मिला ऐसा जीव जिसके लोहे के बने है दांत, ऐसा विचित्र जीव कभी देखा है?

Update: 2021-06-01 08:32 GMT

कई जानवर ऐसे होते हैं जिनके दांत बेहद नुकीले और एक बार में ही अपने शिकार की जान लेने के लिए काफी होते हैं. लेकिन वैज्ञानिकों ने एक ऐसा जीव खोजा है, जिसके दांत लोहे के बने हैं. जबकि आमतौर पर जीवों के दांत कैल्सियम के बने होते हैं. इस जीव के दांत में दुर्लभ लौह धातु पाई गई है. यह इन दांतों से पत्थरों को खाता है. अब आप ही सोचिए जिस जीव के दांत लोहे के हो वो पत्थर ही तो खाएगा...या कुछ और भी खाता है. आइए जानते हैं इस विचित्र जीव के बारे में...

सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि घोंघे (Snail) की प्रजाति का जीव है. आमतौर पर घोंघे बेहद नर्म होते हैं, लेकिन इस जीव के दांत इसकी नरमी को कठोरता में बदल देते हैं. इस जीव को लोग प्यार से वैंडरिंग मीटलोफ (Wandering Meatloaf) बुलाते हैं. वैज्ञानिक भाषा में इसका नाम है क्रिप्टोशिटोन स्टेलेरी (Cryptochiton Stelleri). यह आमतौर पर पथरीले तटों वाले इलाके में पाया जाता है. इस जीव के दांत और खाने के तरीके को देखकर वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं. 
अगर आम भाषा में वैंडरिंग मीटलोफ (Wandering Meatloaf) को 'भटकता हुआ गोश्त' कह सकते हैं क्योंकि इसे देखने पर यह एक मांस के टुकड़े भूरे लाल रंग का दिखता है. लेकिन ये वैज्ञानिक भाषा में सही नहीं है. वैज्ञानिकों को इस जीव के दांत में दुर्लभ लौह अयस्क सैंटाबारबराइट (Santabarbaraite) मिला है. इसके शरीर की आकृति अंडाकार होती है. ऊपर की तरफ कैल्सियम से बना मजबूत शेल होता है. इसकी अधिकतम लंबाई 14 इंच तक हो सकती है. यानी एक फीट से दो इंच ज्यादा. 
इलिनॉय स्थित नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डर्क जॉस्टर ने बताया कि वैंडरिंग मीटलोफ पत्थरों को खा सकते हैं. किसी भी पत्थर में अपने दातों से ये एक सुरंग जैसा बना देता है. इसके दांतों में मिलने वाला दुर्लभ लौह अयस्क सैंटाबारबराइट में उच्च स्तर पर पानी की मात्रा होती है. इसके बावजूद यह कम घनत्व वाला लौह अयस्क काफी मजबूत होता है.
डर्क जॉस्टर ने बताया कि सैंटाबारबराइट की वजह से वैंडरिंग मीटलोफ (Wandering Meatloaf) के दांतों में काफी मजबूती आती है. इस जीव को जायंट पैसिफिक शिटोन (Giant Pacific Chiton) और जायंट गमबूट शिटोन (Giant Gumboot Chiton) भी कहते हैं. यह घोंघे की प्रजाति है जिसके जीव आमतौर पर घोंघे से बड़े होते हैं. इनके शरीर के ऊपर बने शेल कवर कैल्सियम की कई परतों से बने होते हैं. शरीर अंडाकार और चिपटा होता है. 
प्रो. डर्क ने बताया कि शिटोन अपने कड़े दांतों के लिए जाने जाते हैं, इसके बावजूद ये दांत बेहद नरम शरीर में होते हैं. इनकी जीभ को रेडुला (Radula) कहते हैं, जो बेहद नरम और लचीली होती है. जब ये पत्थरों पर अपना खाना खोजते हैं उस समय दांत बाहर आ जाते हैं और जीभ अंदर लपलपाती रहती है. पत्थर पर चिपकी काई व अन्य छोटे जीवों को खाने के लिए सिर्फ उसे ही नहीं खाते बल्कि उसके आसपास के पत्थर को भी खा जाते हैं. 
डर्क और उनकी टीम पहले भी शिटोन के दांतों का अध्ययन कर चुके हैं. लेकिन वो उस ढांचे की स्टडी करना चाहते थे जिसमें दांत की जड़ होती है. इसे स्टाइलस (Stylus) कहते हैं. इसी खांचे में इस जीव के लोहे के दांत एक नरम ऊतक यानी टिश्यू से चिपके होते हैं. जो खाते समय बेहद मजबूत लेकिन लचीली रहती है. डर्क और इनकी टीम ने इस जीव के दांतों का अध्ययन करने के लिए सिंक्रोट्रोन लाइट सोर्स (Synchrotron Light Source) और ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (Transmission Electron Microscopy) जैसी अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लिया है. 
जब उन्होंने माइक्रोस्कोप के नीचे दांतों के बनावट की स्टडी की तो उसमें स्पष्ट तौर पर सैंटाबारबराइट की मौजूदगी ऊपरी स्टाइलस में देखने को मिली. डर्क ने बताया कि आजतक यह लौह अयस्क सिर्फ भूर्गभीय स्पेसिमेन में ही देखने को मिली थी. वह भी बेहत कम मात्रा में. लेकिन वैंडरिंग मीटलोफ के दांतों में यह काफी ज्यादा मात्रा में है. इससे पहले किसी अन्य जीव के दांतों या शरीर में ऐसा लौह अयस्क नहीं देखा गया है. 
डर्क ने बताया कि ये जीव अपने पूरे दांत का उपयोग करता है. इंसानों या अन्य जानवरों की तरह दांतों के अलग-अलग हिस्से का अलग-अलग उपयोग नहीं करता. खाते समय इसके सारे दांत एकसाथ काम करते हैं. डर्क के साथी और पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो लिनस स्टेजबॉर ने इस जीव के दांतों का थ्रीडी मॉडल बनाया. इसके लिए उन्होंने लोहा और फॉस्फेट आयन को मिक्स किया. इससे जो बायोपॉलीमर बना, उसकी मदद से इन्होंने इसके दांत और मुंह के अंदरूनी हिस्से का थ्रीडी मॉडल बनाया ताकि स्टडी में और मदद मिल सके. 
लिनस स्टेजबॉर ने बताया कि बायोपॉलीमर धीरे-धीरे करके और मजबूत और चिपचिपा होता जाता है. इससे पता चलता है कि वैंडरिंग मीटलोफ के दांत कितने मजबूत हैं. यह स्टडी 31 मई को प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस (Proceedings of the National Academy of Sciences - PNAS) में प्रकाशित हुई है. 


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