चीन अपने इस पहले मानव मिशन के लिए लॉन्ग मार्च 2एफ केरियर रॉकेट का इस्तेमाल करने वाला है। इसमें ईंधन भरने का काम शुरू कर दिया गया है। गौरतलब है कि चीन ने अपने स्पेस स्टेशन के कोर मॉड्यूल त्यानहे का निर्माण 29 अप्रैल को शुरू किया था। चीन अपने इस स्पेस स्टेशन को आने वाले दो में विभिन्न मिशन के जरिए नई तकनीक से सुसज्जित करना चाहता है। ये स्पेस स्टेशन फिलहाल अंडर कंस्ट्रक्शन है लेकिन इस वर्ष के अंत तक ये स्टेशन बन कर तैयार हो जाएगा। चीन के मेंड स्पेस इंजीनियरिंग ऑफिस के डायरेक्टर यांग लिवी जो अक्टूबर 2003 में शेंजू-5 क्राफ्ट से अंतरिक्ष में गए थे, का कहना है कि पहले तीन महीने एस्ट्रॉनॉट्स वहां पर तीन महीने रुककर विभिन्न काम को अंजाम देंगे। इनमें स्टेशन की रिपेयर और उसकी मेंटेनेंस भी शामिल है। इस स्पेस स्टेशन के बनने तक चीन की अगले वर्ष तक 11 स्पेस मिशन भेजने की योजना है।
इसमें तीन मॉड्यूल के लिए चार कार्गो स्पेश शिप, चार मानव मिशन शामिल हैं। यांग का कहना है कि इस मिशन में अंतरिक्ष यात्री केबिन से बाहर जाकर कंस्ट्रक्शन मिशन, स्पेस क्राफ्ट की मेंटेनेंस का काम भी करेंगे। धीरे-धीरे इन सभी काम को रोजाना के रुटिन में लाया जाएगा और इनका समय भी बढ़ाया जाएगा। चीन के इस स्पेस स्टेशन में रोबोटिक आर्म भी लगी है जिसको लेकर अमेरिका ने आपत्ति जताई थी कि ये सब कुछ मिलिट्री ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है। ये रोबोटिक आर्म करीब 15 मीटर लंबी है, जो विभिन्न काम में उपयोग लाई जा सकती है।
चीन के मेंड स्पेस इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट के प्रमुख डिजाइनर झोऊ जियानपिंग का कहना है कि एस्ट्रॉनॉट्स वहां पर रोबोटिक आर्म के साथ स्टेशन को बनाने में मदद करेंगे। इसका इस्तेमाल वो जरूरत के मुताबिक मेंटेनेंस के दौरान भी करेंगे। अमेरिका कमांड के कमांडर जेम्स डिकींसन का कहना है कि चीन भविष्य में दूसरे देशों की सेटेलाइट को पकड़ने के लिए इस तरह के मिशन को अंजाम देने पर तुला है। उनके मुताबिक इसको लेकर अमेरिका की चिंता स्वाभाविक है। उनका ये भी कहना है कि चीन अंतरिक्ष में लगातार अमेरिका के साथ प्रतियोगिता कर रहा है। आपको बता दें कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अमेरिका की नासा, रूस की रोस्कोमॉस, जापान की जेक्सा, यूरोपीयन स्पेस एजेंसी और कनाडा की स्पेस एजेंसी शामिल है।