उड़ने में नाकाम होने के कारण खुद को दुनिया में कायम नहीं रख सके डायनासोर...दो प्रजातियों के थे चमगादड़ जैसे पंख

डायनासोर के बारे में हमारे वैज्ञानिकों को जीवाश्मों के जरिए जानकारी मिलती रही है.

Update: 2020-10-23 13:57 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। डायनासोर के बारे में हमारे वैज्ञानिकों को जीवाश्मों के जरिए जानकारी मिलती रही है. जैसे जैसे नए जीवाश्म मिल रहे हैं, वैसे ही उनकी नई प्रजातियों और विशेषताओं के बारे में पता चलता जा रहा है. हाल ही में हुए एक शोध में पता चला है कि दो छोटे डायनासोर में चमगादड़ (Bat) के जैसे पंख तो थे, लेकिन वे पक्षियों (Birds) की तरह उड़ान (Flying) नहीं भर सके थे. वे केवल पेड़ों के बीच ग्लाइड (Glide) ही कर सकते थे.

उड़ने में परेशानी

यी और एम्बोप्टेरिक्स, ये दो छोटे डायनासोर के चमगादड़ जैसे पंख थे, लेकिन उन्हें पक्षियों की तरह उड़ने में परेशानी होती हैं. वे केवल किसी तरह से पेड़ों के बीच ग्लाइड ही कर सकते थे. आईसाइंस (iScience) जर्नल में प्रकाशित इस शोध में पता चला है कि ये डायनासोर पेड़ों पर रहने वाले अन्य डायनासोर और शुरुआती पक्षियों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं थे. वे केवल कुछ ही लाख सालों में ही विलुप्त हो गए.

अस्तित्व का संकट

इस अध्ययन से यह इस बात को बल मिलता है कि आधुनिक पक्षियों के विकसित होने से पहले डायनासोर ने कई तरह से उड़ान भरने के तरीके विकसित किए थे. माउंड मार्टी यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रथम लेखक थॉमस डिसेकी ने बताया, "ये दो प्राजतियां हवा में उड़ने के लिए इतनी ज्यादा कमजोर थीं कि एक बार हवा में आने के बाद ये गिर जाते थे. आप खराब प्रदर्शन के बाद भी कुछ लाख सालों तक तक बचे रहे सकते हैं, लेकिन आपके सामने ऊपर से नीचे तक शिकारियों की मौजूदगी थी. ऐसे में इनका गायब हो जाना तय था."

थेरोपॉड डायनासोर के अनूठे उदाहण

यी और एम्बोप्टेरिक्स उत्तर जूरासिक चीन के छोटे जानवर थे जो करीब 16 करोड़ साल पहले पाए जाते थे. इनका वजन केवल दो ही पाउंड के बराबर था. वे थेरोपॉड डायनासोर के अनुठे उदाहरण है. यह वह समूह है जिससे पक्षियों का उदय हुआ था. अधिकतर थेरोपॉड्स जमीन पर रहना पसंद करते थे और मांसाहारी हुआ करते थे, लेकिन यी और एम्बोप्टेरिक्स पेड़ों पर रहना पसंद करते थे और कीड़े, बीज और अन्य पौधे खाया करते थे.


कैसे पता लगाया उड़ने की क्षमता का

इस बात को जानने के लिए कि ये जानवर उड़ते कैसे थे, डिसेकी और उनके साथियों ने जीवाश्मों का लेसर सिम्यूलेटेड फ्लोरेसेंस (LSF) का उपयोग कर स्कैन किया. यह तकनीक लेजर प्रकाश का उपयोग नर्म ऊतकों की विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए किया. इसके बाद टीम ने गणितीय मॉडल का उपयोग कर यह अनुमान लगाया कि ये कैसे उड़ सकते थे. 

क्यों होती थी उड़ने में परेशानी

इन डायनासोर के वजन, पंखों के विस्तार और मांसपेशियों के स्थान का अध्ययन किया. डिसेकी ने बताया, "वे शक्तिशाली उड़ान नहीं भर सकते थे. इसके लिए उनका कम वजन होना चाहिए था, उनमें पंख फड़फड़ाने की क्षमता होनी चाहिए थे. वे ग्लाइड तो कर सकते थे लेकिन ये ग्लाइडिंग लंबी नहीं हो सकती थी."

ग्लाइडिंग और उड़ने में अंतर

ग्लाइडिंग में उड़ने जैसी बात नहीं होती. इसे तभी संभव बनाया जा सकता है जब जानवर किसी ऊंचाई पर हो. इसी से यी और एम्बोप्टेरिक्स को जीवित रहते हुए खतरों से बचने में मदद मिली. यदि किसी जानवर को लंबी दूरी पर जाना हो तो ग्लाइडिंग में शुरूआत में ऊर्जा ज्यादा लगती है, लेकिन ये तेज होती है. कई बार यह खाए जाने और ऊर्जा खपाने में से चुनाव की बात हो जाती है.

डिसेकी ने बताया कि एक बार दबाव में आने पर गिर जाते थे और वे न तो जमीन पर और न ही हवा में अपना वर्चस्व कायम रख पाते थे. शोधकर्ता अब इन डायनासोर की मांसपेशियों का अध्ययन कर इनकी सटीक तस्वीर बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

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