क्या पहाड़ों को ढहा सकती है बारिश...जानें क्या कहते हैं शोधकर्ता

जलवायु धरती की सतह को कैसे प्रभावित करती है यह एक गहन शोध का विषय है

Update: 2020-10-18 13:43 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जलवायु धरती की सतह को कैसे प्रभावित करती है यह एक गहन शोध का विषय है. चाहे जलवायु के टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic plates) पर असर की बात हो या फिर बारिश (Rainfall) का पहाड़ों और पर्वतों (Mountains) के विकास में योगदान हो. जलवायु के भूगर्भीय और भौगोलिक प्रभाव बहुत ही गहरे होते हैं. हाल में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने बारिश पर प्रभावों का अध्ययन किया और जाना कि कैसे बारिश पहाड़ों के बनने की प्रक्रिया में अहम योगदान देती है.

हिमालय पर केंद्रित किया अपना अध्ययन

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के शोधकर्ताओं ने इस बात का अध्ययन किया कि पिछले लाखों सालों में पहाड़ों की चोटियां और घाटियां कैसे विकसित हुईं. इस अध्ययन ने खास तौर पर दुनिया की सबसे विशाल पर्वतमाला हिमालय पर ध्यान केंद्रित किया. यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के भौगोलिक स्थितियों पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्वानुमान लगा सकता है और साथ ही मानवीय जीवन पर भी.

ये दो धारणाएं

इस अध्ययन में इस धारणा को गलत साबित किया गया है कि बारिश पहाड़ों को नहीं हिला सकती. इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ बेरॉन एडम्स का कहना है कि आम तौर पर ऐसा लग सकता है कि ज्याद बारिश पहाड़ों को आकार दे सकती है और नदियां चट्टानों को तेजी से काट सकती हैं. लेकिन वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि बारिश भूभागों में से चट्टानों पर इतना ज्यादा असर डाल सकती है कि पृथ्वी की सतह से चट्टानें घिस घिस कर ही गायब हो सकती थी.

दोनों सिद्धांतों पर बहस

बेरॉन बताते हैं, "इन दोनों ही सिद्धांतों पर पिछले कई दशकों से विवाद चल रहा है. क्योंकि इन्हें सही साबित करने के लिए बहुत ही अधिक मापन करना होगा जो कि बहुत ही जटिल है. इसी लिए इस अध्ययन के नतीजे एक बड़ी और दिलचस्प उपलब्धि हैं क्योंकि यह इस धारणा का समर्थन करता है कि वायुमंडलीय और पृथ्वी की सतह की प्रक्रियाएं आपस में संबंधित हैं.

अंतरिक्ष के कणों का प्रभाव

इस अध्ययन में नेपाल और भूटान के मध्य और पूर्वी हिमालय के इलाकों का अध्ययन किया गया. शोधकर्ताओं ने नदियों के द्वारा किए उनके नीचों की चट्टानों के अपरदन की गति नापी. डॉ एडम्स ने कहा, " जब कोई कॉस्मिक कण बाहरी अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आता है, तो इस बात की संभावना होती है कि वह पहाड़ियों के ढलान वाले रेत से टकराएगा. यही कण नदियों में बहकर आगे पहुंच जाते हैं."

अपरदन के समय का यूं आंकलन

"इस प्रक्रिया में कुछ रेत के कुछ कण रेयर एलिमेंट्स में बदल सकते हैं." डॉ एडम्स ने आगे बताया, "रेत की एक बोरी में इस तरह के कितने अणु हैं, इसेस यह पता लगाया जा सकता है कि रेत कितने लंबे समय से मौजूद रही थी. इससे यह पता चल सकता है कि भूभाग में अपरदन कितने लंबे समय से चल रहा होगा."

एक बहुत ही जटिल चुनौती

डॉ एडम्स के अनुसार, "एक बार हमें पूरी पर्वतमाला के अपरदन की दर का पता चल जाए तो हम उससे नदियों की गहराइयों और बारिश में बदालव से तुलना कर सकते हैं. यह तुलना कर पाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है इसके बाद सांख्यकीय आंकलन भी इसे और ज्यादा जटिल बना देता है.

इस तकनीक का किया उपयोग

नदियों का अपरदन कैसे होता है इसका न्यूमेरिकल मॉडल उपयोग करने के साथ ही वैज्ञानिकों ने रिग्रेशन तकनीक का उपयोग किया और वे इस चुनौती से पार पाने में सफल रहे. इस मॉडल ने यह भी बताया कि बारिश ऊबड़ खाबड़ इलाके में अपरदन की दर को कितना प्रभावित करती है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी पड़ताल बताती है कि टेक्टोनिक गतिविधियों के आंकलन में बरिश को शामिल करना कितना जरूरी है. इस अध्ययन के नतीजे भूमि उपयोग प्रबंधन, अधोसंरचना रखरखाव और हिमायल के इलकों में अन्य खतरों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकते हैं.

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