हेपेटाइटिस की समस्या हो सकती है जानलेवा, संभाल के रखें अपने 'जिगर' के टुकड़े को!
नई दिल्ली: कभी भी आम बोल चाल में दिल का टुकड़ा, किडनी का टुकड़ा या लंग्स का टुकड़ा नहीं कहा जाता है, हमेशा जब भी ऐसी कोई बात होती है तो मेरे जिगर का टुकड़ा कहा जाता है। अकसर कहा जाता है मेरे जिगर का टुकड़ा... मुझे बहुत प्यारा। कभी सोचा आपने ऐसा क्यों? तो आइए बताते हैं कि ऐसा कहा क्यों जाता है!
ऐसा इसलिए क्योंकि जिगर (लिवर / यकृत) हमारे शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बिना शरीर की ज्यादातर गतिविधियां जैसे मेटाबॉलिज्म, एंजाइम का निकलना, पाचन आदि संभव ही नहीं। आपके 'जिगर के टुकड़े' से जुड़ा ऐसा ही संक्रामक रोग हेपेटाइटिस है। आयुर्वेद फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के संस्थापक और नोएडा के आयुर्वेदाचार्य डॉ अभिषेक गुप्ता ने सामान्य भाषा में इसका अर्थ, मर्म और उपचार बताया।
डॉ अभिषेक के मुताबिक जब भी किसी बीमारी के अंत में आइटिस आ जाता है तो इसका सीधा अर्थ होता है सूजन या संक्रमण । जैसे नेफ्रैटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस आदि। इसी तरह से हेपेटाइटिस भी सूजन और इन्फेक्शन से जुड़ी समस्या होती है जिसमें हमारा लिवर (यकृत / जिगर) प्रभावित होता है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की परिभाषा के अनुरूप हेपेटाइटिस यकृत की सूजन है जो विभिन्न प्रकार के संक्रामक वायरस और गैर-संक्रामक एजेंट्स के कारण होती है, इसके कारण कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, जिनमें कुछ जानलेवा भी हो सकती हैं।
हेपेटाइटिस वायरस के पांच मुख्य प्रकार हैं: जिन्हें ए, बी, सी, डी और ई प्रकार कहा जाता है। यह सभी प्रकार लिवर से सम्बंधित रोगों का कारण बनते हैं, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति में इसके संक्रमण के तरीके, बीमारी की गंभीरता, लोगों के रहने का वातावरण, उनका खान-पान और रोकथाम के तरीकों आदि के कारण इसका प्रभाव अलग-अलग होता है।
डॉ, डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों का हवाला देते हैं। कहते हैं, हेपेटाइटिस बी और सी ज्यादातर लोगों में गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं और ये लिवर सिरोसिस, लिवर कैंसर और वायरल हेपेटाइटिस से संबंधित मौत का सबसे आम कारण हैं। WHO के अनुमानित आकड़ों के अनुसार लगभग 354 मिलियन लोग दुनिया भर में हेपेटाइटिस बी या सी के कारण संक्रमित रहते हैं।
हेपेटाइटिस A छोटे बच्चों में ज्यादा फैलता है, जो संक्रमित पानी या खाने से फैलता है। हेपेटाइटिस B और C के फैलने के सबसे बड़ा माध्यम है बॉडी फ्लूइड। जो संक्रमित खून चढ़ाने से, संक्रमित मां से उसके होने वाले बच्चे में, संक्रमित टूथ ब्रश या रेजर का प्रयोग करने से, इस्तेमाल की गई सिरिंज या इंस्ट्रूमेंट के प्रयोग से, संक्रमित व्यक्ति के साथ सेक्सुअल रिलेशन भी एक कारण हो सकता है और लम्बे समय तक ज्यादा शराब पीते रहना भी एक कारण हो सकता है।
हेपेटाइटिस D, जिसे हेपेटाइटिस B है उसे हेपेटाइटिस D भी हो सकता है। हेपेटाइटिस E ज्यादातर वयस्कों में होता है, ज्यादा खतरनाक नहीं होता है। यह संक्रमित पानी या खाने से फैलता है।
इन दिनों टैटुइंग का क्रेज खूब है। लेकिन ये दीवानगी भी जिगर पर भारी पड़ सकती है। विशेषज्ञ कहते हैं, टैटू बनाते समय निडिल का प्रयोग किया जाता है, जिससे इंक स्किन के अंदर डाली जाती है। कई बार यह सूई रक्त के संपर्क में आ जाती है और जब किसी संक्रमित व्यक्ति का रक्त इसमें लग जाता है तो आगे यदि उसी सूई का प्रयोग किसी दूसरे व्यक्ति पर किया जाता है तो उसका संक्रमित होना निश्चित है। इससे बचने के लिए पहले तो ऐसे शौक से बचने की हिदायत दी जाती है और फिर भी अगर जरूरी है तो किसी लाइसेंस प्राप्त जगह से बनवाने की सलाह दी जाती है। ऐसी जगह जहां मशीन, नीडिल स्टरलाइज़ हो, आर्टिस्ट ने नए ग्लव्स पहनें हों व जिस जगह पर टैटू बनवाना हो उस जगह को भी स्टरलाइज किया गया हो।
टीकाकरण इससे बचने का प्रभावी तरीका है ये विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कहता है। लेकिन क्या हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद भी प्रभावी हो सकती है? इस सवाल पर डॉ अभिषेक गुप्ता कहते हैं- पंचकर्म एक विशेष उपचार प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से शरीर में मौजूद दूषित चीज़ों को बाहर निकालते हैं जिससे शरीर का कायाकल्प हो जाता है। इसके साथ-साथ लिवर के स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बेहतर औषधियां भी आयुर्वेद में ही हैं, जिन्हें अच्छे आयुर्वेद डॉक्टर के परामर्श से ले सकते हैं।