जानें आखिर क्यों गैलेक्सी का आकार होता है सदैव भिन्न
तारों के साथ ही विभिन्न गैलेक्सी या मंदाकिनी के आकार भी हमारे खगोलविदों को हैरान करते आए हैं.
दो ही तरह की गैलेक्सी होती हैं
किसी गैलेक्सी का आकार लेना कोई निश्चित घटना नहीं होती है. लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक खगोलविद गैलेक्सी को केवल दो ही प्रमुख प्रकार में बांटते हैं. एक डिस्क और दूसरा अंडाकार (Elliptical). डिस्क गैलेक्सी को सर्पिल गैलेक्सी भी कहा जाता है. कैलटेक में एस्ट्रोफिजिसिस्ट कैमरन ह्युमेल्स का कहना है कि इन गैलेक्सी का आकार एक तरह से तले हुए अंडे के जैसा होता है.
क्यों होती हैं ये तले अंडे की तरह
ह्युमेल्स के मुताबिक इन गैलेक्सी के केंद्र ज्यादा गोल होता है जो कि अंडे के पीले भाग की तरह होता है. इस हिस्से का आस पास गैस और तारों की डिस्क होती है जो अंडे के सफेद हिस्से की तरह होता है. हमारी गैलेक्सी मिल्की वे और उसकी नजदीकी गैलेक्सी एंड्रोमीडा इसी श्रेणी में आती हैं.ऐसे बनता है आकार
डिस्क गैलेक्सी की शुरुआत हाइड्रोजन के बादलों से होती है. गुरुत्व गैसे के कणों को साथ रखता है. जैसे हाइड्रोजन के परमाणु एक दूसरे के पास आते हैं, बादल घूमने लगता है और उसका भार बढ़ने लगता है. इससे गुरुत्व बढ़ने लगता है. बाद में गैस सिमटकर एक घूमती हुई डिस्क में बदल जाती है. इसमें से बहुत सी गैस में तारों का निर्माण होता है.
अंडाकार आकार होता है अलग
वहीं दूसरी ओर अंडाकार गैलेक्सी जिसे हबल ने शुरुआती गैलेक्सी कहा था. ये गैलेक्सी घूमती नहीं हैं जैसा की डिस्क गैलेक्सी के साथ होता है. इस तरह की गैलेक्सी में तारों का असामान्य वितरण होता है. इस तरह की गैलेक्सी समान भार वाली गैलेक्सी के विलय से उनके तारे एक दूसरे को गुरुत्व के कारण खींचते हैं जिससे तारों का घूमने पर असर होता है और उनका गति असामान्य हो जाती है.
विलय के बाद यह आकार जरूरी नहीं
जरूरी नहीं है कि हर गैलेक्सी विलय के बाद अंडाकार ही हो जाएं. खुद हमारी मिल्की वे ने भी अपना सर्पिल आकार कायम रखा है और वह अपना भार ड्वार्फ गैलेक्सी को खींचकर बढ़ाती रहती है. वहीं एंड्रोमीडा गैलेक्सी हमारी ही गैलेक्सी की ओर बढ़ रही है और हो सकता है कि कुछ अरब सालों में दोनों का विलय हो जाए और एक दूसरे का घूर्णन प्रभावित कर एक अंडाकार गैलेक्सी बन जाए.
एक और आकार
इसके बाद एक और आकार बहुत पाया जाता है जो अंडाकार और डिस्क के बीच का आकार होता है. जब किसी डिस्क गैलेक्सी की गैस खत्म हो जाती है यानि उसका पूरा उपयोग हो जाता है, तब तारे एक दूसरे को खींचने में लग जाते हैं जिसकी वजह से गैलेक्सी का आकार लेंटिल की तरह हो जाता है जो में अंडाकार रहने के बाद भी गैलेक्सी एक घूमती हुई डिस्क लगती है.
यह रही है कोशिश
वैज्ञानिकों ने अब तक जो विभिन्न गैलेक्सी की हजारों तस्वीरें के जरिए उनका त्रिआयामी आकार समझने की कोशिश की है. इसके लिए उन्होंने उनके गुणों, उनके रंग और गतिविधि की मदद ली है. जैसे कि नीले तारे युवा और ऊर्जावान होने का इशारा करते हैं. वहीं लाल तारे या तो खत्म होने वाले होते हैं या बहुत पुराने होकर खत्म होने की प्रक्रिया में जा चुके होते हैं.
इस तरह की और भी जानकारियां होने पर भी खगोलविदों को अभी बहुत कुछ जानना है. ह्यूमेल्स का कहना है कि गैलेक्सी का बनाना और उनका विकास खगोलविज्ञान और खगोलभौतकी में एक बहुत ही बड़ा सवाल है