मंगल ग्रह से बड़ी खुशखबरी आई है. वहां की एक बड़ी घाटी में भारी मात्रा में पानी मिला है. यह खोज यूरोपीय स्पेस एजेंसी और रूसी स्पेस एजेंसी के 'मंगलयान' ने की है. असल में यह यान मंगल की सतह पर हाइड्रोजन की खोज कर रहा था, लेकिन वह इतनी बड़ी जानकारी हासिल करेगा, यह अंदाजा यूरोप और रूस के वैज्ञानिकों को भी नहीं था. आइए जानते हैं कि आखिर मंगल ग्रह के किस कोने पर इतना ढेर सारा पानी मिला है.
यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) और रूसी स्पेस एजेंसी (Roscosmos) के 'मंगलयान' एक्सोमार्स ट्रेस गैर ऑर्बिटर (ExoMars Trace Gas Orbiter) ने मंगल ग्रह के ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) में भारी मात्रा में पानी को खोजा है. यह पानी सतह से एक मीटर नीचे जमीन के अंदर मौजूद है.
ExoMars मंगल ग्रह का चक्कर लगा रहा है. इस यान पर मौजूद FREND पेलोड मंगल ग्रह के चारों तरफ हाइड्रोजन की खोज में लगा था. ताकि पानी की मौजूदगी का पता किया जा सके. लेकिन अचानक उसे वैलेस मैरिनेरिस ग्रैंड कैनियन की जमीन के अंदर भारी मात्रा में पानी की मौजूदगी का पता चला. यह जानकारी मिलते ही यूरोप और रूस के वैज्ञानिक हैरान रह गए. क्योंकि पानी की मात्रा का अनुमान किसी ने नहीं लगाया था.
ये बात सबको पता है कि मंगल ग्रह पर पानी था. अब भी वहां बर्फ देखने को मिल जाती है, खास तौर पर मंगल ग्रह पर जब सर्दियों का मौसम आता है. ये नजारा आमतौर पर मंगल ग्रह के ध्रुवीय इलाकों में देखने को मिलता है. लेकिन बर्फीले पानी की उम्मीद मंगल की भूमध्यरेखा के नजदीक नहीं की जाती, क्योंकि वह आमतौर पर गर्म रहता है. लेकिन भूमध्यरेखा के पास स्थित वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) ग्रैंड कैनियन की गहराई में पानी मौजूद है.
इससे पहले ESA के मार्स एक्सप्रेस ने भी मंगल ग्रह पर नीयर-सरफेस वाटर (Near Surface Water) के सबूत जुटाए थे. ये पानी धूलकणों और खनिजों के बीच मौजूद थी. खासतौर पर मंगल ग्रह की सतह से गहराई वाले या अंधेरे वाले इलाकों में. लेकिन इनकी मात्रा बेहद कम थी. लेकिन एक्सोमार्स ने जो खोज की है वो हैरान करने वाली है क्योंकि उसने ढेर सारे पानी की मौजूदगी का पता लगाया है.
मॉस्को स्थित स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ द रसियन एकेडमी ऑफ साइंसेस के साइंटिस्ट इगोर मित्रोफानोव ने कहा कि एक्सोमार्स ट्रेस गैर ऑर्बिटर (ExoMars Trace Gas Orbiter) मंगल ग्रह की सतह के एक मीटर नीचे तक देख सकता है. यह भी पता लगता सकता है कि पानी की मौजूदगी कहां ज्यादा है, कहां कम है. जो कि अब तक भेजे गए किसी भी यान के पेलोड ने नहीं देखा था. इसका FREND (Fine Resolution Epithermal Neutron Detector) न्यूट्रॉन टेलिस्कोप पेलोड पानी खोजने में मास्टर है.
FREND ने वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) ग्रैंड कैनियन में एक खास जगह को लोकेट किया है, जहां पर जमीन की सतह के नीचे हाइड्रोजन पानी के कणों के रूप में मौजूद है. यहां पर 40 फीसदी से ज्यादा इलाका पानी से भरा हुआ है. यह इलाका नीदरलैंड्स (Netherlands) देश जितना बड़ा है. यानी 41,543 वर्ग किलोमीटर के इलाके में पानी ही पानी मौजूद है. मंगल ग्रह पर यह पानी की सबसे बड़ी खोज है.
इगोर और उनकी साथियों ने मई 2018 से लेकर फरवरी 2021 तक FREND से मिले डेटा, तस्वीरों को बारीकी से खंगाला. यह पेलोड रोशनी के बजाय न्यूट्रॉन की स्टडी करके गैस की खोज करता है. जो रोशनी की तुलना में ज्यादा सटीक होती है. इगोर ने बताया कि न्यूट्रॉन्स (Neutrons) उच्च ऊर्जा वाले कण होते हैं. इन्हें गैलेक्टिक कॉस्मिक रेज (Galactic Cosmic Rays) भी कहा जाता है. ये मंगल ग्रह पर जब टकराते हैं तब सूखी हुई सतह ज्यादा न्यूट्रॉन पैदा करती है. लेकिन सतह गीली होती है तो न्यूट्रॉन्स नहीं निकलते. हम न्यूट्रॉन्स की गणना के अनुसार यह अंदाजा लगता सकते हैं कि पानी कहां पर कितने बड़े इलाके में मौजूद है.
स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट के दूसरे साइंटिस्ट और इगोर के साथी एलेक्सी मालाखोव ने बताया कि FREND की बेहतरीन तकनीक की वजह से हमें कई हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें मिली हैं. जिसकी वजह से हमें वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) ग्रैंड कैनियन में पानी की मौजूदगी को खोजने में आसानी हुई है. वैलेस मैरिनेरिस का मध्य भाग पानी से भरा हुआ है. यह उसी हालत में है जैसे धरती के कुछ इलाके पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) की स्थिति में हैं. जहां बर्फील पानी सूखी सतह के नीचे कम तापमान में बना रहता है.
एलेक्सी मालाखोव ने बताया कि यह पानी बर्फ के रूप में हो सकता है. या फिर अपने असली स्वरूप में भी. या फिर किसी खनिज के साथ रसायनिक रूप में मिश्रित होकर. लेकिन यह बात तो निश्चित है कि हमें मंगल ग्रह की वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) ग्रैंड कैनियन में भारी मात्रा में पानी मिल चुका है. हालांकि हमें उम्मीद है कि ये पानी बर्फ के रूप में ही मौजूद होगा. चुंकि ये सतह के नीचे है, इसलिए सुरक्षित है. सतह के ऊपर होता तो भाप बन जाता.
मंगल की सतह पर गर्मी और दबाव की वजह से पानी या बर्फ भाप बन जाता है. यही बात रसायनिक रूप से अलग-अलग चीजों के साथ मौजूद पानी पर भी लागू होता है. क्योंकि पानी या बर्फ को बनाए रखने के लिए सही तापमान, दबाव और हाइड्रेशन की जरूरत होती है. ताकि खनिजों और धूलकणों के साथ चिपके हुए पानी के कण भाप न बन सकें. वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) ग्रैंड कैनियन कई किलोमीटर गहरा है. जहां तक रोशनी और गर्मी नहीं पहुंचती, इसलिए यहां की सतह के नीचे पर्माफ्रॉस्ट की स्थिति में बर्फ या पानी की मौजूदगी की पूरी उम्मीद है.
भविष्य में अगर मंगल पर इंसानी बस्ती बनती है तो पानी की जरूरत पड़ेगी. इसलिए वैज्ञानिक ऐसे स्थानों की खोज कर रहे हैं, जो गहराई में हों. जैसे- घाटियां या गुफाएं. जहां रोशनी कम आती हो और अंधेरा भी सही मात्रा में मिलता हो. अगर ज्यादा गर्म इलाका हुआ तो रहना मुश्किल होगा साथ ही पानी की किल्लत से जूझना पड़ेगा. अगर इन इलाकों में प्राकृतिक तौर पर पानी बनता है और वह बिना गर्मी और रोशनी के ज्यादा दिनों तक टिक सकता है तो इंसानी बस्ती बनाना आसान होगा.
वैलेस मैरिनेरिस (Valles Marineris) ग्रैंड कैनियन में पानी मिलने से अब भविष्य में इस इलाके में कई अन्य मिशन भेजे जा सकते हैं, ताकि पानी की खोज को पुख्ता किया जा सके. अगर पानी मौजूद है तो उसे इंसानों के उपयोग लायक बनाया जा सके. क्योंकि मंगल ग्रह की यह घाटी धरती के ग्रैंड कैनियन से 10 गुना ज्यादा लंबी और पांच गुना ज्यादा गहरी है.