स्टडी में दावा: चांद ही नहीं उसका बेटा भी कर रहा ये काम

Update: 2021-11-12 05:40 GMT

चांद से निकला एक पत्थर हर साल धरती के चारों तरफ संदिग्ध तौर पर चक्कर लगाता है. यह धरती के चारों तरफ करीब 14,484,096 किलोमीटर की दूरी से निकलता है. यह पत्थर एक फेरी-व्हील के आकार का है, यानी करीब 190 फीट व्यास का है. वैज्ञानिकों ने अब जाकर इसकी एक रिपोर्ट जर्नल नेचर कम्यूनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरमेंट में प्रकाशित की है. जिसमें इसके बारे में डिटेल में बताया गया है. 

चांद के इस पत्थर का नाम है कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa). वैज्ञानिक इसे एस्टेरॉयड की श्रेणी में रखते हैं. यह पहला एस्टेरॉयड है जो चांद से पैदा हुआ है और धरती के चक्कर लगा रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके अध्ययन से धरती और चांद के प्राचीन संबंधों का खुलासा हो सकता है. कामो-ओलेवा एक हवाइयन शब्द है. जिसका मतलब होता है घूमता हुआ अंतरिक्ष का टुकड़ा. इसकी खोज हवाई के एस्ट्रोनॉमर्स ने साल 2016 में PanSTARRS टेलिस्कोप से की थी. 
इसे कोई भी इंसान खुली आंखों से नहीं देख सकता क्योंकि ये आंखों से दिखने वाली वस्तुओं की तुलना में 40 लाख गुना धुंधला है. लेकिन हर साल अप्रैल के महीने में यह धरती के नजदीक से चक्कर लगाते हुए आगे की तरफ निकल जाता है. वैज्ञानिक इसे ताकतवर टेलिस्कोप की मदद से कुछ समय के लिए ही देख पाते हैं. यह 1.44 करोड़ किलोमीटर की दूरी से निकलता है. यह धरती और चांद की दूरी से 40 गुना ज्यादा है. 
धरती से नजदीकी होने की वजह से कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) को क्वासी-सैटेलाइट्स (Quasi Satellites) की श्रेणी में भी रखा गया है. क्योंकि ये सैटेलाइट्स सूरज की कक्षा में चक्कर लगाते हैं लेकिन धरती के नजदीक होते हैं. इसके पहले भी वैज्ञानिकों ने कई क्वासी सैटेलाइट्स की खोज की है. लेकिन उनका अध्ययन करना मुश्किल होता रहा है, क्योंकि वो आकार में बेहद छोटे और अत्यधिक धुंधले होते हैं. लेकिन इसके साथ ऐसा नहीं है. 
ऐसे छोटे पत्थरों की यात्रा को समझना मुश्किल होता है. लेकिन इस बार वैज्ञानिकों ने कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) के बारे में काफी हद तक अध्ययन किया. उसपर पड़ने वाली रोशनी का विश्लेषण करके. इन लोगों ने दक्षिणी एरिजोना के पहाड़ पर लगे बड़े बाइनोक्यूलर टेलिस्कोप की मदद से इस चांद के टुकड़े को नजदीक से देखा. इसे नजदीक से सिर्फ अप्रैल महीने में देखा जा सकता है. इसलिए वैज्ञानिकों ने साल 2016 से अब तक लगातार हर साल अप्रैल के महीने में इसका अध्ययन किया. 
स्टडी में पता चला कि कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) का लाइट स्पेक्ट्रम चांद से मिलता है. क्योंकि नासा के अपोलो मिशन से लाए गए पत्थरों का लाइट स्पेक्ट्रम भी बिल्कुल इसके जैसा ही था. चांद के बनते समय निकले कचरे में से यह पत्थर अलग हो गया और अब यह सूरज की कक्षा में चक्कर लगा रहा है. वैज्ञानिकों को लगता है कि यह पत्थर करोड़ों सालों से धरती के नजदीक चक्कर लगा रहा है लेकिन किसी को यह बात पता नहीं थी. 
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में प्लैनेटरी साइंस की प्रोफेसर और इस स्टडी की सहायक लेखिका रेनू मलहोत्रा ने कहा कि कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) का धरती से नजदीकी रिश्ता है. यह चांद का बेटा है. यह पत्थर उससे तब अलग हुआ होगा, जब धरती से चांद अलग होकर अपने निर्माण की प्रक्रिया में लगा था. चांद तो धरती के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में रह गया लेकिन यह चांद का यह बेटा दूर निकल गया. 
रेनू मलहोत्रा ने बताया कि चांद का यह टुकड़ा यानी एस्टेरॉयड कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) कैसे चांद से निकला इसकी सही गणना नहीं हो पाई है. लेकिन इसकी जमीन, रसायनिक प्रक्रिया और धातुओं की जांच करके यह स्पष्ट हुआ है कि यह पत्थर चांद से अलग हुआ था. सिर्फ इतना ही नहीं कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) के तीन भाई और हैं, जो सौर मंडल में धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रहे हैं. 
चांद से निकले ये चारों पथरीले भाई प्राचीन समय से अलग हुए हैं. रेनू कहती हैं कि इनकी जांच चल रही है. इन क्वासी सैटेलाइट्स के जन्म और विकास पर स्टडी हो रही है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कामो-ओलेवा (Kamo`oalewa) और उसके तीन भाई अगले 300 साल तक अपनी कक्षा में चक्कर लगाते रहेंगे. 

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