खेती-योग्य जमीन के लिए भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर...चीन में उपजाऊ की कमी के बाद भी उत्पादन में वृद्धि...जानें कैसे

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भुखमरी के शिकार देशों में भारत इस नंबर पर है.

Update: 2020-10-19 11:01 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में भुखमरी के शिकार देशों में भारत 94वें नंबर पर है. बता दें कि इस सर्वे में 107 देश शामिल थे, जिनमें देश के पड़ोसी मुल्क जैसे पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश भी भारत से आगे रहे. इसके साथ ही इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि देश में आखिर कितना खाद्यान्न उपज रहा है, जो पूरा नहीं पड़ता. जानिए, खाद्यान्न उत्पादन के मामले में हम कहां हैं.

सबसे ज्यादा जमीन है हमारे पास

देश के पास लगभग 159.7 मिलियन हेक्टेयर खेती करने लायक जमीन है. ये दुनिया में चुनिंदा मुल्कों के पास ही है. हमसे आगे केवल अमेरिका है जिसके पास 174.45 मिलियन हेक्टेयर उपजाऊ जमीन है. आजकल भारत के पीछे पड़े देश चीन के पास हमसे काफी कम लगभग 103 मिलियन हेक्टेयर ही हैं. वहीं रूस खेती योग्य जमीन के मामले में 121.78 मिलियन हेक्टेयर के साथ तीसरे नंबर पर है.

इतनी जमीन के बाद भी हम खेती-किसानी से अन्न उपजाने के मामले में काफी पीछे हैं. यहां तक कि हमने उपज का अपना टारगेट भी काफी कम रखा हुआ है. साल 2020-21 में हमने 298.3 मिलियन टन अनाज उपजाने का टारगेट तय किया, इसमें भी मुख्यतः चावल और गेहूं हैं. वहीं चीन का टारगेट 347.9 मिलियन टन रहा.

चीन और भारत की तुलना क्यों

यहां चीन से तुलना करने की एक खास वजह है, जो है दोनों देशों की आबादी. लगभग 143 करोड़ आबादी के साथ चीन दुनिया में पहले नंबर पर है, जबकि 136 करोड़ के करीब जनसंख्या के साथ हम आबादी के मामले में दूसरे स्थान पर हैं. इसके बाद भी खाद्यान्न उपजाने का टारगेट तय करने और उस टारगेट तक पहुंचने के मामले में हम चीन से काफी पीछे खड़े हैं

कितना फर्क है दोनों की उपज में

वैसे यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) का मानना है कि इस साल भारत खाद्यान्न की उपज के मामले में काफी आगे हो सकता है. यहां चावल और गेहूं की उपज क्रमशः 117 और 105 मिलियन टन होने का अनुमान है. लेकिन खुद की चीन से तुलना करें तो हम हैरान रह जाएंगे. चीन में साल 2020-21 में ही 212 मिलियन टन चावल और 135 मिलियन टन गेहूं की उपज हो सकती है.

देश में कुपोषण है ज्यादा

चीन हर साल अतिरिक्त अनाज का उत्पादन करता है, जो या तो दूसरे देशों को चला जाता है, या फिर वहीं पर स्टोर होता है ताकि मुश्किल समय में काम आ सके. जैसे इस बार कोरोना के चलते अर्थव्यवस्था पर असर हुआ, लिहाजा ये सरप्लस अनाज चीन में खप जाएगा. वहीं भारत खेती की उपज के मामले में 21.3 प्रतिशत से साथ काफी आगे तो है लेकिन यहां खुद के लोग कुपोषण का शिकार हैं.

खाद्यान्न की शुद्ध उपलब्धता कितनी

विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो देश में 1 से 5 साल तक के 30 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं यानी किसी न किसी तरह से कुपोषण का शिकार हैं. देश के कई हिस्सों में अब भी चावल, गेहूं और दाल की भारी कमी है. आर्थिक सर्वेक्षण 2018 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्यान्न की शुद्ध उपलब्धता प्रति व्यक्ति 487 ग्राम प्रतिदिन है. ये चीन से काफी कम है और अमेरिका जैसे देशों के तो आसपास भी नहीं ठहरती. अनाज के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी जरूर हुई लेकिन प्रति व्यक्ति आवश्यकता में घटत दिखने लगी.

चीन में खाना बचाने की मुहिम शुरू

दूसरी ओर चीन की बात करें तो यहां खेती-लायक जमीन कम होने के बाद भी काफी पैदावार की कोशिश होती है. साथ ही साथ खाने की बचत के प्रयास भी हो रहे हैं. हाल ही में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऑपरेशन एम्प्टी प्लेट अभियान की शुरुआत की. इसके तहत लोगों से न केवल घरों में खाना बचाने की अपील हुई, बल्कि एक अनूठा तरीका निकाला गया.

रेस्टोरेंट दे रहे वजन के अनुसार खाना

वहां अब रेस्त्रां जाने पर वहां लोगों का वजन लिया जाता है और उसके मुताबिक ही उन्हें खाने की क्वांटिटी मिलती है. खुद स्टेट न्यूज एजेंसी शिन्हुआ में जिनपिंग ने रेस्त्रां मालिकों से एक डिश कम सर्व करने की बात की. खुद चीन के खाद्यान्न संबंधी विभाग के उप निदेशक वू जिदान के अनुसार, देश में 32.6 अरब अमेरिकी डॉलर के भोजन की बर्बादी होती है. ऐसे में खाना बचाने को फिलहाल चीन सैन्य ताकत बढ़ाने जितना जरूरी मानकर चल रहा है और कोशिश भी कर रहा है.

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