अयोध्‍या में कैसे हुआ रामलला का सूर्य तिलक,क्या आपने समझा इसके पीछे का साइंस

Update: 2024-04-18 06:22 GMT
अयोध्या में रामनवमी के दिन बुधवार को दोपहर 12 बजे रामलला के माथे पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। भगवान राम के सूर्य अभिषेक पर कई सालों से काम चल रहा था। वैज्ञानिकों ने इस पर काफी शोध किया और कुछ दिन पहले ट्रायल भी किया, जो सफल रहा। इस पल को देखने के लिए दुनिया भर से लोग टीवी और ऑनलाइन पोर्टल पर मौजूद थे। वैज्ञानिकों के प्रयास से आस्था का यह पल साकार हुआ। आखिर कैसे पड़ी सूर्य की किरणें रामलला के माथे पर? आइए जानते हैं इसके पीछे का विज्ञान।
सीबीआरआई' रुड़की ने किया 'अद्भुत'
रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे भगवान राम का जन्म हुआ था। 'सूर्य तिलक' का उद्देश्य यह है कि हर साल रामनवमी पर दोपहर 12 बजे भगवान राम की मूर्ति के माथे पर सूर्य की किरणें पड़ें। इसे संभव बनाने के लिए 'केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान' (सीबीआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा सूर्य तिलक की व्यवस्था तैयार की गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) ने भी मदद की, ताकि सूर्य के मार्ग का सटीक पता चल सके। वैज्ञानिकों ने क्या किया रामलला के माथे पर सूर्य की किरणें भेजने के लिए वैज्ञानिकों ने 3 दर्पणों का इस्तेमाल किया।
पहला दर्पण मंदिर की सबसे ऊपरी मंजिल (तीसरी मंजिल) पर लगाया गया था। दोपहर 12 बजे जैसे ही सूर्य की किरणें उस दर्पण पर पड़ीं, वे 90 डिग्री पर परावर्तित होकर एक पाइप के जरिए दूसरे दर्पण पर पहुंच गईं। वहां से सूर्य की किरणें फिर से परावर्तित होकर पीतल के पाइप के जरिए तीसरे दर्पण पर पहुंचीं। तीसरे दर्पण पर पड़ने के बाद सूर्य की किरणें फिर से 90 डिग्री पर परावर्तित होकर 90 डिग्री की गति से घूमते हुए सीधे रामलला के माथे पर पड़ीं। 75 मिमी आकार, 4 मिनट तक रोशनी जब पाइप से गुजरते हुए सूर्य की किरणें रामलला के माथे पर पड़ीं, तो 75 मिमी का गोलाकार बना। सूर्य की किरणें कुल 10 मिनट तक रामलला के सिर पर पड़ीं। यह पूरा प्रयोग बिना बिजली के किया गया। इस प्रयोग में प्रयुक्त लेंस और ट्यूब का निर्माण बैंगलोर स्थित कंपनी ऑप्टिका द्वारा किया गया है।
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