केंद्र सरकार ने दी मंजूरी: भारत का पहला मिलिट्री सैटेलाइट होगा लॉन्च, और...
नई दिल्ली: देश की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं यानी पाकिस्तान और चीन से सटी बॉर्डर लाइन पर भविष्य में ज्यादा बेहतर निगरानी होगी. क्योंकि भारत सरकार ने सैन्य उपग्रह (Military Satellites) समेत कई अन्य अत्याधुनिक यंत्रों और प्रणालियों की खरीदारी का निर्देश दिया है. इसके लिए 8357 करोड़ रुपए लगेंगे. जिसमें नाइट साइट यानी तस्वीर को स्पष्ट दिखाने वाला यंत्र, लाइट व्हीकल जीएस 4x4, एयर डिफेंस फायर कंट्रोल राडार (Light) और जीसैट-7बी (GSAT-7B) सैटेलाइट शामिल हैं.
इन यंत्रों के आ जाने से भारतीय सेनाओं को ज्यादा बेहतर विजिबिलिटी मिलेगी. ज्यादा बेहतर संचार होगा. ज्यादा तेजी से और सटीकता से हमला कर पाएंगे. साथ ही दुश्मन की जमीनी, जलीय और हवाई हरकत पर सीधे नजर रख पाएंगे. भारत के पास कई मिलिट्री सैटेलाइट्स हैं. लेकिन इनमें सबसे नई सीरीज है जीसैट (GSAT). आमतौर पर इन्हें संचार उपग्रहों की सूची में ही रखा जाता है. जो कई बैंड्स पर काम करते हैं. इनमें से कुछ बैंड्स का उपयोग सेना करती है.
जीसैट (GSAT) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित मल्टीबैंड सैन्य संचार उपग्रह है. आमतौर पर इसमें UHF, C बैंड और Ku बैंड के ट्रांसपोंडर्स लगे होते हैं, जो अलग-अलग बैंड्स पर रेडियो फ्रिक्वेंसी भेजते हैं ताकि आसानी और सुरक्षित तरीके से संचार स्थापित हो सके. इनका सबसे ज्यादा उपयोग मिलिट्री संचार में होता है. ताकि फाइटर जेट्स सही समय पर टारगेट पर पहुंच सकें. नौसेना आराम से युद्धपोतों और सबमरीन को रणनीति के अनुसार तैनात कर सके. सेना सीमाओं पर सही पोजिशन पर निगरानी कर सके और जवाब दे सके.
मिलिट्री सैटेलाइट्स के बारे में पुख्ता जानकारी देने से सरकारी संस्थाएं बचती हैं. लेकिन एक अनुमान के अनुसार अंतरिक्ष में इस समय 10 GSAT सैटेलाइट्स हैं. जिनमें 168 ट्रांसपोंडर्स लगे हैं. यानी संचार के लिए तरंगें फेंकने वाले यंत्र. इनमें से 95 ट्रांसपोंडर्स को ब्रॉडकास्टर्स को लीज पर दिया गया है. ये ट्रांसपोंडर्स C, Extended C और Ku बैंड्स के तहत टेलिकम्यूनिकेशन, टेलिविजन ब्रॉडकास्टिंग, मौसम का पूर्वानुमान, आपदा की सूचना, खोज एवं राहत कार्य में मदद का काम किया जाता है.
19 दिसंबर 2018 में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किए गए मिलिट्री सैटेलाइट GSAT-7A को एंग्री बर्ड (Angry Bird) बुलाया जाता है. यह सैटेलाइट सैन्य संस्थानों को संचार की सुविधा तो देता ही है. इससे सबसे ज्यादा मदद मिलती है भारतीय वायुसेना को. यह वायुसेना की नेटवर्किंग क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है. इसकी मदद से ही वायुसेना भारतीय आसमान में निगरानी रखने ज्यादा सक्षम हो पाती है.
भारत का पहला मिलिट्री सैटेलाइट है जीसैट-7 (GSAT-7). यह एक मल्टीबैंड कम्यूनिकेशन सैटेलाइट है. जिसे रुक्मिणी नाम दिया गया था. यह UHF, C और Ku बैंड प्रसारित करने वाले पेलोड्स के साथ भारत के ऊपर जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट में तैनात है. यह पूरी तरह से मिलिट्री सैटेलाइट है. इसका उपयोग सिर्फ भारतीय सैन्य संस्थाएं और भारतीय नौसेना करती है. (फोटोः गेटी)
अगर हम मिलिट्री सैटेलाइट्स के ताकत की बात करते हैं, तो साल 2014 में बंगाल की खाड़ी में हुए ऑपरेशन एक्सरसाइज के दौरान रुक्मिणी ने 60 युद्धपोतों और 75 लड़ाकू विमानों को एक साथ जोड़ दिया था. रुक्मिणी एक बार में भारतीय समुद्री सीमा पर 2000 नॉटिकल मील की दूरी तक बारीकी से नजर रख लेती है. भारतीय नौसेना ने GSAT-7R की मांग की है, जो जीसैट-7 को रिप्लेस करेगा. इसके अलावा जीसैट-7बी की बात चल रही है. जीसैट-7C की भी योजना है. लेकिन इसके बारे में कोई चर्चा नहीं है.
ऐसा अनुमान है कि साल 2022 में GSAT-7R, GSAT-7C, GSAT-32 को साल 2022 और 2023 में ही लॉन्च किया जाएगा. इनकी लॉन्चिंग GSLV-MKII रॉकेट से किए जाने की संभावना है. इनमें जीसैट-32 पूरी तरह से मिलिट्री सैटेलाइट नहीं है. लेकिन जरूरत पड़ने पर इसका उपयोग सैन्य संस्थानों के लिए किया जा सकता है.