दास ने हाल ही में एनसीआरए की प्रोफेसर पूनम चंद्रा के मार्गदर्शन में अपनी पीएचडी पूरी की है और इन तारों को मेन सीक्वेंस रेडियो पल्स एमिटर (MRP) नाम इन दोनों ने ही दिया है.