अंटार्कटिका में भीषण गर्मी का असर, टूटी बर्फ की चट्टान
धरती के ध्रुवीय इलाके अंटार्कटिका में पड़ रही भीषण गर्मी विनाशकारी साबित हो रही है
वॉशिंगटन: धरती के ध्रुवीय इलाके अंटार्कटिका में पड़ रही भीषण गर्मी विनाशकारी साबित हो रही है। गर्मी की वजह से मध्य मार्च में लगभग दिल्ली के आकार का बर्फ का पहाड़ टूट गया। इस बर्फ के टुकड़े का नाम कोंगर आइस सेल्फ है और यह 1200 वर्ग किमी तक फैला हुआ है। बताया जा रहा है कि बर्फ का यह विशाल टुकड़ा 15 मार्च को अंटार्कटिका से अलग हुआ। इस दौरान वहां पर तापमान बढ़कर माइनस 12 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था जो सामान्य से 40 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।
ब्रिटिश समुद्र विज्ञानी रॉब लार्टर ने कहा, 'मैं नहीं समझता हूं कि जब से हम सैटलाइट डेटा का परीक्षण कर रहे हैं, तब से लेकर अब तक पूर्वी अंटार्कटिका से इतना बड़ा बर्फ का टुकड़ा पहले कभी टूटा था।' उन्होंने कहा, 'कोंगर एक बहुत छोटा बर्फ का टुकड़ा था जिसका आकार पिछले कई साल से लगातार कम हो रहा था। अंतत: यह टूटकर अलग हो गया।' अंटारर्कटिका धरती पर सबसे ठंडा और सबसे बर्फीला स्थान है जो अब भीषण गर्मी का सामना कर रहा है।
जलस्तर में औसतन 9 इंच की बढ़ोत्तरी
यह बर्फ का टुकड़ा ऐसे समय पर टूटा है जब अंटार्कटिका में पहली बार इस साल सबसे कम बर्फ का प्रसार हुआ है। इस इलाके में समुद्र को बर्फ ढंके रहती है। इस तरह के बर्फ के टुकड़े बर्फ को पिघलकर समुद्र में जाने से रोकते हैं। अगर ये टुकड़े न हो तो बर्फ पिघलकर सीधे समुद्र में चली जाएगी और उसका जलस्तर लगातार बढ़ने लगेगा। इससे धरती के निचले इलाकों में पानी भर जाएगा।
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो में बर्फ विज्ञानी टेड स्कामबोस का भीषण गर्मी के बारे में कहना है कि अंटार्कटिका में पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया। वहीं विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी में मौसम विज्ञानी मैथ्यू लज्जारा ने कहा कि जब ऐसी चीज देखते हैं तो यह निश्चित रूप से अच्छा संकेत नहीं है।दरअसल, अंटार्कटिका में बर्फ के रूप में इतना ज्यादा पानी जमा है जिसके पिघलने से दुनियाभर में समुद्र का जलस्तर करीब 200 फुट तक बढ़ सकता है। वहीं नेचर पत्रिका के मुताबिक वर्ष 1880 के बाद समुद्र के इस जलस्तर में औसतन 9 इंच की बढ़ोत्तरी हुई है। इनमें से एक तिहाई पानी ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से आया है।