वैज्ञानिकों के लिए चुनौती, यहां के रेगिस्तान मे बन जाता है रहस्यमय गोलाकार

अफ्रीका के घास के मैदानों में पाए जाने वाले 'Fairy circles' लंबे वक्त से वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बने थे।

Update: 2021-02-19 18:01 GMT

अफ्रीका के घास के मैदानों में पाए जाने वाले 'Fairy circles' लंबे वक्त से वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बने थे। अब एक ताजा स्टडी में दावा किया गया है कि ये एक ऐसे पौधे से बनते हैं जो मरने के बाद जहर बाहर छोड़ता है। मिट्टी में इस जहर के मिलने से ये 'फेरी सर्कल' नजर आते हैं। ये इतने जहरीले होते हैं कि स्थानीय लोग शिकार के लिए अपने तीर इनमें डुबोते हैं। ये जहर यूफोर्बिया (Euphorbia) नाम के पौधे से आता है। ये पौधे बेहद खतरनाक होते हैं और इंसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

रेगिस्तान के बीच बना पहेली
रिसर्चर्स का कहना है कि यह पौधा इस गोलाकार पैच के लिए जिम्मेदार है। ये नामीबिया के सूखी घास से भरे रेगिस्तान में दशकों से पहेली बना था। अंगोला और उत्तरी दक्षिण अफ्रीका के बीच ऐसे सैकड़ों पैच हैं जिनका डायमीटर 7 से 50 फीट तक का है। एक्सपर्ट्स का माना है कि यूफोर्बिया की प्रजातियां – E. damarana, E. gummifera और E. gregaria मरने पर ऐसा जहर छोड़ती हैं जिससे आसपास के पौधे मर जाते हैं। बढ़ता हुआ तापमान इन सर्कल्स को और ज्यादा भयावह बनाता है।
...हमेशा के लिए जा सकती हैं आंखें
दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ प्रिटोरिया और रूस के सेंट पीटर्सबर्ग की ITMO यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने मिलकर इस रहस्य से पर्दा उठाया है। यूनिवर्सिटी ऑफ प्रिटोरिया के प्रफेसर मारियॉन मेयर का कहना है कि इनके बनने के पीछे कई थिअरी हैं। इनका मकैनिज्म इतना विविध है क्योंकि इसे साबित करना मुश्किल है। स्थानीय रूप से यूफोर्बिया के पौधे सफेद और चिपचिपे दूध जैसे पदार्थ के लिए जाने जाते हैं। ये पौधे काफी खतरनाक होते हैं और इंसान अगर इनके जहर को छू ले तो हमेशा के लिए अंधा हो सकता है।
चली आ रहीं कई थिअरी
इससे पहले 2017 में एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ये फेरी सर्कल दीमक, चीटियों या चूहों की प्रजाति के कारण बने हैं। एक और थिअरी में दावा किया गया था कि सूखे इलाके में पानी के लिए प्रतिद्वंदिता के कारण पौधे ऐसे बने हैं जिससे जड़ों को बारिश का पानी अच्छे से मिल सके। हालांकि, प्रफेसर मेयर ने साफ-साफ कहा है कि ये पैच यूफोर्बिया के जहर से ही बने हैं। इस स्टडी के नतीजे BMC Ecology में प्रकाशित हुए हैं।


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